जीव-जंतुओं में आपस में संवाद के कई रूप हैं। इनमें से कुछ पर काफी अनुसंधान हुआ है। जैसे पक्षियों के गीत, शेरों की दहाड़ वगैरह। मगर शोधकर्ताओं ने हाल ही में पता किया है कि चिक्लिड मछलियों की एक प्रजाति में पेशाब का उपयोग एक संदेश संकेत के रूप में किया जाता है। इस संप्रेषण का उपयोग खास तौर से एक-दूसरे को डराने-धमकाने और दादागिरी के लिए किया जाता है।
शोधकर्ताओं ने बिहेविओरल इकॉलॉजी एंड सोश्योबायोलॉजी नामक शोध पत्रिका में अपने प्रयोगों का विवरण प्रकाशित किया है। शोधकर्ताओं ने छोटी और बड़ी मछलियों को एक टंकी में रखा और बीच में एक पारदर्शी विभाजक लगा दिया। विभाजक दो तरह के थे। एक किस्म के विभाजक में छेद बने हुए थे जबकि दूसरे किस्म का विभाजक साबुत था। जहां छेद वाले विभाजक में से पानी का आवागमन हो सकता था वहीं साबुत विभाजक में मछलियां सिर्फ एक-दूसरे को देख सकती थीं मगर पानी इधर का इधर और उधर का उधर ही रहता था।

इसके बाद शोधकर्ता दल ने इन मछलियों को एक ऐसे पदार्थ का इंजेक्शन लगाया जिसने इनकी पेशाब का रंग नीला कर दिया। जैसे ही मछलियों ने एक-दूसरे को देखा वे अपने पंख उठाकर विभाजक की ओर झपटीं। इस दौरान उनका मूत्र त्याग का ढंग भी बदल गया।
छेदवाले विभाजक के मामले में तो जल्दी ही छोटी मछलियों ने दब्बू रुख अपना लिया। मगर जो मछलियां साबुत विभाजक के दोनों और थीं वे एक-दूसरे की पेशाब के संपर्क में नहीं आ रही थीं। शोधकर्ताओें ने देखा कि इस वाले प्रयोग में मछलियां अपना संदेश भेजने की जद्दोजहद में और ज़्यादा पेशाब करने लगीं। देखा गया कि मूत्र-संदेश के अभाव में छोटी मछलियों ने विभाजक पर पहुंचकर बड़ी मछलियों पर हमला तक करने का प्रयास किया।
शोधकर्ताओं को लगता है कि जंतुओं के बीच संवाद के ऐसे कई और तरीके हो सकते हैं जिनके बारे में हमने सोचा तक नहीं है। जैसे रासायनिक संकेतों के अलावा जंतु कंपनों, विद्युत और पराबैंगनी प्रकाश का भी इस्तेमाल करते हैं। इन प्रयोगों से तो लगता है कि हमें ऐसे कई अन्य संवाद-संकेतों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)