मनीष श्रीवास्तव

हाल ही में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग ने कहा कि उन्होंने एक ऐसे ऐप का निर्माण किया है जिसमें कृत्रिम बुद्धि के ज़रिए वे अपने घर के सारे ज़रूरी काम कर सकते हैं। इसे उन्होंने जारविस नाम दिया है। उन्हें जारविस को सिर्फ निर्देश देने होते हैं और वह उनके बताए काम को पल भर में कर देता है। इसे कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलता कहा जा रहा है। हालांकि इससे पहले भी वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण प्रयोग करके दिखाए थे लेकिन इस बार ज़ुकरबर्ग ने कृत्रिम बुद्धि के ज़रिए हमारे भविष्य में आने वाले बदलावों सेे रूबरू करवाया है।

आज का पूरा परिदृश्य तकनीकी क्रांति से होकर गुज़र रहा है। कई मानवीय कार्यों में मशीनी यंत्रों का उपयोग हो रहा है जो शारीरिक और मानसिक, दोनों कार्यों को बेहद आसानी से सम्पन्न कर रहे हैं। इन मशीनों को मानव निर्देशों के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। ये मशीनें इस तरह से बनाई जाती हैं कि वे किसी कार्य विशेष को ही सम्पन्न कर सकती हैं। मशीन स्वयं के दिमाग से कोई निर्णय लेने में सक्षम नहीं होती है। इसी अवस्था को और विकसित करते हुए वैज्ञानिक मशीनों को स्व-निर्णय लेने वाली स्थिति में पहुंचाने के प्रयास कर रहे हैं, जिसके लिए आवश्यकता है कृत्रिम बुद्धि की। वैज्ञानिक इस दिशा में कुछ हद तक कामयाब भी हुए हैं। कृत्रिम बुद्धि मानव सभ्यता के भविष्य को पूरी तरह बदलने की क्षमता रखती है। 

कृत्रिम बुद्धि का इतिहास
यूनान के कई धर्मग्रंथों में बुद्धिमान मशीनों के संदर्भ मिलते हैं। इसके अलावा मानवीय कार्य करने वाली सबसे पहली मशीन चीन में उपयोग किए जाने वाले अबैकस (कैल्क्युलेटर) को माना जाता है। सैद्धांतिक रूप से माना जाता है कि कृत्रिम बुद्धि का आरंभ 1950 के दशक से हुआ था। सन 1955 में जॉन मेककार्थी ने सबसे पहले कृत्रिम बुद्धि (आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस) शब्द दिया था। कृत्रिम बुद्धि के महत्व को ठीक से 1970 के दशक में पहचाना गया। जापान ऐसा देश रहा जिसने सबसे पहले इस ओर पहल की। उन्होंने सन 1981 में जनरेशन नाम से एक योजना की शुरुआत की थी। इसमें सुपर कंप्यूटर के विकास के लिए दस वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। जापान के बाद अन्य देशों ने भी इस ओर ध्यान दिया। ब्रिाटेन ने इसके लिए एल्वी नाम का एक प्रोजेक्ट बनाया। युरोपीय संघ के देशों ने भी एक साथ मिलकर एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी जिसे एस्प्रिट नाम दिया गया।

इसके बाद 1983 में कुछ प्रायवेट संस्थाओं ने मिलकर कृत्रिम बुद्धि पर लागू होने वाली उन्नत तकनीकों जैसे वीएलएसआई का विकास करने के लिए एक संघ की स्थापना की। इस संघ को माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स एंड कंप्यूटर टेक्नालॉजी के नाम से जाना गया। बाद में कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में हुई आशातीत प्रगति और बेहतर परिणामों को देखते हुए कई बड़ी कंपनियों, जैसे आईबीएम, डीईसी, एटी एंड टी ने भी अपने-अपने अनुसंधान कार्यक्रमों की शुरुआत की। धीरे-धीरे हुए अनुसंधानों से इस क्षेत्र में कई अच्छे परिणाम प्राप्त होते गए। विशेषकर जापान ने ऐसे रोबोट बनाने में सफलता प्राप्त कर ली जो घर के कई काम स्वयं कर सकता है। 

कृत्रिम बुद्धि क्या है?
कृत्रिम बुद्धि को कई विशेषज्ञों ने अपनी तरह से परिभाषित किया है। हर्बर्ट साइमन के अनुसार, “प्रोग्रामों को बुद्धिमान तब माना जाता है जब वे ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करें जैसा व्यवहार मनुष्यों द्वारा किए जाने पर उन्हें बुद्धिमत्तापूर्ण माना जाएगा।” एलेन रिच और केविन नाइट के अनुसार, “कृत्रिम बुद्धि इस बात का अध्ययन है कि कंप्यूटर को उन कार्यों को कर पाने में किस प्रकार सक्षम बनाया जाए जिन्हें इंसान फिलहाल बेहतर ढंग से करते हैं।” पैट्रिक विंस्टन के अनुसार, “कृत्रिम बुद्धि उन विचारों का अध्ययन है जो कंप्यूटर को बुद्धिमान बनने की क्षमता प्रदान करते हैं।”
सरल शब्दों में कहा जाए तो कृत्रिम बुद्धि कंप्यूटर साइंस की एक शाखा है जिसमें मशीन को कृत्रिम बुद्धि देने का काम किया जाता है। रोबोट सहित अन्य मशीनें इसी श्रेणी में आती हैं। कृत्रिम बुद्धि का उद्देश्य यह है कि मशीन खुद तय करे कि उसकी अगली गतिविधि क्या होगी।

