डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन

चूंकि पूरा शोध पत्र तो केवल विशेषज्ञों और साथी शोधकर्ता ही पढ़ते हैं, इसलिए यह ज़रूरी है कि पर्चे का सारांश सभी के लिए पठनीय और समझने योग्य हो।
चाल्र्स डार्विन की 1859 में प्रकाशित ‘ऑन दी ओरीजिन ऑफ स्पीशीज़’ सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक शोध प्रकाशनों में से एक है। यह मात्र एक पर्चा नहीं बल्कि पूरी किताब थी। इसे केवल जीव विज्ञानियों द्वारा ही नहीं पढ़ा और समझा गया था बल्कि गणितज्ञ, दार्शनिकों, इतिहासकारों और यहां तक कि आम पाठकों द्वारा भी पढ़ा और समझा गया था। पर अफसोस की बात है कि आजकल की वैज्ञानिक रिपोट्र्स सहकर्मियों द्वारा भी अपठनीय और समझ से परे होती जा रही हैं। स्वीडन स्थित केरोलिंस्का इंस्टिट्यूट के तंत्रिका वैज्ञानिकों के एक समूह के मुताबिक “समय के साथ वैज्ञानिक टेक्स्ट की पठनीयता कम होती जा रही है।”

इस समूह ने पिछले 34 वर्षों (सन 1980-2015) में प्रकाशित लगभग 7,09,577 शोध पत्रों की भाषाओं का विश्लेषण किया। गौरतलब है कि समूह ने न केवल पूरे शोध पत्रों का बल्कि उनके सारांश का भी विश्लेषण किया। सारांश में बहुत ही संक्षेप में पर्चे के मुख्य संदेश को बयां किया जाता है कि सवाल क्या है, सवाल की पड़ताल के लिए कौन-सा तरीका इस्तेमाल किया गया है, परिणाम क्या प्राप्त हुए और मुख्य निष्कर्ष क्या थे। अत: सारांश केवल उस क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए नहीं बल्कि गैर-विशेषज्ञों और इच्छुक पाठकों के लिए भी है। और यही सारांश पाठकों को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। केवल विशेषज्ञ और साथी शोधकर्ता, जो शोध पत्र के विषय में रुचि रखते हैं, पूरा पर्चा और उसके सभी खंडों को पढ़ते हैं। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि सारांश सभी पाठकों के लिए पठनीय और समझने योग्य हो।

आकलन कैसे करें?
पठनीयता के स्तर का निर्धारण कैसे किया जाए? सन 1948 में चलते हैं; डॉ. आर. फ्लेश ने अंग्रेज़ी भाषा के पाठों की पठनीयता के लिए “मापदंड” तय किए थे। ये इन बिन्दुओं पर आधारित थे (1) प्रत्येक शब्द में सिलेबल्स (अंग्रेज़ी में शब्द को शब्द खंडों में बांटा जाता है, प्रत्येक खंड को सिलेबल कहते हैं) की संख्या और (2) प्रत्येक वाक्य में शब्दों की संख्या। अमेरिका में फ्लेश पठन सुगमता (एफआरई) पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे के लिए 100-90 के बीच होनी चाहिए। (“A cat sat on a mat” वाक्य का एफआरई 110 है, जो प्राथमिक स्कूली छात्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है)। रीडर्स डायजेस्ट पत्रिका का एफआरई 65 है, जो हाई स्कूल के छात्रों या उससे आगे के छात्रों के लिए है। दूसरी तरफ “हार्वड बिज़नेस स्कूल रिव्यू” (जटिल और विशिष्ट तकनीकी भाषा के साथ) का एफआरई 30 है। अर्थात एफआरई मानक जितना कम होगा वह पाठ उतना ही ज़्यादा कठिन और अपठनीय होगा।

सन 1980 में प्रकाशित वैज्ञानिक सारांश एफआरई मानक 30 ही हुआ करते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लेकर आज तक 10 से भी नीचे पहुंच चुके हैं। चिंता की बात है कि 1.6 लाख (करीब सभी पत्रिकाओं के 20 प्रतिशत लेखों) सारांश का एफआरई शून्य है। एक एम.एससी. स्नातक भी इन्हें समझने में नाकाम हो सकता है। विशिष्ट पत्रिकाओं को छोड़ दें (अपने विशेष शब्द और शब्दजाल के साथ), मगर नेचर और साइंस जैसी “सामान्य” पत्रिकाओं के बारे में भी यह बात एकदम सही बैठती है। खासकर पिछले 60 वर्षों से पठनीयता को तेज़ी से मुश्किल बनाते हुए प्रति शब्द सिलेबल्स लगभग दो गुना बढ़ गए हैं और कठिन शब्दों (जिन्हें एनडीसी कहते हैं) का चलन भी 35 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत तक हो गया है।

