कई लोग यह शिकायत करते हैं कि वे हमेशा थका-थका महसूस करते हैं और अच्छी नींद या आराम के बाद भी हालात में सुधार नहीं आता। चिकित्सा के क्षेत्र में इसे जीर्ण थकान लक्षण (क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम - सीएफएस ) कहा जाता है। ऐसा देखा गया है कि यह लक्षण प्राय: किसी संक्रमण के बाद शुरु होता है। आम तौर पर माना जाता है कि यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है मगर ताज़ा शोध के परिणाम दर्शा रहे हैं कि शायद यह मनोवैज्ञानिक समस्या न होकर शरीर क्रिया की एक व्याधि है।
हाल ही में किए गए कई अनुसंधानों से लगता है कि किसी वजह से हमारा शरीर ऊर्जा उत्पादन के सामान्य कार्यक्षम तरीके को छोड़कर अकार्यक्षम तरीके से ऊर्जा उत्पादन करने लगता है। इस वजह से शरीर को काम करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती और हम थके-थके रहते हैं।
हमारे शरीर में ऊर्जा उत्पादन का सामान्य तरीका यह है कि ग्लूकोज़ का ऑक्सीकरण किया जाए। यह काम हमारी कोशिकाओं के जिस अंग में होता है उसका नाम माइटोकॉण्ड्रिया है। किसी वजह से यदि यह प्रक्रिया बाधित हो जाए तो शरीर अमीनो अम्लों (प्रोटीन निर्माण की इकाइयां) और वसा का उपयोग उर्जा उत्पादन के लिए करने लगता है। यह तरीका उतना सक्षम नहीं होता। इस तरीके में एक बात यह होती है कि लेक्टिक एसिड बनता है और मांसपेशियों में जमा हो जाता है। इसकी वजह से दर्द होता है।

बात को समझने के लिए नॉर्वे के हॉकलैण्ड विश्वविद्यालय अस्पताल के ओइस्टीन फ्लूज और उनके साथियों ने इस लक्षण से पीड़ित 200 तथा 102 सामान्य लोगों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि सीएफएस पीड़ित महिलाओं के खून में कुछ अमीनो अम्लों की मात्रा असामान्य रूप से कम थी। ये वे अमीनो अम्ल थे जिनका उपयोग शरीर वैकल्पिक ईंधन के रूप में करता है। अलबत्ता, सीएफएस पीड़ित पुरुषों के खून में ऐसी कमी नहीं देखी गई। कारण यह है कि पुरुष ऊर्जा के लिए अमीनो अम्ल खून से नहीं बल्कि मांसपेशियों से लेते हैं।
शोधकर्ताओं का विचार है कि स्त्री-पुरुष दोनों में ही ग्लूकोज़ का उपयोग कम हो जाता है मगर उसकी क्षतिपूर्ति अलग-अलग रास्तों से होती है।
अध्ययन में यह भी देखा गया कि सीएफएस पीड़ित स्त्री-पुरुष दोनों में कुछ एंज़ाइम्स अधिक मात्रा में थे। ये वे एंज़ाइम थे जो कोशिका में शर्करा को माइटोकॉण्ड्रिया तक पहुंचाने का काम करने वाले एंज़ाइम्स का दमन करते हैं। इसके बिना शर्करा का पूरा उपयोग ऊर्जा दोहन के लिए नहीं हो सकता।

यह बात कई अन्य अध्ययनों से भी पता चली है कि शर्करा का पूर्ण उपयोग न हो पाना सीएफएस का एक प्रमुख कारण है। ऐसा क्यों होता है, इसे लेकर अनिश्चितता है। एक विचार यह है कि जब व्यक्ति को किसी रोगजनक बैक्टीरिया का संक्रमण होता है तो शरीर उसके विरुद्ध एंटीबॉडी बनाता है। किसी-किसी मामले में ये एंटीबॉडी शरीर के कुछ एंज़ाइमों को निष्क्रिय बनाती हैं। इनमें वे एंज़ाइम शामिल हैं जो ग्लूकोज़ को माइटोकॉण्ड्रिया तक पहुंचाते हैं। अब शोधकर्ता इस विचार की प्रायोगिक पुष्टि के लिए प्रयोग करना चाहते हैं। वैसे वे यह देख चुके हैं कि यदि शरीर में से एक किस्म की श्वेत रक्त कोशिकाओं का सफाया कर दिया जाए तो सीएफएस के लक्षणों से राहत मिलती है। ये श्वेत रक्त कोशिकाएं हमारे शरीर में एंटीबॉडी बनाने का काम करती हैं। (स्रोत फीचर्स)