विशेषज्ञों के अनुसार कृत्रिम बुद्धि में कुछ बुनियादी विशेषताएं होनी चाहिए। पहली, मनुष्यों की तरह विचार करने या कार्य करने में सक्षम हो। दूसरी, तार्किक रूप से विचार करने या कार्य करने में सक्षम हो। समय के साथ कृत्रिम बुद्धि से बनी मशीनों में वृद्धि होती गई। इसलिए इन्हें विशेषज्ञों नेे तीन श्रेणियों में विभाजित कर दिया है -  
1. दुर्बल कृत्रिम बुद्धि - सिर्फ एक ही प्रकार के कार्य को अच्छे से करने में सक्षम होती है और मनुष्यों द्वारा भरी गई जानकारी के आधार पर कार्य करने तक सीमित होती हैं।
2. सशक्त कृत्रिम बुद्धि - ऐसी मशीन और मानव मस्तिष्क लगभग एक जैसी ही बुद्धि रखते हैं। जो काम मनुष्य कर रहा है वो हर काम यदि रोबोट या मशीन करने लगे तो उसे सशक्त एआई की श्रेणी में रखा जाता है।
3. सिंगुलैरिटी - इस श्रेणी मे मशीन स्वयं का निर्माण करने में सक्षम हो जाती हैं। वे स्वयं के निर्णय के अनुसार कुछ नया आविष्कार भी कर सकती हैं।
कृत्रिम बुद्धि का उपयोग

आज इस क्षेत्र में क्रमिक विकास करते हुए लगभग 100 करोड़ डॉलर का बाज़ार तैयार हो गया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक यह बाज़ार 35,000 करोड़ डॉलर का हो जाएगा। आज कई क्षेत्रों में इसके माध्यम से कार्य किए जा रहे हैं। जैसे -

  • वीडियो गेम्स इस तरह से बनाए जा रहे हैं कि कंप्यूटर अपने प्रतिस्पर्धी इंसान के साथ स्वयं की सूझबूझ से खेल सके। इसका सबसे अच्छा उदाहरण शतरंज खेलने वाला कंप्यूटर है। इसे मानव मस्तिष्क की तरह हर अगली चाल सोचने के लिए प्रोग्राम किया गया है। यह प्रयोग इतना सफल रहा है कि मई 1997 में आईबीएम का एक कंप्यूटर विश्व के सबसे नामी खिलाड़ी गैरी कास्परोव को हरा चुका है।
  • किसी दुर्घटना में अपने शरीर के अंगों को खो चुके लोगों के लिए कृत्रिम अंगों का निर्माण किया जा रहा है। ये कृत्रिम अंग दिमाग में लगे सेंसर से संचालित होते हैं।
  • घरेलू या अन्य कार्यों को करने के लिए रोबोट तैयार किए जा रहे हैं। इन्हें इस तरह से प्रोग्राम किया जा रहा है कि ये निश्चित कार्यों को करते हुए परिस्थितिवश स्वयं निर्णय ले सकें।
  • ऐसी मशीनें बना ली गई हैं जो किसी लिखे हुए पाठ को इंसान की तरह ही पहचान कर पढ़ सकती हैं।
  • आटो पायलट मोड पर वायुयान संचालित किए जा सकते हैं।

विशेषज्ञों की राय
कृत्रिम बुद्धि के कई लाभ होने के बाद भी विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत नहीं है कि यह भविष्य के लिए वरदान ही सिद्ध होगी। इस बारे में अपनी राय रखते हुए कंप्यूटर साइंटिस्ट रेमंड कुर्ज़वील का कहना है कि “कृत्रिम बुद्धि हमारी जीवनशैली का हिस्सा है। इसे मानव जाति को तबाह करने वाली, किसी दूसरे ग्रह की बुद्धिमान मशीन के हमले की तरह नहीं समझना चाहिए। मशीनें पहले से ही कई क्षेत्रों में मानव बुद्धिमता के बराबर काम कर रही हैं। भविष्य में कृत्रिम बुद्धि मानव बुद्धि से अधिक श्रेष्ठ होगी। तब इस अवस्था को टेक्नॉलॉजीकल सिंग्युलेरिटी कहा जाएगा।” इस बारे में प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का कहना है कि “एक दिन कृत्रिम बुद्धि अपना नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगी और खुद को फिर से तैयार करेगी। यह लगातार बढ़ती ही जाएगी। चूंकि जैविक रूप से इंसान का विकास धीमी गति से होता है इसलिए वह ऐसी प्रणाली से प्रतियोगिता नहीं कर पाएगा और पिछड़ जाएगा।”

अनुसंधानों के नतीजों से कह सकते हैं कि शुरू में लोगों के शारीरिक श्रम की जगह मशीनों ने ले ली थी, अब स्व-चालित मशीनें बहुत कम समय में लोगों के मानसिक कार्य करने लगी हैं। जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में प्रगति होती जाएगी मनुष्य के कार्य मशीनों द्वारा अधिक बेहतर और सुविधाजनक तरीके से होते जाएंगे। किन्तु इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि यदि मशीनें स्वयं निर्णय लेने लगीं तो फिर वे कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगी। (स्रोत फीचर्स)