डॉ. विजय कुमार उपाध्याय


प्राचीन काल में कई देशों में ऐसे महान वैज्ञानिक हुए हैं जिनके वैज्ञानिक शोधों एवं कृतियों ने उन्हें सदा के लिए अमर बना दिया। ऐसे ही महान वैज्ञानिकों की सूची में शामिल हैं आर्किमिडीज़।
उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि आर्किमिडीज़ का जन्म ई.पू. 287 में सिसिली द्वीप के सिरेक्यूज़ नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता फाइदियस अपने समय में ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान के विद्वान माने जाते थे। आर्किमिडीज़ को गणित एवं खगोल विज्ञान के अध्ययन की प्रेरणा अपने पिता से ही मिली थी। सिरेक्यूज़ के सम्राट हीरो (द्वितीय) आर्किमिडीज़ के सम्बंधी एवं मित्र थे। आर्किमिडीज़ ने एलेक्ज़ेण्ड्रिया के प्रसिद्ध विद्या केन्द्र में कुछ समय तक अध्ययन किया था। उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की थी। इनमें से कुछ ग्रंथों को उन्होंने महान वैज्ञानिक इरेटोस्थीनिस को तथा कुछ पुस्तकें डोसिथियोस के नाम समर्पित की थीं।

समय के साथ लोग आर्किमिडीज़ एवं उनके ग्रंथों को भूलते गए। आर्किमिडीज़ की कई पुस्तकें समय के आवरण में ढंक गईं जिनका पता आज तक लोगों को नहीं है। कई पुस्तकें बहुत खोजबीन करने के बाद लोगों की जानकारी में लाई गईं। ऐसी ही खोज की एक घटना 1906 ईस्वीं की है। जोहान लुडविग हाइबर्ग नामक डेनमार्क के एक विद्वान यूनान के प्राचीन विद्वानों द्वारा लिखित ग्रंथों की खोज में लगे हुए थे। इसी सिलसिले में वे तुर्की के इस्ताम्बुल नामक नगर पहुंचे। कहा जाता है कि तुर्की के इस पुरातन नगर में ईसा बाद 15वीं शताब्दी तक के अनेक प्राचीन यूनानी ग्रंथ सुरक्षित रखे हुए थे। प्राचीन यूनान में पुस्तकें पेपीरस या चमड़े पर लिखी जाती थीं। इन पर लिखी गई पुस्तकें लंबे अरसे तक सुरक्षित रखी जा सकती थीं। इस्ताम्बुल के एक पुराने पुस्तक भंडार में हाइबर्ग को चमड़े पर लिखी गई एक हस्तलिखित पुस्तक दिखाई पड़ी। हाइबर्ग यह देख कर काफी निराश हुए कि उसमें ईसाई धर्म से सम्बंधित अनेक बातों का वर्णन किया गया है। वे तो विज्ञान की प्राचीन पुस्तकों की तलाश में थे। हाइबर्ग ने चमड़े पर लिखी उस पुस्तक को पुन: गौर से पढ़ा। तब जाकर पता चला कि चमड़े की उन पट्टियों पर पहले कोई दूसरी पुस्तक लिखी गई थी जिसे मिटाकर उस पर ईसाई धर्म की बातें लिख दी गई थीं।

अब उन्हें किसी ऐसे तरीके की तलाश थी जिससे चमड़े की उन पट्टियों पर पहले लिखी गई बातों को पढ़ा जा सके। उन्होंने लेंस की मदद से पूर्व लिखित अक्षरों को पढ़ने की कोशिश की परन्तु सफलता नहीं मिली। उन्हें पता चला कि कुछ ऐसे रसायन तैयार कर लिए गए हैं जिनके उपयोग से चमड़े पर लिखे गए उन अक्षरों को स्पष्ट देखा जा सकता है जिन्हें मिटा दिया गया हो। हाइबर्ग ने वह रसायन प्राप्त किया जिसे लगाने से पुराने अक्षर स्पष्ट नज़र आने लगे। पता चला कि वह ग्रीक भाषा में लिखी गई गणित की एक पुस्तक है जो संसार के महान वैज्ञानिक आर्किमिडीज़ द्वारा लिखी गई थी तथा जिसके सम्बंध में आधुनिक वैज्ञानिकों को कोई भी जानकारी नहीं थी। ग्रीक भाषा में उस पुस्तक का नाम था ‘यूफोडोस’ जिसका अर्थ होता है ‘विधि’। इस ग्रंथ में आर्किमिडीज़ ने बताया था कि उन्होंने गणित और यांत्रिकी के आविष्कार किन विधियों से किए थे।
आर्किमिडिज़ लिखित इस पुस्तक की खोज वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आर्किमिडीज़ के आविष्कारों को भली-भांति समझने हेतु इस पुस्तक का महत्व बहुत अधिक है।

