डॉ. विजय कुमार उपाध्याय


भारत की पौराणिक कथाओं के मुताबिक देवताओं ने अमृतपान किया था जिसके फलस्वरूप वे अजर-अमर हो गए थे। न तो कभी उन पर बुढ़ापा आता था, और न उनकी मृत्यु होती थी। बुढ़ापे और मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के प्रयास आधुनिक काल के वैज्ञानिक भी काफी लंबे अरसे से करते आए हैं। हाल के शोध से इस दिशा में सफलता की कुछ किरणें नज़र आने लगी हैं।
यह जानते हुए भी कि मृत्यु अपरिहार्य है, मानव को अमरता प्राप्त करने की लालसा सदा से रही है। आधुनिक वैज्ञानिक नए-नए अविष्कारों की बदौलत अभी तक अमरता तो नहीं प्राप्त कर सके हैं, परन्तु मानव को सौ-डेढ़ सौ वर्षों की आयु दिलाने में सक्षम होते दिखाई पड़ रहे हैं। प्रमुख शोध पत्रिका लैंसेट में कुछ समय पूर्व प्रकाशित एक शोध पत्र में बताया गया है कि सन 1990 में विश्व स्तर पर मानव की औसत आयु जहां सिर्फ 65.5 वर्ष थी, वहीं अब स्वास्थ्य सुविधाओं में विकास के कारण यह 71.5 वर्ष हो गई। भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि दस वर्ष पहले की तुलना में आज पुरुषों की औसत आयु पांच वर्ष बढ़ कर 67.3 वर्ष और महिलाओं की औसत आयु बढ़कर 69.6 वर्ष हो गई है। उम्मीद है कि चिकित्सा विज्ञान में तेज़ी से हो रहे विकास के फलस्वरूप लोगों की औसत आयु में लगातार वृद्धि होती रहेगी।
सितम्बर 2013 में गूगल द्वारा कैलिफोर्निया लाइफ कम्पनी (कैलिको) की स्थापना की गई। इस कम्पनी का मुख्य उद्देश्य ऐसे वैज्ञानिक तरीकों की खोज करना है जिनके द्वारा मानव की औसत आयु में वृद्धि की जा सके। संयुक्त राज्य अमेरिका की एक कम्पनी का नाम है सिंथिया केन्यन। इस कम्पनी के वैज्ञानिकों को कुछ समय पूर्व कुछ कीटों के जीवन काल को 6 गुना बढ़ाने में सफलता मिली थी। यह कम्पनी भी कैलिको कम्पनी से जुड़ गई है।
अमेरिका के एक प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक क्रेग वेंटर ने ह्यूमन लॉन्गेविटी नामक कम्पनी की स्थापना की है। इस कम्पनी की योजना है कि 2020 तक दस लाख मानव जीनोम अनुक्रम का डैटा बेस तैयार कर लिया जाए। इस डैटा बेस में उन लोगों के आंकड़े भी शामिल होंगे जिनकी उम्र सौ से अधिक हो चुकी है। क्रेग वेंटर का विश्वास है कि उनकी कम्पनी द्वारा तैयार डैटा बैस उन वैज्ञानिकों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा जो मनुष्य के औसत जीवन काल को बढ़ाने की दिशा में शोध करने में लगे हुए हैं। इस दिशा में उपयोगी शोध करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार देने की भी योजना बनाई गई है। अमेरिका में एक अन्य ऐसे ही पुरस्कार की घोषणा की गई है जिसका नाम रखा गया है पौलो आल्टो लॉन्गेविटी पुरस्कार। इसमें हर वर्ष दस लाख डॉलर का पुरस्कार ऐसे व्यक्ति को दिया जाएगा जिसने मनुष्य के औसत जीवन काल को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण खोज की हो। इस पुरस्कार का उद्देश्य ऐसी विधि की खोज कराना है जिसके द्वारा मनुष्य के जीवन काल की अधिकतम सीमा 120 वर्ष से ऊपर ले जाई जा सके। इस पुरस्कार की स्थापना अमेरिका के एक बड़े व्यवसायी जून यून द्वारा की गई है।

