डॉ. अरविन्द गुप्ते

पौधों में लैंगिक प्रजनन के लिए यह ज़रूरी होता है कि फूल के नर भाग द्वारा बनाए गए परागकण मादा भाग में बनने वाले बीजांड तक पहुंचे। इस क्रिया को परागण कहते हैं। चूंकि पौधे आम तौर पर एक स्थान पर स्थिर रहते हैं, परागण के लिए उन्हें बाहरी मदद की आवश्यकता होती है। कुछ पौधों में परागण का काम हवा करती है, कुछ में पानी, तो कुछ अन्य में पक्षी व कीट वगैरह यह काम करते हैं। विभिन्न प्रकार के कीट परागण की क्रिया में सबसे बड़े मददगार होते हैं। सैकड़ों प्रकार की चींटियां, तितलियां, मधुमक्खियां, पतंगे आदि इस काम में जुटे रहते हैं।
गौरतलब है कि कोई भी जंतु परागण का कार्य परोपकार की भावना से नहीं करता। इन्हें तो खाने के लिए पौधों के परागकण और पीने के लिए फूलों का रस चाहिए होता है। जब ये भोजन के लिए फूल में घुसते हैं तब इनके ऊपर परागकण चिपक जाते हैं। दूसरे फूल पर जाने पर ये परागकण उस फूल के मादा अंगों पर गिर जाते हैं और निषेचन हो जाता है। फूलों में बनने वाला रस (मकरंद), उनकी गंध, उनके रंग, ये सब कीटों को आकर्षित करने के लिए होते हैं। कुछ फूलों से तो सड़े हुए मांस की गंध निकलती है जिसके कारण मृत जानवरों को खाने वाली मक्खियां उनकी ओर आकर्षित हो जाती हैं।

अभी हाल में एक ऐसा प्रकरण प्रकाश में आया है जिसमें कीटों को आकर्षित करने के लिए एक पौधे ने बहुत ही अनोखा तरीका अपनाया है। जब किसी मधुमक्खी को कोई मकड़ी या कोई अन्य शिकारी पकड़ लेता है तब उसके घावों में से एक द्रव रिसता है। यह द्रव डेस्मोमेटोपा जीनस की बहुत सूक्ष्म (लम्बाई 2 मि.मी.) मक्खियों का प्रिय भोजन होता है। इस द्रव में कुछ रसायन होते हैं जिनकी गंध इन मक्खियों को आकर्षित करती है।
शिकारी मधुमक्खी को खाता रहता है और उसी समय मधुमक्खी के घावों में से रिसने वाले द्रव को ये मक्खियां भोजन के रूप में लेती रहती हैं। इस प्रकार ये शिकारी का भोजन चुराती रहती हैं। इसलिए इन्हें चोर परजीवी भी कहा जाता है। मधुमक्खी के घावों से रिसने वाले इन पदार्थों की गंध अन्य मधुमक्खियों को तो खतरे के प्रति सावधान करती है किंतु चोर परजीवियों के लिए न्यौते का काम करती है।  

आखिरकार इन ठग मक्खियों को ठगने वाला महाठग प्रकृति में पैदा हो ही गया। यह है दक्षिण अफ्रीका के शुष्क इलाकों में पाई जाने वाली सैन्डरसन्स पैराशूट फ्लॉवर (Ceropegia sandersonii) नामक एक बेल। पैराशूट फ्लॉवर के घंटीनुमा फूलों से उसी प्रकार की गंध निकलती है जैसी मधुमक्खी के घावों से रिसने वाले द्रव की होती है। लालची डेस्मोमेटोपा मक्खियां इस गंध से आकर्षित हो कर फूलों के अंदर पहुंचती हैं, किंतु उन्हें आश्चर्य का झटका तब लगता है जब उन्हें अपने प्रिय भोजन के स्थान पर फूल के निचले फूले हुए भाग में कैद की सज़ा मिलती है। यहां उन्हें लगभग 24 घंटे तक कैद में रहना पड़ता है। वैसे तो इस कालकोठरी में परागकणों की बहुतायत होती है, किंतु परागकण तो इन मक्खियों का भोजन होते ही नहीं, उन्हें तो मधुमक्खियों के घावों से रिसने वाला द्रव चाहिए। मक्खियों के पूरे शरीर पर परागकण ज़रूर चिपक जाते हैं। फूल के मुरझाने पर ही इन मक्खियों को कैद से छुटकारा मिलता है। ये भूखी-प्यासी मक्खियां जैसे ही भोजन की तलाश में निकलती हैं पैराशूट फ्लॉवर का कोई अन्य फूल उन्हें फिर धोखे से बुलाकर उनके शरीर पर लगे परागकणों से अपना स्वार्थ पूरा कर लेता है। मक्खियों के लिए कैद और भूख का चक्र फिर शु डिग्री हो जाता है।

धोखाधड़ी की इस कहानी का खुलासा जर्मनी के बेरुथ विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक एनमैरी हायडुक और उनके साथियों ने किया है। अपने शोधकार्य का विवरण उन्होंने करंट बायॉलॉजी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया है। घायल मधुम्क्खियों के शरीर से निकलने वाले रसायनों और पैराशूट फ्लॉवर के फूलों से निकलने वाले रसायनों की तुलना गैस क्रोमैटोग्राफी और मास स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री द्वारा करने पर पाया गया कि 33 से अधिक रसायन दोनों में मौजूद थे। जब इन रसायनों को खुले में रखा गया तो डेस्मोमेटोपा मक्खियां तुरंत उनकी ओर आकर्षित हो गईं। यह पहली बार है कि घायल मधुमक्खियों के शरीर से निकलने वाले रसायन किसी पौधे में पाए गए हैं। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके शोधकार्य से पौधों द्वारा अपनाई जाने वाली ऐसी अन्य रणनीतियों के बारे में अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलेगा। (स्रोत फीचर्स)