हमारी आंतों के बारे में नित नई बातें पता चलती हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण बात का सम्बंध हमारी आंतों से नहीं बल्कि आंतों में पलने वाले सूक्ष्मजीव संसार से है। हमारे स्वास्थ्य और खुशहाली की दृष्टि से यह सूक्ष्मजीव जगत दिन-ब-दिन ज़्यादा महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। अब इस सूक्ष्मजीव जगत में एक नया समूह जुड़ा है: फफूंद।
अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ साइन्स की एक बैठक में आंतों में बसने वाली फफूंद के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी प्रस्तुत की गई। ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय की ब्रेट फिनले ने बताया कि वे यह तो 2015 में ही देख चुकी थीं कि आंतों में चार ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जो कनाडा के बच्चों को दमा से सुरक्षा प्रदान करते हैं। उनका ख्याल था कि ये बैक्टीरिया किसी प्रकार से हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को प्रशिक्षित करते हैं। मगर जब फिनले व उनके साथियों ने इक्वेडॉर के बच्चों की आंतों के सूक्ष्मजीव जगत का विश्लेषण किया तो एक नई बात पता चली।

फिनले के मुताबिक इक्वेडॉर ग्रामीण है मगर वहां बच्चों में दमा का प्रकोप लगभग कनाडा के समान ही है। वहां के बच्चों की आंतों के सूक्ष्मजीव जगत के विश्लेषण से समझ में आया कि किसी बच्चे को दमा होगा या नहीं, इसका पूर्वानुमान आंतों के बैक्टीरिया की बजाय दो फफूंदों की उपस्थिति के आधार पर लगाया जा सकता है। ये फफूंदें दरअसल खमीर समूह की हैं। देखा गया कि तीन माह की उम्र के जिन बच्चों के मल में ये फफूंदें पाई गईं, उनमें पांच वर्ष की उम्र में दमा पैदा होने की संभावना ज़्यादा होती है।
ये खमीर दमा की आशंका को क्यों और कैसे बढ़ाती हैं, यह तो अभी पता नहीं है किंतु फिनले का मत है कि ये बैक्टीरिया की उन प्रजातियों को प्रभावित करती होंगी जो हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को प्रशिक्षित करते हैं। अलबत्ता, फिनले का यह भी कहना है कि उनके द्वारा किए गए इस अध्ययन से महत्वपूर्ण संकेत यह मिलता है कि आंतों के सूक्ष्मजीवों के विश्लेषण में फफूंद को अनदेखा नहीं करना चाहिए। अर्थात अब इस तरह के अध्ययनों में पेचीदगी की एक परत और जुड़ जाएगी। (स्रोत फीचर्स)