संध्या रायचौधरी

सितारों तक पहुंचने का मतलब हम अपने सौर मंडल के पार दूसरे ग्रहों तक पहुंच जाएंगे। शायद इसी प्रयास में कोई दूसरी पृथ्वी या एलियन ही मिल जाए। मानवता की यह सबसे बड़ी छलांग अभी कम से कम तीस साल दूर है।
वैज्ञानिकों ने सितारों के सफर की तैयारी खासी तेज़ कर ली है और निकट भविष्य में इस क्षेत्र से कई आशाप्रद समाचार सुनने को मिलने वाले हैं, भले ही अभी हम सितारों को न छू सकें पर इसकी ठोस भूमिका आने वाले कुछ बरसों में बनने वाली है। इस क्षेत्र और सितारों तक मानव निर्मित सूक्ष्म उपग्रह भेजने की दिशा में चल रहे शोध, विकास और प्रयोग बताते हैं कि यदि कोई बड़ी अड़चन न आई और शोध प्रयोगों की रफ्तार ऐसी ही बनी रही तो तीन से चार दशक के भीतर ही हम अपने सौर मंडल के बाहर के सबसे नज़दीकी तारे तक अपनी बात पहुंचा देंगे और उसकी खोज खबर जुटाने की स्थिति में होंगे।

सफलता की संभावना
धरती मानवता का पलना है पर क्या यह ज़रूरी है कि हम हमेशा पलने में ही रहें? साठ साल पहले जब हमने धरती की कक्षा को पार किया था तो यह आश्चर्यजनक और उत्साह मिश्रित स्मरणीय अवसर था। चांद को छू लिया और अब मंगल पर हमारे जाने की तैयारी है, यान तो गया। पर इतना सब कुछ होने के बावजूद सितारों को छूने का हमारा सपना अभी तक सपना ही है। किसी का सशरीर दूसरे सौर मंडल के किसी तारे पर पहुंचना तो खैर अभी असंभव है। मगर तारों तक मानव निर्मित कोई वस्तु या उपग्रह के बारे में अब लगने लगा है कि भविष्य में सफलता हासिल हो सकती है।
आशा की किरण सौर ऊर्जा
सितारों तक जाने में सबसे बड़ी बाधा दूरी है। वॉयेजर 1 को 1977 में लांच किया गया था और कुल 37 सालों में अपने सौर मंडल से बाहर निकल सका। सबसे नज़दीकी तारा भी हमसे 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है। एक प्रकाश वर्ष का अर्थ है एक साल में प्रकाश द्वारा तय की गई दूरी। लगभग तीन लाख प्रति कि.मी. की गति से प्रकाश एक वर्ष में 95 खरब कि.मी. दूरी नाप लेता है। आज सबसे तेज़ गति का अंतरिक्ष यान प्रकाश की गति का अधिकतम 0.06 प्रतिशत ही पा सकता है। ऐसे में हम दस बीस तो क्या सैकड़ों साल में भी वहां पहुंचने में कामयाब नहीं होने वाले। ज़ाहिर है एक यात्रा में कई जीवन लग जाएंगे। ऐसे में दो ही रास्ते हैं: या तो बतौर यान धरती का कोई विशाल हिस्सा भेजा जाए जिसमें लोग जीवनयापन करते बीसियों पीढ़ियों बाद सितारों पर पहुंचे, या फिर इतना सूक्ष्म यान हो कि उसे अत्यधिक तीव्र गति से बेहद कम समय में सितारों तक पहुंचाया जा सके। दूर जाना है तो ज़्यादा ईंधन चाहिए। ज़्यादा ईंधन भार बढ़ाकर गति कम कर देगा। ऐसे में आशा की किरण बनी है सौर ऊर्जा।

मददगार सौर पाल
शोधार्थी 50 साल से इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं कि सौर ऊर्जा अंतरिक्ष यात्रा के लिए सबसे हल्का और मुफीद ईंधन हो सकता है। फोटान या प्रकाश कणों से धक्का मारकर संवेग पाने की अवधारणा नई नहीं है। फोटोनिक्स विभाग के विज्ञानी डायरेक्ट एनर्जी सिस्टम पर काम कर रहे हैं। यह लेसर से आगे की चीज़ है जो एक तरह से लेसर प्रक्रियाओं का समूह है। वे इससे क्षुद्र ग्रहों को निशाना बनाकर इन्हें नष्ट करेंगे। इसी विध्वंसक सोच में अंतरग्रहीय यात्रा की गुत्थी का सुलझाव भी मिला है। प्रकाश के कणों या फोटान में संवेग या गति का गुण होता है। यदि कोई चीज़ उसके रास्ते में आए या उस पर सवार कर दी जाए तो वह उसे ठेल कर गंतव्य तक ले जा सकता है। ऐसे में सूर्य की रोशनी से सोलर सेल या सौर पाल बनाने से अंतरिक्ष यानों के पास सूर्य प्रकाश के रूप में अनंत ईंधन होगा। असीमित ईंधन से अंतरिक्ष यान खगोलीय दूरियों को पार करने में सक्षम होगा। सौर पाल के सहारे प्रकाश की गति के आसपास की गति पाई जा सकती है। इस तरह नज़दीकी तारे तक हम 5-6 साल में पहुंच जाएंगे। पर जो यान भेजा जाए वह बेहद हल्का हो पतले से कागज़ सरीखा। इसके लिए स्पेस चिप की कल्पना की जा सकती है।

