तारे ज़मीन पर फिल्म ने डिसलेक्सिया नामक तकलीफ को रेखांकित करने में  मदद की थी। डिसलेक्सिया वह स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति को पढ़ने में दिक्कत होती है। यह तकलीफ लगभग 5 से 10 प्रतिशत व्यक्तियों में होती है। ताज़ा अनुसंधान से लगता है कि इसका सम्बंध दोनों आंखों के एक समान होने से है।
पहले माना जाता था कि डिसलेक्सिया का सम्बंध दृष्टि की समस्या से है। किंतु 1950 के दशक में किए गए अध्ययनों से स्पष्ट हुआ था कि डिसलेक्सिया मात्र दृष्टि की दिक्कत नहीं है बल्कि इसका सम्बंध मस्तिष्क में सूचनाओं के प्रोसेसिंग से भी है। एक धारणा यह बनी थी कि डिसलेक्सिया से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क में कार्यों का पार्श्व-विभाजन थोड़ा कमज़ोर होता है। पार्श्वविभाजन से आशय है कि सामान्यत: सूचना प्रोसेसिंग के कुछ कार्य मस्तिष्क के दाहिने भाग द्वारा तथा कुछ कार्य बाएं भाग द्वारा किए जाते हैं। दृष्टि भी इसी प्रकार का कार्य है।

हम आम तौर पर यह महसूस नहीं करते किंतु हमारी दोनों आंखें चीज़ों को थोड़ा अलग-अलग देखती हैं। मस्तिष्क में दोनों आंखों से प्राप्त अलग-अलग सूचनाओं को प्रोसेस करके दृश्य के बारे में निर्णय लिए जाते हैं। इसमें होता यह है कि मस्तिष्क किसी एक आंख से प्राप्त सूचना को थोड़ी ज़्यादा तरजीह देता है। इस आंख को प्रमुख आंख कह सकते हैं। फ्रांस के रेने विश्वविद्यालय के गाय रोपर्स और ए.ली. फ्लॉक ने अपने अध्ययन में डिसलेक्सिया ग्रस्त लोगों में एक बात यह पाई कि उनमें कोई आंख प्रमुख आंख नहीं होती। दोनों आंखें बराबर वर्चस्व रखती हैं।

वैसे यह पता करने के लिए कई परीक्षण उपलब्ध हैं कि आपकी कौन-सी आंख प्रमुख आंख है। जैसे आप एक कार्ड के बीचोंबीच एक गोल सुराख कर लीजिए और उसमें किसी चीज़ पर नज़र टिकाइए। अब इस कार्ड को धीरे-धीरे अपनी चेहरे की तरफ लाइए और यह पता लगाइए कि उस वस्तु को कौन-सी आंख देख रही थी। यह तरीका है तो बड़ा आसान मगर इसमें कई गड़बड़ियों की संभावना रहती है। लिहाज़ा रोपर और ली फ्लॉक ने एक अलग ही विधि ईजाद की।

इस नवीन विधि से 30 सामान्य व्यक्तियों की जांच करने पर पता चला कि उनमें से 19 की दाईं आंख तथा 11 की बाईं आंख प्रमुख थी। किंतु डिसलेक्सिया से पीड़ित 30 में से 27 व्यक्तियों में कोई भी आंख प्रमुख आंख नहीं थी।

उक्त शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि प्रमुख आंख की अनुपस्थिति आंखों में भौतिक अंतरों से भी मेल खाती है। हमारी आंख में प्रतिबिंब रेटिना नामक पर्दे पर बनता है। रेटिना में भी एक केंद्रीय हिस्सा होता है जिस पर सबसे स्पष्ट प्रतिबिंब बनता है। इस हिस्से को फोविया कहते हैं।  फोविया के बीच वाले हिस्से में लाल व हरे रंग के प्रति संवेदी शंकु कोशिकाएं पाई जाती है जबकि नीली संवेदी कोशिकाओं का अभाव होता है। इस क्षेत्र को मैक्सवेल सेंट्रॉइड कहते हैं। यदि किसी सफेद फलक को एक नीले फिल्टर से देखेंगे तो मैक्सवेल सेंट्रॉइड अंधकारमय रहेगा। जिन लोगों में एक आंख प्रमुख होती है उनमें प्रमुख आंख में मैक्सवेल सेंट्रॉइड गोलाकार नज़र आता है जबकि दूसरी आंख में थोड़ा अंडाकार होता है। जिन लोगों में दोनों आंखें एक समान होती हैं उनमें यह दोनों आंखों में गोलाकार ही नज़र आता है। इसका विश्लेषण करके शोधकर्ता आंखों की असममिति का शारीरिक आधार देख पाए।

शोधकर्ताओं का मत है कि जब मस्तिष्क दोनों आंखों को वरीयता देता है और दोनों से प्राप्त सूचनाओं का प्रोसेसिंग करता है तो अक्षर पढ़ने में परेशानी होती है। (स्रोत फीचर्स)