आर्किमिडीज़ जीवन पर्यन्त तरह-तरह के यंत्रों के आविष्कार और निर्माण में व्यस्त रहे। उन्होंने दैनिक उपयोग के कई यंत्रों का निर्माण किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि लीवर की सहायता से कैसे भारी-भारी सामान को उठाया जा सकता है।
आर्किमिडीज़ द्वारा लिखी गई कुछ पुस्तकों में घिरनियों एवं लीवरों के बारे में विस्तृत विवेचना की गई है। उत्तोलकों के सिद्धांत एवं उपयोग को समझाते हुए उन्होंने बताया था कि उनकी मदद से बड़े-बड़े जहाज़ों को उठाया जा सकता है। इतना ही नहीं यदि समुचित टेक मिल जाए तो पृथ्वी को भी अपनी जगह से हटाया जा सकता है।
आर्किमिडीज़ के शोध एवं आविष्कारों के बारे में कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं। एक बार की घटना है कि एक सुनार ने सोने का एक मुकुट बनाकर सिरेक्यूज़ के सम्राट के समझ प्रस्तुत किया। यह मुकुट बृहस्पति देवता को समर्पित करने के लिए बनाया गया था। सम्राट के मन में मुकुट के सोने की शुद्धता के बारे में थोड़ा संदेह पैदा हुआ। वह सोने की शुद्धता की जांच कराना चाहता था। सोने की जांच के लिए उस काल में भी कुछ रासायनिक विधियां ज्ञात थीं, परन्तु इसके लिए मुकुट को तोड़ना पड़ता। सम्राट को उस मुकुट का डिज़ाइन इतना पसंद था कि वह उसे तुड़वाना नहीं चाहता था। आर्किमिडीज़ को उसने यह काम सौंपा कि मुकुट को बिना तोड़े, बिना गलाए सोने की शुद्धता की जांच का कोई तरीका बताए। यह काम अगले दिन सूर्यास्त के पूर्व हो जाना चाहिए था।

आर्किमिडीज़ काफी चिंता में पड़ गए। उनका मन न खाने-पीने में लग रहा था और न सोने में। अगले दिन जब वे बॉथ टब में स्नान कर रहे थे तो दो बातें उनके ध्यान में आईं। पहली बात तो यह कि जैसे ही वे पानी के अंदर गए, कुछ पानी टब के बाहर आ गया। दूसरी बात यह थी कि पानी में घुसने पर उन्होंने शरीर के वज़न में कमी महसूस की। आर्किमिडीज़ को सम्राट द्वारा सौंपी गई समस्या का समाधान सूझ गया। वे खुशी से “यूरेका! यूरेका!” (मिल गया, मिल गया) चिल्लाते हुए नंगे ही दौड़ पड़े। इस खोज के तुरंत बाद आर्किमिडीज़ ने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे भौतिकी में ‘आर्किमिडीज़ सिद्धांत’ कहते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी या अधूरी डुबाई जाती है तो उसके वज़न में एक कमी महसूस होती है। यह कमी उस वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के वज़न के बराबर होती है। इस सिद्धांत के आधार पर किसी वस्तु का विशिष्ट घनत्व मालूम किया जा सकता है। प्रत्येक तत्व का अपना एक विशिष्ट घनत्व होता है, अत: सम्राट के मुकुट का विशिष्ट घनत्व निकालकर उसके सोने की शुद्धता की जांच की गई।

