हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि मछलियों ने विकास के दौर में ज़मीन पर रहने की कला कम से कम तीस बार सीखी है। इसी अध्ययन ने यह भी स्पष्ट किया है कि संभवत: पानी से निकलकर ज़मीन पर रहने वाली प्रथम मछलियां समुद्री थीं।
विकासविद मानते हैं कि पहली बार किसी मछली ने पानी से ज़मीन पर ‘कदम’ करीब 35 करोड़ साल पहले रखा था। और ऐसा नहीं है कि सारे उभयचरों (यानी पानी व ज़मीन दोनों जगह रहने वाले जंतुओं) का विकास इसी मछली से हुआ है। कम से कम 30 बार स्वतंत्र रूप से अलग-अलग प्रजातियों ने पानी से ज़मीन पर आना सीखा है।

यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के टेरी ओर्ड तथा जॉर्जिना कुक ने किया है। इसके लिए उन्होंने उन मछलियों से सम्बंधित सारा शोध साहित्य खंगाला जिन्होंने ज़मीन पर आने में सफलता प्राप्त की थी। इससे उन्हें यह अनुमान लगाने में मदद मिली कि मछलियों ने यह करिश्मा कितनी बार स्वतंत्र रूप से किया।
ओर्ड और कुक ने पाया कि वर्तमान में 130 मछली प्रजातियां ऐसी हैं जो कुछ हद तक ज़मीन पर समय बिताती हैं। इनमें अमेरिकन ईल (Anguilla rostrata) है जो बरसात के समय तालाबों के बीच कूदती रहती है। ऐसी ही एक मछली लॉन्ग स्पाइन्ड सी स्कॉर्पियन (Taurulus bubalis) है जो पानी में ऑक्सीजन की कमी होने पर समुद्र किनारे के पोखरों में से उछलकर ज़मीन पर आ जाती है। इसी प्रकार की एक मछली अटलांटिक मडस्किपर है जो भोजन की तलाश में कीचड़ पर घूमती रहती है।

शोध पत्रिका इवॉल्यूशन में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ताओं ने बताया है कि मछलियों के 33 कुलों में कम से कम एक प्रजाति ऐसी है जिसने ठोस धरती को अपना अस्थायी आवास बनाया। मतलब कम से कम 33 बार तो अलग-अलग प्रजातियों ने ज़मीन पर चहलकदमी करने की आदत बनाई है।
शोधकर्ताओं ने एक मछली कुल का अध्ययन थोड़ा ज़्यादा गहराई में जाकर किया। यह कुल है ब्लेनिडी। ये मछलियां समुद्री हैं और आम तौर पर तटों के उथले पानी में पाई जाती हैं। इनका अवलोकन करते हुए शोधकर्ताओं ने देखा कि ये काफी समय समुद्र तट की चट्टानों पर फुदकते हुए बिताती हैं। ये पानी के बाहर रहना इतना पसंद करती हैं कि यदि इन्हें डराया जाए, तो ये पानी की ओर नहीं भागतीं बल्कि चट्टानों के बीच और अंदर की ओर चली जाती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक कहने को इसे समुद्री मछली कहा जाता है मगर यह काफी सारा वक्त पानी से बाहर ही गुज़ारती है।
इस अध्ययन से लगता है कि जलीय जीवों के ज़मीन पर आने की घटना संभवत: समुद्र तट के उन क्षेत्रों में हुई थी जहां ज्वार का पानी चढ़ता-उतरता रहता है। वैसे अभी भी आम मान्यता तो यही है कि पानी से ज़मीन पर आने का रास्ता मीठे पानी से होकर आया है। (स्रोत फीचर्स)