भारत डोगरा


नदी कटान से प्रति वर्ष हज़ारों की संख्या में लोग बेघर व भूमिहीन हो रहे हैं। खुशहाल किसानों की लहलहाती फसल देने वाली भूमि या उसका बड़ा हिस्सा एक झटके में ही नदी में समा सकते हैं। यहां तक कि बहुत से लोगों का आवास भी नदी कटान से ध्वस्त हो जाता है। इन परिवारों के पुनर्वास के लिए अभी कोई समग्र नीति नहीं है। यह समस्या उ.प्र., बिहार, बंगाल व असम में अधिक गंभीर है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में भिन्न रूप में तबाही मचाती है।
गाज़ीपुर ज़िले (उ.प्र.) के शेरफर, सेमरा आदि अनेक ग्रामीण क्षेत्र इस समस्या से बुरी तरह त्रस्त रहे हैं। इस वर्ष भी अनेक गांवों की भूमि गंगा नदी में समाहित हुई है। वर्ष 2012-13 में शिवराय और समेरा ग्रामीण क्षेत्र बुरी तरह उजड़ा था। खुशहाल जीवन जी रहे परिवार अचानक शरणार्थियों की तरह रहने को मजबूर हुए। यहां तक कि रक्षा के लिए जिस ठोकर का निर्माण करवाया गया, कुछ स्थानों पर वह भी नदी में विलीन हो गया। यहां के गांव बचाओ आंदोलन के अनुसार धरना, प्रदर्शन, ज्ञापनों के लंबे सिलसिले के बाद भी अधिकतर लोग ठीक से पुनर्वास का इंतज़ार कर रहे हैं। आंदोलन के अनुसार कटान से प्रभावित पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसे कई गांव हैं जिनका आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान था, जबकि आज उनका अस्तित्व मात्र खतरे में है। यहां का कोई परिवार तटबंध पर रह रहा है, तो किसी ने किसी स्कूल में शरण ले रखी है।

कभी गाज़ीपुर तो कभी बहराईच तो कभी सीतापुर - उत्तर प्रदेश के कई ज़िले नदी-कटान के कारण चर्चा में आते रहे हैं। दूसरी ओर उत्तर बिहार के बड़े क्षेत्रों में भी यह समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। असम में नदी के टापू-गांवों में भी यह समस्या बहुत विकट है। उधर फरक्का बैराज बनने के बाद पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद क्षेत्रों में तो यह समस्या बहुत ही विकट हो गई है।
विशेषज्ञ ठीक से जांच कर सकते हैं कि हाल में यह समस्या तेज़ी से क्यों बढ़ी है। ऐसे कुछ स्थानों पर जाने पर कई प्रभावित लोगों व उनके प्रतिनिधियों ने बताया है कि अनियोजित तरीके से निर्माण कार्य होने पर नदी के स्वभाव में बदलाव आते हैं और कटान की प्रवृत्ति तेज़ होती है। विशेषज्ञों को पता लगाना चाहिए कि एक जगह सुरक्षा के नाम पर किए गए कार्यों से दूसरी जगह पर कटान की प्रवृत्ति तेज़ तो नहीं होती है। इस बारे में सही समझ बनाना ज़रूरी है ताकि समय रहते इस समस्या को नियंत्रित किया जा सके।

फिलहाल जो लोग पहले ही नदी कटान से उजड़ चुके हैं, उनकी राहत व पुनर्वास के लिए समग्र नीति बनाना बहुत ज़रूरी है। उत्तर प्रदेश के पीड़ित लोग व उनके प्रतिनिधि राज्य सरकार के वर्ष 2012 के एक शासनादेश की याद दिलाते हैं जिसमें नदी कटान से पीड़ित लोगों को कुछ भूमि निश्चित तौर पर देने के लिए कहा गया था, पर साथ में वह यह भी कहते हैं कि इस शासनादेश का पालन नहीं हुआ है। यहां तक कि राहत अधिकारियों द्वारा आवास उपलब्ध करवाने के आश्वासनों को भी पूरा नहीं किया गया है।
इस ओर समुचित ध्यान देना चाहिए क्योंकि सर्दी के दिन सिर पर हैं और कटान से प्रभावित एक बड़े क्षेत्र में सर्दी की रातों में कड़ाके की ठंड पड़ती है। इससे काफी पहले ही उनके लिए उचित आवास की व्यवस्था करना बहुत ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)