ज्यामिति के क्षेत्र में भी आर्किमिडीज़ के योगदान बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण खोज थी बेलन तथा गोले के आयतनों के बीच का अनुपात। इस खोज को आर्किमिडीज़ स्वयं इतना अधिक महत्व देते थे कि उन्होंने अपने मित्रों को कह रखा था कि उनकी समाधि पर वे ज्यामितीय आकृतियां खुदवाई जाएं। मित्रों ने आर्किमिडीज़ के अनुरोध का ध्यान रखा तथा उनकी समाधि पर बेलनाकार आकृति के भीतर गोले की आकृति अंकित कर दी गई।
आर्किमिडीज़ संसार के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने वृत्त की परिथि तथा उसके व्यास के बीच अनुपात अर्थात पाई (द्र) का मान बताया। इस अनुपात का मान न पता हो तो वृत्त के क्षेत्रफल तथा गोले के आयतन की गणना करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता था। आर्किमिडीज़ द्वारा पाई का मान खोजे जाने की एक कहानी है। एक बार आर्किमिडीज़ ने एलेक्ज़ेण्ड्रिया विश्वविद्यालय की फैकल्टी के सदस्यों के समक्ष एक प्रयोग का प्रदर्शन किया जिसमें गोल पिण्डों (गोला, शंकु, बेलन इत्यादि) के आयतन मालूम करने की विधि बताई गई। उस काल तक वैज्ञानिकों ने गोल पिण्डों के आयतन ज्ञात करने का कोई सूत्र नहीं खोजा था। आर्किमिडीज़ ने बताया कि यदि एक ही व्यास एवं ऊंचाई के गोला, बेलन और शंकु लिए जाएं तो गोले का आयतन शंकु से दुगना तथा बेलन का आयतन शंकु से तिगुना होगा। इसे साबित करने के लिए उन्होंने एक ही प्रकार की लकड़ी से निर्मित शंकु, गोला एवं बेलन के नमूने लिए जिनकी ऊंचाई तथा व्यास समान थे। तराज़ू पर तौल कर दिखा दिया कि गोले का वज़न दो शंकुओं के बराबर तथा एक बेलन का वज़न तीन शंकुओं के बराबर होता है। अत: आयतन भी उसी अनुपात में होगा। परन्तु वहां पर उपस्थित लोग प्रशंसा करने की बजाय उदास हो गए। क्योंकि आर्किमिडिज़ ने सिर्फ तुलनात्मक आयतन बताया। कोई वैसा सूत्र नहीं बताया जिसके द्वारा उपर्युक्त आकृति के ठोसों का आयतन स्वतंत्र रूप से प्राप्त किया जाए। अंत में 14 वर्ष का एक बालक सामने आया जिसका नाम था ऐपोलोनियस। इतनी कम उम्र में ही उसने गणित में अच्छी ख्याति अर्जित कर ली थी तथा उसे फैकल्टी का सदस्य बनाया जा चुका था। उसने कहा - “मैं यह प्रस्ताव रखता हूं कि आर्किमिडीज़ को विश्वविद्यालय से स्थाई तौर पर बाहर कर दिया जाए, क्योंकि उन्होंने विशुद्ध गणित की उच्च भावना को अपने गंदे विचारों से दूषित किया है।” इस घटना से आर्किमिडिज़ के दिल पर काफी चोट पहुंची। अपने घर सिरेक्यूज़ वापस आकर शंकु, गोला एवं बेलन के आयतन मालूम करने के तरीकों पर नए सिरे से अध्ययन किया। अंत में उन्होंने पाई का मान ज्ञात करके ही दम लिया। उन्होंने उस समस्या का सैद्धांतिक हल ढूंढ लिया जो एलेक्ज़ेण्ड्रिया में उनकी बेइज़्ज़ती का कारण बना था।