40,000 वेफर स्पेस शिप
वेफरसेट मिनिएचर स्पेस क्राफ्ट यानी स्पेस चिप का आकार तो कुल मिलाकर 10 सेंटीमीटर का ही होगा और कुल भार एक ग्राम से अधिक नहीं होगा पर इसमें एक सामान्य स्मार्टफोन के बराबर विशेषताएं होंगी। कैमरे के साथ सूचना संचार की तमाम खूबियां और कई तरह के सेंसर होंगे। ऊर्जा तो उसे सोलर सेल से मिल ही रही होगी। किसी रेगिस्तानी और शुष्क तथा ऊंचे स्थान से इसे एक अरब वॉट की लेसर समूह के क्षमता वाले केंद्र से 100 गिगाबाइट की ताकत से आकाश में प्रक्षेपित किया जाएगा। जल्द ही अपने सौर पाल के सहारे प्रकाश की बीस फीसदी गति पा लेंगे। तमाम प्रयोगों के बाद पाया गया कि यदि एक ग्राम का स्पेस चिप हो और उसे एक मीटर के सौर पाल से भेजा जाए तो वह चौथाई प्रकाश गति से सफर करता हुआ आधे घंटे में मंगल पहुंच जाएगा और 20 साल में सबसे नज़दीक तारे अल्फा सेंटौरी तक। यही नहीं इस तरह के लेसर समूह वाले विशाल सौर पाल से 100 टन का स्पेस क्राफ्ट भी भेजा जा सकता है पर उसे अल्फा सेंटौरी तक पहुंचने में 22,000 साल लगेंगे। इसलिए अभी यह सोचना फिज़ूल है। फिलहाल अगले दो दशक के भीतर तैयार होने वाला उपग्रह नैनो ही सही पर एक बार प्रयोग सफल होने के बाद हर साल हम ऐसे 40,000 वेफर स्पेस शिप लांच कर सकते हैं, जिनसे अलग-अलग तरह की सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं।

2050 तक संदेशे की उम्मीद
यूरी गागरिन जिस साल अंतरिक्ष में पहुंचे थे यूरी मिलनर उसी साल पैदा हुए थे। मिलनर का नाम यूरी उसी खुशी में रखा गया था। आज यूरी भी सितारे छूने की बात कर रहे हैं। रूसी धनपति यूरी मिलनर, भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग और फेसबुक के मालिक मार्क ज़ुकरबर्ग ने मिलकर स्टार शॉट कार्यक्रम लांच किया है। उद्देश्य है सितारों तक पहुंचना। इस परियोजना में मिलनर ने शुरूआती 10 करोड़ डॉलर लगा दिए हैं। मिलनर और उनका इंस्टीट्यूट नोदक या ईंधन के लिए एंटी मैटर पर भी दांव लगाने जा रहे हैं। भौतिकविदों का कहना है कि तकनीकी तौर पर संभव है और बहुत सस्ता पड़ेगा। हम निकट भविष्य में ही तारे पर स्पेस शिप और स्पेस चिप भेजने जा रहे हैं। मिलनर के विचार में वाकई दम है और यह विश्वसनीय भी है। प्रकाश कणों के सहारे सितारों तक पहुंचना भले ही अभी अवधारणा के स्तर से ज़रा ही आगे हो पर भौतिकी के सिद्धांत इसका सर्मथन करते हैं।
तकनीकी चुनौतियां
फिलहाल इन व्यावहारिक समस्याओं का कोई जवाब अभी नहीं है कि इतने छोटे से स्पेस क्राफ्ट को अंतरग्रहीय धूल से टकरा कर खत्म होने से बचाने के लिए क्या किया जाएगा या फिर इसकी गति कम करने या यान को रोकने की क्या तकनीक है? इस परियोजना के लिए यूरी मिलनर के निवेश वाले एक अरब डॉलर तो शोध में ही स्वाहा हो जाएंगे। फिर आगे क्या होगा?
इस रास्ते में अभी बहुत-सी तकनीकी चुनौतियां हैं, विकास के तमाम काम होने हैं। उधर वैज्ञानिक इसका परिणाम अपने जीवन काल में ही देखना चाहते हैं। पर सौर पाल के बारे में शोध और उसके विकास और वेफर सेट के निर्माण के लिए यदि एक दशक दिया जाए तथा सबसे नज़दीकी सितारे तक पहुंचने का समय इसमें और जोड़ दें तो यह समय तीस साल बैठता है। इसका मतलब यदि हम सही दिशा में लगातार सफलता पाते हैं तो 2050 से पहले सितारों से संदेशा मिलने की उम्मीद कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)