ऐसा कहा जाता है कि कई सारे भूकंप मानवीय क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप आते हैं। इन क्रियाकलापों में खनन परियोजनाएं, तेल व गैस परियोजनाएं तथा बड़े बांध वगैरह शामिल हैं। हाल ही में ऐसे 728 भूकंपों की एक फेहरिस्त जारी की गई है। इससे पता चलता है कि कुछ मानव-जनित भूकंप सचमुच काफी बड़े हो सकते हैं।
सिस्मोलॉजिकल रिसर्च लेटर्स के 4 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित ह्रूमन-इंड्यूस्ड अर्थक्वेक डैटाबेस (हाईक्वेक) में पिछले 149 वर्षों में मानवीय गतिविधियों के कारण आए भूकंपों का विवरण दिया गया है। इनमें से अधिकांश छोटे-छोटे (रिक्टर पैमाने पर 3-4) थे मगर कुछ बड़े-बड़े भी थे। जैसे नेपाल में अप्रैल 2015 में 7.8 स्तर का भूकंप मानव-जनित माना जाता है। इस डैटाबेस को यूके के डरहम विश्वविद्यालय के हायड्रोजियॉलॉजिस्ट माइल्स विल्सन और उनके साथियों ने तैयार किया है।

हाइक्वेक का विचार 2016 में प्रस्तुत हुआ था जब एक तेल व गैस कंपनी डच पेट्रोलियम सोसायटी ने शोधकर्ताओं के दल से आग्रह किया था कि वे मानव-जनित भूकंपों के उदाहरण एकत्रित करें। यह कंपनी नेदरलैंड में काम करती है जहां उसके काम की वजह से कुछ भूकंप प्रेरित हुए हैं।
विल्सन की टीम ने वैज्ञानिक शोध पत्रों व मीडिया रिपोट्र्स को खंगाला और 728 घटनाओं की सूची बनाई।  इनमें से 271 (37 प्रतिशत) का सम्बंध खनन परियोजनाओं से है - अक्सर ऐसी घटनाएं सुरंग के ढह जाने के परिणामस्वरूप हुई हैं। करीब 23 प्रतिशत भूकंपों का सम्बंध बांध के पीछे भरे पानी से देखा गया और 15 प्रतिशत तेल व गैस परियोजनाओं से सम्बंधित पाए गए। कुछ भूकंपों का सम्बंध भारी-भरकम गगनचुंबी इमारतों के निर्माण या भूमिगत परमाणु बम परीक्षणों से भी देखा गया।

डैटाबेस के मुताबिक सबसे तेज़ी से बढ़ती भूकंप-प्रेरक गतिविधि है तेल व गैस निकालने के कार्य में निकले पानी को वापिस ज़मीन में इंजेक्ट करने की। यह प्रक्रिया भूमिगत दरारों पर तनाव बढ़ाकर छोटे-छोटे भूकंपों को जन्म दे सकती है। डैटाबेस में सबसे बड़ा भूकंप (7.9) चीन के सिचुआन का है जो एक बांध को भरने के कारण आया था।
डैटाबेस तैयार करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि भूकंपों का सबसे नज़दीकी सम्बंध हटाए या भरे जाने वाले पदार्थों की मात्रा से है। बांध की साइज़ या जलाशय के क्षेत्रफल से भूकंपों का सीधा सम्बंध नहीं देखा गया है बल्कि इस बात से देखा गया कि वहां कितना पानी भरा गया है। इसके आधार पर शोधकर्ताओं का सुझाव है कि पदार्थ की मात्रा पर ध्यान देना लाभदायक हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)