वर्ष 2016 का रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों को संयुक्त रूप से दिया गया है - फ्रांस के स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय के ज़्यां-पियरे सौवेज, यूएस के नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय के सर जे. फ्रेसर स्टोडार्ट और नेदरलैण्ड के ग्रोनिंजेन विश्वविद्यालय के बर्नार्ड एल. फेरिंगा। इन तीनों ने अपने अनुसंधान के ज़रिए आणविक स्तर की मशीनों का निर्माण किया जो ऊर्जा मिलने पर मनमाफिक काम कर सकती हैं।
दरअसल आणविक मशीन से तात्पर्य ऐसे अणुओं से है जिनमें नियंत्रित ढंग से गतियां करवाई जा सकती हैं। तीनों के काम के पीछे सिद्धांत सीधा-सादा है। आम तौर पर जब अणु बनते हैं तो परमाणुओं के बीच सह-संयोजी बंधन बन जाते हैं जो काफी मज़बूत होते हैं। मगर यदि अणुओं के बीच यांत्रिक बंधन बनाए जाएं तो बड़े अणु के अंदर छोटे-छोटे अणु गति कर सकते हैं। इन गतियों को यांत्रिक बंधन की संरचना के आधार पर नियंत्रित किया जा सकता है।
सबसे पहले ज़्यां-पियरे सौवेज ने 1983 में दो वलयाकार अणुओं को इस तरह आपस में जोड़ दिया कि एक ज़ंजीर बन गई। इसे कैटीना कहते हैं। ये दो परस्पर गूंथे हुए वलयाकार अणु एक-दूसरे के सापेक्ष स्वतंत्र गति कर सकते हैं। इसके बाद 1991 में फ्रेसर स्टोडार्ट ने अगला कदम उठाया - उन्होंने रोटाक्सेन नामक अणु बनाया। इसकी विशेषता यह थी कि एक आणविक छल्ले को एक धुरी से जोड़ दिया गया था। वे यह दर्शाने में सफल रहे कि यह छल्ला धुरी पर गति कर सकता है। इस युक्ति के आधार पर उन्होंने एक आणविक लिफ्ट, एक आणविक मांसपेशी और एक कंप्यूटर चिप बनाकर प्रदर्शित की।
और फिर 1999 में बर्नार्ड फेरिंगा ने आणविक मोटर बनाकर काम पूरा कर दिया। उन्होंने अपने द्वारा निर्मित आणविक मोटर की मदद से एक बेलन को घुमाकर दिखाया और एक सूक्ष्म कार तक डिज़ाइन कर डाली।
कुल मिलाकर इन वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि आणविक तंत्रों को इस तरह डिज़ाइन किया जा सकता है कि वे एक खास किस्म की गति को अंजाम दे सकें। हालांकि इस समय तो आणविक मोटर उस स्थिति में है जैसे कि विद्युत मोटर 1830 में थी। मगर जल्दी ही आणविक मशीनों का उपयोग कई कार्यों में होने की उम्मीद है। (स्रोत फीचर्स)