हाल ही में किए गए मैदानी प्रयोगों से पता चला है कि मधुमक्खियों का गुंजन किसानों को बता सकता है कि वे किन फूलों का परागण कर रही हैं और कितनी तादाद में। गौरतलब है कि परागण फसल उत्पादन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण क्रिया है। इस क्रिया में नर फूल के पराग कण मादा प्रजनन अंगों तक पहुंचते हैं और उनका निषेचन होकर फल तथा बीज बनते हैं।
आम तौर पर कोई एक मधुमक्खी प्रजाति-विशिष्ट के फूलों का ही परागण सम्पन्न करती है। वैसे तो खेतों के आसपास मधुमक्खियों को देखकर बताया जा सकता है कि वे किन फूलों का परागण कर रही हैं। किंतु वह प्रक्रिया काफी श्रमसाध्य होती है। अब कोलेरैडो में कुछ शोधकर्ताओं ने यही काम मधुमक्खियों के गुंजन की आवाज़ को रिकॉर्ड करके करने में सफलता प्राप्त की है।

सबसे पहले शोधकर्ताओं ने विभिन्न मधुमक्खी प्रजातियों के शरीर के लक्षणों का मापन किया - उनकी जीभ की लंबाई, पंखों की लंबाई, शरीर का आकार वगैरह। इन चीज़ों का असर इस बात पर पड़ता है कि कौन-सी प्रजाति किस फूल का परागण कर सकती है और यह भी पता चलता है कि उसकी गुंजन की ध्वनि कैसी होगी। अंतत: शोधकर्ता दो मधुमक्खियों के ध्वनि-हस्ताक्षर पकड़ने में सफल रहे - बॉम्बस बालटीटस और बॉम्बस सिल्वीकोला। यह तो पता ही था कि इनमें से कौन-सी प्रजाति किस वनस्पति के फूलों का परागण करती है।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने जंगली फूलों के दो प्लॉट्स पर मधुमक्खियों की आवाज़ें रिकॉर्ड कीं। गुंजन को सुनकर ही शोधकर्ता यह बताने में सफल रहे कि किसी इलाके में कितनी मधुमक्खियां हैं। प्लॉस-वन नामक शोध पत्रिका में उन्होंने बताया है कि वे यह स्थापित कर पाए कि किस तरह की ध्वनि वाली मधुमक्खियां किस तरह के क्लवर फूलों को परागित कर रही हैं। अर्थात वे मात्र गुंजन की रिकॉर्डिंग के आधार पर यह बता सकते हैं कि कौन-कौन-सी मधुमक्खियां कितनी संख्या में उपस्थित हैं और वे क्या कर रही हैं। और किसी खेत में ध्वनि-चित्र देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या जो मधुमक्खियां वहां उपस्थित हैं वे बोई गई फसल के लिए उपयुक्त हैं या कोई फेरबदल करने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)