पठनीयता में ये मुश्किलें क्यों पैदा हुर्इं? स्वीडन समूह के लेखकों का कहना है कि इसकी दो वजहें हैं। पहली कि प्रत्येक शोध पत्र में सह-लेखकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ गई है। दरअसल, आजकल शायद ही हमें एकल-लेखक पर्चे देखने को मिलें (शायद केवल गणित में)। प्रत्येक सह-लेखक अपनी बात पाठ में जोड़ना चाहेगा, यानी कई रसोइये मिलकर खाना खराब कर देते हैं वाली स्थिति। दूसरी वजह यह लगती है कि वैज्ञानिक शब्दावली बहुत बढ़ गई है। यह शब्दावली अपने आप में एक भाषा बन गई है (वे इसे  “science-ese”, कहते हैं। “legal-ese” जैसा सुनाई पड़ता है)। और मामला केवल वैज्ञानिक शब्दावली का नहीं है बल्कि इन दिनों “novel”, “robust”, “significant”,“distinct”, “underlying” और“suggestive”जैसे अन्य शब्दों का उपयोग भी बढ़ा है।

केरोलिंस्का समूह के निष्कर्ष उद्धरित करने योग्य हैं। उन्होंने लिखा है, “कम पठनीयता का मतलब कम पहुंच, खासकर गैर-विशेषज्ञों (जैसे पत्रकार, नीति निर्माताओं और व्यापक जनता) के लिए... कोई पत्रकार (इसे पढ़कर) गलत जानकारी दे दे तो वैज्ञानिक विश्वसनीयता कभी-कभार मुश्किल में भी पड़ सकती है... आगे सबसे बड़ी चिंता आधुनिक समाज की है जो वास्तविकता को लेकर ढीला-ढाला रवैया अपनाने लगा है, इसके मद्देनज़र विज्ञान को सबसे सटीक ज्ञान को आगे बढ़ाना चाहिए। एक मैदानी सुझाव यह है कि साहित्य को संप्रेषणीय बनाने के लिए एक “सामान्य सारांश” रखना चाहिए। एक प्रस्ताव है कि विज्ञान-संचार स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा का एक अहम हिस्सा बनाना चाहिए।”
अंत में, लेखक ने खुद के पर्चों का मूल्यांकन करके उन्हें एफआरई पैमाने पर 49 और सारांश को 40 पाया है। मुझे उम्मीद है कि मेरा यह लेख इस पैमाने पर सही है।

कोई प्रकाशित पर्चा पढ़ना और समझना तो मुश्किल है। आप सोचेंगे कि किसी सेमिनार में इसे सुनने से आसानी होगी। अरे नहीं! इन दिनों वक्ता आधुनिक यंत्र जिसे पावरपाइंट कहते हैं का इस्तेमाल करते हैं और इसे और बदतर बना देते हैं। प्रत्येक स्लाइड ऊपर से लेकर नीचे तक शब्दों और चित्रों से लदी होती है। अक्सर और ज़्यादातर ये उन्हीं पर्चों का काटकर चिपकाया संस्करण होती हैं। जैसे ही रोशनी मंद होती है वक्ता पूरी स्लाइड एक के बाद एक पढ़ता चला जाता है और पूरी चीज़ उबाऊ बन जाती है। एफआरई और एनडीसी में अंकित मानक जैसे शब्दों (फॉन्ट) का आकार, प्रत्येक स्लाइड में लाइनों की संख्या, और कलर कंट्रास्ट पावरपाइंट प्रस्तुति को आकर्षक बना सकते हैं। जैसे हम वैज्ञानिक लेखन के लिए कोर्सेस और वर्कशॉप्स चाहते हैं उसी तरह ऑडियो-विज़ुअल साधनों के उपयोग के साथ मौखिक प्रस्तुतियों के लिए भी कोर्स होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो यदि हम सेमिनार के दौरान सो जाएं तो मुझे दोष मत देना। (स्रोत फीचर्स)