समुद्री पर्यावरण में शार्क का वही स्थान है जो जंगल में शेर या बाघ का। ये सभी अपने-अपने परिवेश में सर्वोच्च शिकारी हैं। इस लिहाज़ से इनके संरक्षण का बहुत महत्व है। शार्क के अस्तित्व को लेकर काफी चिंता व्यक्त की गई है और माना गया है कि ये कई जगहों पर खतरे में हैं। मगर एक ताज़ा समीक्षा का निष्कर्ष है कि शायद खतरा थोड़ा बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत हुआ है।

शार्क कितनी उम्र जीती हैं? इस बात का अनुमान लगाने के लिए वैज्ञानिक अक्सर उनकी रीढ़ की हड्डी की एक पतली स्लाइस निकालकर यह देखते हैं कि उस पर कितने जोड़ी पट्टियां बनी हैं। ऐसा माना जाता है कि इन पट्टियों की संख्या शार्क की उम्र का वैसा ही पैमाना है जैसी वृक्षों की वार्षिक वलय होती हैं। मगर वर्ष 2014 में एक अध्ययन में पता चला था कि शायद सैंड टाइगर शाक्र्स के बारे में यह बात सही नहीं है। आम तौर पर माना जाता है कि ये शार्क करीब 20 वर्ष जीती हैं, वहीं अध्ययन में पता चला था कि शायद इनकी औसत आयु 40 वर्ष है। इसी प्रकार से न्यूज़ीलैंड की पोर्बीगल शार्क को लेकर किए गए एक अध्ययन में बताया गया था कि शायद इनकी उम्र पूरे 22 साल कम आंकी गई है।

रीढ़ की हड्डी में बनने वाली पट्टियों के आधार पर समस्त मछलियों की आयु का आकलन किया जा सकता है। दूसरी ओर, टिलियोस्ट समूह की मछलियों की उम्र पता करने के लिए वैज्ञानिक ओटोलिथ को देखते हैं। ओटोलिथ मछलियों के अंदरुनी कान में जमा होने वाले कैल्शियम कार्बोनेट की परतें होती हैं। दिक्कत यह है कि शार्क में ओटोलिथ नहीं होता। इसीलिए इनकी उम्र पता करने के लिए रीढ़ की हड्डी की स्लाइस का सहारा लिया जाता है। किंतु होता यह है कि अधेड़ावस्था में जब शार्क की वृद्धि रुक जाती है तो पट्टियां बननी भी रुक जाती हैं। यानी यदि इस उम्र के बाद किसी शार्क की रीढ़ की हड्डी की स्लाइस देखी जाएगी तो लगेगा कि वह अभी युवा ही है।

हाल के एक समीक्षा पर्चे में एलेस्टेयर हैरी (जेम्स कुक विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया) ने शार्क मछलियों की उम्र निर्धारण के प्रमाणों की समीक्षा की। उन्होंने दो विधियों की मदद से यह जांचने का प्रयास किया कि क्या रीढ़ की हड्डी की पट्टियां सही उम्र बताती हैं। पहली विधि है रासायनिक मार्किग और दूसरी है बम-कार्बन डेटिंग। रासायनिक मार्किंग विधि में किया यह जाता है कि जब कोई शार्क पकड़ी जाती है तो उसे एक फ्लोरेसेंट रंजक का इंजेक्शन दिया जाता जो रीढ़ की हड्डी में फिक्स हो जाता है। जब दोबारा वह शार्क पकड़ी जाती है तो यह देखा जा सकता है कि मार्किंग के बाद कितनी पट्टियां बनी हैं। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि पट्टी गिनने की विधि कितनी कामयाब है।

बम-कार्बन डेटिंग में इस बात का फायदा उठाया जाता है कि 1950 के दशक में जो परमाणु बम परीक्षण हुए थे उनसे उत्पन्न कार्बन जंतुओं के शरीर में बना रहता है। इसके आधार पर भी उम्र पता लगाई जा सकती है। इन सबके आधार पर हैरी का कहना है कि शार्क की औसत आयु को काफी कम आंका गया है। (स्रोत फीचर्स)