वैज्ञानिक कभी-कभी मनुष्य की कैंसर कोशिकाओं को चूहों में प्रत्यारोपित करके कैंसर का अध्ययन करते हैं। इसी तरह के अध्ययन तब भी किए जाते हैं जब यह तय करना हो कि किसी मरीज़ में ट्यूमर के खिलाफ कीमोथेरपी का कौन-सा रूप सर्वोत्तम रहेगा। ऐसे प्रत्यारोपण को मरीज़ से प्राप्त ज़ीनोग्राफ्ट (पीडीएक्स) कहते हैं। मगर हाल ही में नेचर जेनेटिक्स शोध पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि कैंसर के ऐसे चूहा-मॉडल शायद बहुत उपयोगी न हों।

पीडीएक्स को लेकर यह अध्ययन कैंम्ब्रिाज स्थित ब्रॉडइंस्टिट्यूटके कैंसर जेनेटिक्स विशेषज्ञ टॉड गोलब और उनके साथियों ने किया है। उनका कहना है कि जब मनुष्य की कैंसर कोशिका को चूहे में प्रत्यारोपित किया जाता है तो उसके विकास का क्रम ही बदल जाता है। इसके चलते उस कैंसर कोशिका के जीनोम में फेरबदल हो जाते हैं। लिहाज़ा ज़रूरी नहीं कि इस कैंसर के अध्ययन से प्राप्त परिणाम उस व्यक्ति के लिए सही बैठें जिससे यह कैंसर कोशिका मूलत: प्राप्त की गई थी।

उदाहरण के लिए अध्ययन में देखा गया कि चूहों में प्रत्यारोपित कैंसर कोशिका जिस ढंग से बदलती है, वह मनुष्य में उसके व्यवहार से सर्वथा भिन्न होता है। जैसे, मनुष्य के मस्तिष्क के एक कैंसर - ग्लायोब्लास्टोमा - में कैंसर कोशिका गुणसूत्र क्रमांक 7 की अतिरिक्त प्रतियां हासिल कर लेती है, जबकि चूहों में प्रत्यारोपण के बाद वही कोशिका इन अतिरिक्त प्रतियों को गंवा देती है। यह भी देखा गया कि चूहा मॉडल में कैंसर जिस दवा के प्रति संवेदी होता है, मनुष्य में वही दवा कारगर नहीं रहती।

वैसे यह बात तो सभी शोधकर्ता मानते हैं कि ऐसा कोई भी मॉडल तैयार करें, वह यथार्थ का पूरा प्रतिनिधित्व नहीं करता। पहली बात तो यह होती है कि जब चूहे के शरीर में ऐसी बाहरी कोशिका का प्रत्यारोपण किया जाता है तो चूहे का प्रतिरक्षा तंत्र उस पर आक्रमण करता है। इसलिए उस कैंसर कोशिका को बचाने के लिए चूहे के प्रतिरक्षा तंत्र को निष्क्रिय करना पड़ता है। ज़ाहिर है यह वास्तविक परिस्थिति का बदला हुआ रूप है, खास तौर से इसलिए क्योंकि कैंसर उपचार में आजकल इस बात पर काफी ज़ोर दिया जा रहा है कि व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र को कैंसर के विरुद्ध सक्रिय किया जाए, और पीडीएक्स में हम प्रतिरक्षा तंत्र को ही निठल्ला बना दे रहे हैं।

दूसरी समस्या यह है कि चूहे में कैंसर कोशिका प्रत्यारोपित करने के बाद उसका विकास होने में काफी समय लगता है। हो सकता है कि मरीज़ को तुरंत कीमोथेरपी की ज़रूरत हो। ऐसी स्थिति में चूहा-मॉडल से जानकारी प्राप्त होने की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती।

अध्ययन के निष्कर्षों के बावजूद कई शोधकर्ताओं का मत है कि पीडीएक्स एक उपयोगी तकनीक है और इसे छोड़ना मुश्किल है। परख नली में कैंसर कोशिका के अध्ययन से तो यह बेहतर ही है। दूसरी बात यह है कि इस तकनीक में तेज़ी से तरक्की हो रही है। जैसे, पहले मरीज़ की कैंसर कोशिका को चूहे की त्वचा के नीचे प्रत्यारोपित किया जाता था मगर अब इसे उसी अंग में प्रत्यारोपित किया जाता है, जहां से मूलत: यह निकाली गई है। (स्रोत फीचर्स)