भारत डोगरा

विज्ञान व तकनीकी, पर्यावरण व वन मंत्रालयों से जुड़ी संसद की स्थाई समिति ने 25 अगस्त 2017 को एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट राज्य सभा अध्यक्ष को सौंपी है: पर्यावरण पर जीएम फसलों का असर। जीएम फसलों की बहस में इस रिपोर्ट को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
समिति ने कहा है कि जब जीएम फसलों का 90 प्रतिशत हिस्सा मात्र छ: देशों (यूएस, कनाडा, अर्जेन्टीना, ब्राज़ील, भारत, चीन) तक सीमित है तो सरकार यह जानने का प्रयास क्यों नहीं करती है कि अधिकांश देशों ने इन्हें अपनाने से क्यों इंकार किया है। समिति ने इस ओर भी ध्यान दिलाया है कि सरकारी अनुसंधान संस्थानों ने जीएम फसलों के मानव स्वास्थ्य पर असर को समझने के लिए ज़रूरी अध्ययन नहीं करवाए हैं जिसके कारण जीएम फसल फैलाने से जुड़े निहित स्वार्थों द्वारा दी गई जानकारी हावी हो जाती है।

संसदीय समिति ने कहा है कि जीएम फसलों से जुड़े जैव सुरक्षा के सरोकारों व इनके सामाजिक आर्थिक औचित्य की स्वतंत्र पारदर्शी समीक्षा व इनसे जुड़ी किसी भी समस्या की क्षति की ज़िम्मेदारी निर्धारित करने के लिए जब तक सही व्यवस्था सुस्थापित नहीं हो जाती है तब तक किसी जीएम फसल को अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। समिति ने कहा है कि जीएम फसलों की समीक्षा करते समय इनके दीर्घकालीन असर पर ध्यान देना ज़रूरी है।
समिति ने बताया है कि हाल के जीएम सरसों के विवाद में अभी कई प्रश्न अनुत्तरित हैं। कई राज्य सरकारें ऐसी फसलों के व्यापारिक प्रसार की स्वीकृति देने के विरुद्ध हैं।

समिति की सिफारिश है कि पर्यावरण मंत्रालय को जीएम फसलों के पर्यावरण पर असर की बहुत विस्तार व गहराई से समीक्षा करनी चाहिए व इस समीक्षा में सम्बंधित सरकारी एंजेंसियों, विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों, सिविल सोसायटी व अन्य स्टेकहोल्डर की भागीदारी प्राप्त करनी चाहिए ताकि इस बारे में कोई निर्णय लेने से पहले संभावित परिणामों के बारे में स्पष्टता हो सके।
संसदीय समिति की इस रिपोर्ट में जो चिन्ताएं व्यक्त की हैं, कुछ वैसी ही चिन्ताएं देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पहले भी व्यक्त कर चुके हैं।

उदाहरण के लिए इंडिपेंडेंट साइंस पैनल (स्वतंत्र विज्ञान मंच) में एकत्र हुए विश्व के कई देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जीएम फसलों पर प्रस्तुत एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ के निष्कर्ष में कहा गया है -“जीएम फसलों के बारे में जिन लाभों का वायदा किया गया था वे प्राप्त नहीं हुए हैं और ये फसलें खेतों में बढ़ती समस्याएं उपस्थित कर रहीं हैं। अब इस बारे में व्यापक सहमति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रान्सजेनिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता है। अत: जीएम फसलों व गैर जीएम फसलों का सहअस्तित्व नहीं हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जीएम फसलों की सुरक्षा प्रमाणित नहीं हो सकी है। दूसरी ओर, पर्याप्त प्रमाण हैं कि इन फसलों में सुरक्षा सम्बंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी जिसकी मरम्मत या क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती। जीएम फसलों को अब दृढ़ता से खारिज कर देना चाहिए।”
संसदीय समिति की रिपोर्ट अति महत्वपूर्ण है और इस पर समुचित ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)