आर्किमिडीज़ के वैज्ञानिक कौशल के कमाल की एक रोचक कहानी है। करीब 212 ई.पू. रोम की सेना ने सेनापति मार्सेलस के नेतृत्व में सिरेक्यूज़ पर आक्रमण कर दिया। सिरेक्यूज़ के सम्राट ने इस आक्रमण को विफल करने हेतु आर्किमिडीज़ को कोई उपाय करने को कहा। आर्किमिडीज़ ने दो उपाय किए। पहला तो यह था कि बड़े-बड़े आकार वाले अवतल दर्पणों को समुद्र किनारे पर लगा दिया गया। इन दर्पणों द्वारा सूर्य की किरणों को संकेंद्रित कर शत्रु के जहाज़ों पर डाला गया। इससे अत्यधिक गर्मी के कारण कुछ जहाज़ तो जल गए तथा कुछ डर कर पीछे हट गए।
मार्सेलस भी एक अनुभवी एवं चतुर सेनापति था। उसने समझ लिया कि दिन के समय सूर्य की उपस्थिति में सिरेक्यूज़ पर धावा बोलना सम्भव नहीं है। उसने थोड़ी प्रतीक्षा करना उचित समझा। उसने रात के समय अपने जहाज़ों को सिरेक्यूज़ की ओर बढ़ने का आदेश दिया। ऐसी स्थिति में शत्रु का सामना करने के लिए आर्किमिडीज़ द्वारा निर्मित दूसरे अस्त्र मौजूद थे। इन अस्त्रों में शामिल थे बड़े-बड़े उत्तोलक (लीवर) जिनके द्वारा लकड़ी के बड़े तथा भारी कुंदों को उठाकर समुद्र में फेंका जा सकता था। जैसे ही मार्सेलस के जहाज़ आगे बढ़े उन पर लकड़ी के भारी कुंदे बमों की भांति गिरने लगे। कई जहाज़ क्षतिग्रस्त हो गए तथा कई सैनिक काल के गाल में समा गए। मार्सेलस की तो बुद्धि ही चकरा गई। उसने आर्किमिडीज़ की बहुत प्रशंसा सुन रखी थी, और अब तो वह उनकी बुद्धि तथा ज्ञान का चमत्कार स्वयं अपनी आंखों से देख रहा था। परन्तु मार्सेलस ने हिम्मत नहीं हारी। वह मन ही मन अनेक तरकीबें सोचता रहा तथा आक्रमण की नई-नई योजनाएं बनाता रहा। आखिर एक दिन उसे सफलता मिल ही गई। एक दिन अंधेरी रात में जब सिरेक्यूज़ के सैनिक यह सोच कर चैन की नींद सो रहे थे कि रोम के सैनिक बुरी तरह पराजित होकर लौट रहे हैं, तभी अचानक दिखा कि रोम के सैनिक बिजली की भांति सिरेक्यूज़ में प्रवेश कर चुके हैं। अंत में सिरेक्यूज़ को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

अब मार्सेलस के मन में एक इच्छा और बाकी रह गई थी। वह सिरेक्यूज़ के महान वैज्ञानिक आर्किमिडीज़ से मिलना चाहता था। जिस वैज्ञानिक की बुद्धि तथा ज्ञान कौशल ने रोम की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे उसके प्रति मार्सेलस के मन में घृणा की बजाय  ाृद्धा पैदा हो गई थी। वह आर्किमिडीज़ से मिल कर अनुरोध करना चाहता था कि रोम चलकर अपने ज्ञान से उस देश का उपकार करे। उसने अपने एक सैनिक को आदेश दिया कि वह आर्किमिडीज़ को शीघ्र बुला लाए। उस सैनिक ने मार्सेलस की अंतरात्मा की आवाज़ तथा उसकी भावना को नहीं समझा। उसने तो सिर्फ इतना समझा कि वह हारे हुए देश के एक नागरिक को विजयी देश के सेनापति के आदेश के अनुसार बुलाने जा रहा है। आर्किमिडीज़ इन बातों से अनभिज्ञ अपने घर पर शोध एवं मनन में तल्लीन थे। उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं थी कि सिरेक्यूज़ ने समर्पण कर दिया है। वे उस समय गणित के एक जटिल प्रश्न का हल ढूंढने में व्यस्त थे। उसी समय मार्सेलस का सैनिक वहां पहुंचा। वह आदेश देने के लहज़े में बोला कि चलो सेनापति मार्सेलस बुला रहे हैं। आर्किमिडीज़ ने उस सैनिक की बात को पूरी तरह समझा भी नहीं। उन्होंने कहा, “थोड़ी देर रुको, मैं अभी इस प्रश्न का हल ढूंढ लेता हूं।” उस सैनिक को आर्किमिडीज़ का यह जवाब बुरा लगा। पराजित देश का एक नागरिक विजेता देश के किसी सैनिक के साथ ऐसा बर्र्ताव करे यह उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने आव देखा न ताव, म्यान से तलवार निकाली और आर्किमिडीज़ का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब वह सैनिक आर्किमिडीज़ का कटा सिर लेकर मार्सेलस के पास पहुंचा तो वह यह दृश्य देख कर अवाक रह गया। उसे मन ही मन अपने आप पर झल्लाहट हो रही थी कि क्यों उसने आधा अधूरा आदेश दिया। मार्सेलस को सदमा लगा। इस प्रकार आर्किमिडीज़ की जीवन लीला समाप्त हो गई। मृत्यु के समय उनकी उम्र 75 वर्ष थी। (स्रोत फीचर्स)