भारत डोगरा


ओझियाना पंचायत (ज़िला भीलवाड़ा) राजस्थान के भेरु सिंह ने 21 वर्ष तक खदान में काम किया। इस दौरान उसने दो बार तपेदिक का इलाज करवाया। यह तो उसे बाद में ही पता चला कि लौट-लौट कर पीड़ित करने वाली बीमारी वास्तव में तपेदिक नहीं बल्कि सिलिकोसिस है। उसे सिलिकोसिस बीमारी का प्रमाण पत्र तो मिल गया पर राहत अभी तक नहीं मिली है। उसके पेंशन के निवेदन को यह कह कर अस्वीकार कर दिया गया कि उसके घर में शौचालय नहीं है।
इसी ज़िले के आसिंद प्रखंड के भंवर लाल नायक ने खनन का कार्य तो बहुत पहले छोड़ दिया था, पर उस कार्य के दौरान जिस सिलिका धूल ने उसके फेफड़ों में प्रवेश किया, उसके कारण सिलिकोसिस बीमारी ने बाद में उसे जकड़ दिया। उसे बहुत लंबे समय तक प्रयास के बावजूद अभी तक राहत राशि नहीं मिली है।

आसिंद तहसील की ही पूनी देवी भी सिलिकोसिस से पीड़ित हैं। कुछ समय पहले उनके पति की मृत्यु सिलिकोसिस से हुई पर इसका प्रमाण पत्र न होने के कारण परिवार को आज तक मुआवज़ा राशि नहीं मिल सकी है।
ये कुछ उदाहरण हैं सिलिकोसिस से प्रभावित व्यक्तियों व परिवारों की त्रासदी के - एक त्रासदी जो आज राजस्थान में बहुत व्यापक रूप में उपस्थित है। राजस्थान में तरह-तरह के पत्थर का खनन व उसे तोड़ने, घिसने-पीसने आदि का काम बहुत बड़े स्तर पर होता है। इस कार्य में उड़ने वाली धूल से बचाव के समुचित उपाय न होने के कारण यहां सिलिकोसिस की गंभीर बीमारी बड़े पैमाने पर नज़र आती है।
इस बीमारी से जुड़ी बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी की ओर ध्यान दिलाने के लिए 4 जनवरी को भीलवाड़ा में सिलिकोसिस पर एक जन सुनवाई का आयोजन मज़दूर किसान शक्ति संगठन ने किया था। इस जन सुनवाई का एक उद्देश्य यह भी था कि सिलिकोसिस से पीड़ित व्यक्तियों व उनके परिवारों को राहत देने की प्रक्रिया को मज़बूत किया जाए, इसमें होने वाली देरी को दूर किया जाए।

जिन श्रमिकों को सिलिकोसिस बीमारी हुई है उनके उपचार एवं पुनर्वास के लिए श्रम विभाग द्वारा भवन निर्माण पंजीयन बोर्ड में प्रत्येक श्रमिक को पंजीकृत करने एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन श्रमिकों की स्वास्थ्य जांच कर इन्हें सिलिकोसिस प्रमाण पत्र जारी करने का प्रावधान है जिसके आधार पर उनको सरकारी सहायता के रूप में 1 लाख रुपए इलाज में मदद और 3 लाख रुपए पीड़ित की मृत्यु पर उसके परिवार को दिए जाते हैं। परंतु देखा गया है कि मुआवज़े की यह राशि पीड़ितों को समय पर नहीं मिल पाती। जन सुनवाई में कुछ ऐसे मामले भी सामने आए जहां मुआवज़े की राह देखते-देखते कई पीड़ितों की मृत्यु तक हो गई है।

सुनवाई में भीलवाड़ा के ज़िला कलेक्टर भी पहुंचे थे। उन्होंने वहां उपस्थित लोगों को आश्वस्त किया कि 1 फरवरी 2017 से ज़िले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सिलिकोसिस की जांच की जाएगी और सिलिकोसिस पीड़ित होने की संभावना होने पर उनको टोकन जारी किया जाएगा। न्यूमोकोसिस बोर्ड के पास यही लोग जाएंगे जिससे तुरंत प्रमाण पत्र मिल सकेगा। उन्होंने यह आश्वासन भी दिया कि जिन लोगों को प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाएगा उनको कलेक्ट्रेट या कहीं और किसी सरकारी दफ्तर में जाने की ज़रूरत नहीं है। यह प्रमाण पत्र सीधे ही कलेक्टर दफ्तर पहुंच जाएगा। सभी दस्तावेज़ तहसीलदार और पटवारी व ग्रामसेवक के माध्यम से ले लिए जाएंगे और उसके बाद उनके बैंक खाते में भुगतान कर दिया जाएगा।
इस तरह सिलिकोसिस पीड़ित मज़दूरों को शीघ्र राहत देने की एक महत्वपूर्ण शुरुआत इस जन सुनवाई से हुई है तथा उम्मीद है कि इस तरह के प्रयास अन्य सिलिकोसिस प्रभावित व्यक्तियों व परिवारों को राहत देने के लिए किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त सिलिकोसिस से बचाव के लिए व कार्यस्थलों पर इसकी संभावना को न्यूनतम करने के लिए भी व्यापक स्तर के असरदार प्रयास बहुत ज़रूरी हैं। (स्रोत फीचर्स)