भारत में समुद्र तटीय क्षेत्र लगभग 7000 कि.मी. तक फैला हुआ है। विश्व के सबसे लंबे समुद्र तटीय क्षेत्रों वाले देशों में भारत की गिनती होती है। समुद्र तट सदा अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध रहे हैं और विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में भी समुद्र तट के अनेक क्षेत्र पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित व विख्यात हुए हैं।
किन्तु समुद्र तटीय क्षेत्रों का एक दूसरा पक्ष भी है जो प्राकृतिक सौंदर्य के कारण छिपा रह जाता है। यह हकीकत यहां जीवन के बढ़ते खतरों के बारे में है। समुद्र तटीय क्षेत्रों में आने वाले कई तूफान व चक्रवात पहले से अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं। इसे वैज्ञानिक जलवायु बदलाव से जोड़ कर देख रहे हैं। जलवायु बदलाव के कारण समुद्र में जल-स्तर का बढ़ना निश्चित है। इस कारण अनेक समुद्र तटीय क्षेत्र डूब सकते हैं। समुद्र तट के कई गांवों के जलमग्न होने के समाचार मिलने भी लगे हैं। भविष्य में खतरा बढ़ने की पूरी संभावना है जिससे गांवों के अतिरिक्त समुद्र तट के बड़े शहर व महानगर भी संकटग्रस्त हो सकते हैं।
जहां समुद्र तटीय क्षेत्रों के पर्यटन स्थलों की संुदरता व पर्यटकों की भीड़ की चर्चा बहुत होती है, वहीं पर इन क्षेत्रों के लिए गुपचुप बढ़ते संकटों की चर्चा बहुत कम होती है। हमारे देश में समुद्र तटीय क्षेत्र बहुत लंबा होने के बावजूद कोई हिन्दी-भाषी राज्य समुद्र तट से नहीं जुड़ा है। शायद इस कारण हिन्दी मीडिया में तटीय क्षेत्रों की गहराती समस्याओं की चर्चा विशेष तौर पर कम होती है।

इस ओर अधिक ध्यान देना ज़रूरी है। वैसे भी समुद्र तट क्षेत्र में आने वाले तूफानों का असर दूर-दूर तक पड़ता है। दूसरी ओर, दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में बनने वाले बांधों का असर समुद्र तट तक भी पहुंचता है।
तट रक्षा व विकास परामर्श समिति के अनुसार भारत के तट क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत 2012 तक समुद्री कटाव से प्रभावित होने लगा था। इस बढ़ते कटाव के कारण कई बस्तियां और गांव उजड़ रहे हैं। कई मछुआरे और किसान तटों से कुछ दूरी पर अपने आवास दुबारा नए सिरे से बनाते हैं लेकिन कुछ समय बाद ये भी संकटग्रस्त हो जाते हैं।
सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) में घोराबारा टापू एक ऐसा टापू है जो समुद्री कटाव से बुरी तरह पीड़ित है। 50 वर्ष पहले यहां 2 लाख की जनसंख्या और 20,000 एकड़ भूमि थी। इस समय यहां मात्र 800 एकड़ भूमि बची है और 5000 लोग ही हैं। इससे पता चलता है कि समुद्र व नदी ने यहां की कितनी ज़मीन छीन ली है।

अनेक समुद्र तटीय क्षेत्रों में रेत व अन्य खनिजों का खनन बहुत निर्ममता से हुआ है। इस कारण समुद्र का कटाव बहुत बढ़ गया है। कुछ समुद्र तटीय क्षेत्रों में वहां के विशेष वन (मैन्ग्रोव) बुरी तरह उजाड़े गए हैं। इन कारणों से सामान्य समय में कटाव बढ़ा है व समुद्री तूफानों के समय क्षति भी अधिक होती है। नए बंदरगाह बहुत तेज़ी से बनाए जा रहे हैं और कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि जितनी ज़रूरत है उससे अधिक बनाए जा रहे हैं। इनकी वजह से भी कटाव बढ़ रहा है।
समुद्र किनारे जहां तूफान की अधिक संभावना है वहां खतरनाक उद्योग लगाने से परहेज़ करना चाहिए। पर समुद्र किनारे अनेक परमाणु बिजली संयंत्र व खतरनाक उद्योग हाल के समय में तेज़ी से लगाए गए हैं जो प्रतिकूल स्थितियों में गंभीर खतरे उत्पन्न कर सकते हैं।
अनेक बड़े बांधों के निर्माण से नदियों के डेल्टा क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में व वेग से अब नदियों का मीठा पानी नहीं पहुंचता है और इस कारण समुद्र के खारे पानी को और आगे बढ़ने का अवसर मिलता है। इस तरह कई समुद्र तटीय क्षेत्रों के जल स्रोतों व भूजल में खारापन आ जाता है जिससे पेयजल और सिंचाई, सब तरह की जल सम्बंधी ज़रूरतें पूरी करने में बहुत कठिनाई आती है।

इस तरह के बदलाव का असर मछलियों, अन्य जलीय जीवों व उनके प्रजनन पर भी पड़ता है। मछलियों की संख्या कम होने का प्रतिकूल असर परंपरागत मछुआरों को सहना पड़ता है। इन मछुआरों के लिए अनेक अन्य संकट भी बढ़ रहे हैं। मछली पकड़ने के मशीनीकृत तरीके बढ़ने से मछलियों की संख्या भी कम हो रही है व परंपरागत मछुआरों के अवसर तो और भी कम हो रहे हैं। समुद्र तट पर पर्यटन व होटल बनाने के साथ कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कई मछुआरों व उनकी बस्तियों को उनके मूल स्थान से हटाया जा रहा है।
तट के पास का समुद्री जल जैव विविधता को बनाए रखने व जलीय जीवों के प्रजनन के लिए विशेष महत्व का होता है। प्रदूषण बढ़ने के कारण समुद्री जीवों पर अत्यधिक प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
समुद्र तटीय क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान के लिए कई स्तरों पर प्रयास की ज़रूरत है। इन समस्याओं पर उचित समय पर ध्यान देना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)