सन 2013 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में कार्यरत कुछ वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोज भी काफी चर्चित रही थी। इस शोध से पता चला था कि बूढ़े चूहों में एक विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन की कमी हो जाती है। दो वर्ष की आयु वाले एक चूहे के शरीर में जब यह प्रोटीन प्रविष्ट कराया गया तो उसके शरीर के ऊतक 6 महीने के चूहे के समान हो गए। इसके अलावा कुछ ऐसी औषधियां भी हैं जिनका उपयोग बुढ़ापे को कुछ हद तक रोकने में कारगर पाया गया है। ऐसी ही एक दवा का नाम है मेटमार्फिन जो सामान्य तौर पर मधुमेह के रोगियों को दी जाती है। एक अन्य दवा है रेपामारबिन जो अंग प्रत्यारोपण तथा एक विशेष प्रकार के कैंसर की चिकित्सा हेतु उपयोग में लाई जाती है। जब चूहों पर इसका प्रयोग किया गया तो उनके जीवन काल में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।    
आयु वृद्धि हेतु दवाओं के अलावा कुछ अन्य विधियां भी कारगर पाई गई हैं। जैसे, कुछ शोधकर्त्ताओं ने पशुओं पर किए गए प्रयोगों से निष्कर्ष निकाला है कि ज़रूरत से कम आहार का सेवन भी आयु को बढ़ाता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि जब जानवरों को सीमित मात्रा में आहार उपलब्ध कराया गया तो वे अधिक समय तक जीवित रहे। एक अन्य शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि यदि युवा चूहे का खून बूढ़े चूहे के खून में प्रविष्ट करा दिया जाए तो उसकी मानसिक क्षमता बहाल हो जाती है। वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या अल्ज़ाइमर रोगियों पर भी ऐसा ही प्रभाव पड़ सकता है? इसके लिए प्रयोग किए जा रहे हैं।

वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि शरीर को चलाने वाली अलग-अलग प्रणालियां समय के साथ सुस्त क्यों पड़ जाती हैं और फिर पूरी तरह रुक क्यों जाती हैं? इस प्रश्न के उत्तर में ही अजरता-अमरता का राज़ छिपा है। संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित सेंस फाउंडेशन के संस्थापक तथा प्रसिद्ध आणविक जीव वैज्ञानिक आउब्रे डी ग्रे का विचार है कि हमारा शरीर एक प्रकार की जैविक मशीन है। इसमें समय के साथ होने वाली खराबियों (अर्थात बीमारियों) का इलाज करके इस मशीन को चालू रखा जा सकता है।
अब वैज्ञानिक यह पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या मानव सदैव यौवनावस्था में रह सकता है? पिछले कुछ समय में वैज्ञानिक शोध काफी तेज़ी से इस दिशा में बढ़ा है। सन 2014 के अंत में अमेरिका के साक इंस्टिट्यूट फॉर बायोलॉजिकल स्टडीज़ में कार्यरत कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने वह स्विच ढूंढ लिया है जिसका बुढ़ापा शु डिग्री करने से सीधा सम्बंध है। वस्तुत: हमारे शरीर में टेलोमरेज़ नामक एक ऐसा एंजाइम मौजूद है जो हमारी कोशिकाओं को बढ़ने का निर्देश देता है। जब इस एंजाइम की कमी होने लगती है तो नई कोशिकाएं बनना बंद होने लगती हैं जिसके कारण बुढ़ापे की शुरुआत हो जाती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब शरीर में टेलोमरेज़ बनाने वाला स्विच निष्क्रिय हो जाता है तो बुढ़ापे का आगमन होने लगता है। उन्हें आशा है कि यदि इस स्विच को नियंत्रित किया जाए तो बुढ़ापे के आगमन को रोका जा सकता है।
वैज्ञानिक इस बात का पता लगा चुके हैं कि वस्तुत: यौवन का राज़ शरीर के बाहर नहीं बल्कि शरीर के अन्दर डी.एन.ए. में छिपा है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए डी.एन.ए. से जुड़ी जैविक घड़ी को खोज लिया है। युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में एपिडेमियोलॉजी एण्ड कम्युनिटी हेल्थ डिपार्टमेंट की प्राध्यापिका श्रीमती वोनी केली ने विचार व्यक्त किया है कि यह घड़ी शरीर में मौजूद कोशिकाओं, ऊतकों, और अंगों की उम्र की गणना करती है। केली का मानना है कि यदि इस घड़ी में बढ़ती उम्र की प्रक्रिया को उलट दिया जाए तो व्यक्ति चिरयुवा बना रह सकता है।

वैज्ञानिक इस घड़ी का अध्ययन गहराई से कर रहे हैं। वे समझने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या यह जैविक घड़ी जवान बने रहने की गुत्थी सुलझा पाएगी? क्या यह घड़ी बुढ़ापा लाने वाले कारकों को नियंत्रित कर पाएगी? यदि हम समझ जाएं कि हमारी उम्र कैसे बढ़ती है तो हम इस प्रक्रिया को उलट सकते हैं। इस घड़ी की क्रिया-प्रणाली को समझकर जवान बने रहने और बुढ़ापे को दूर रखने का रहस्य समझा जा सकता है।
वैज्ञानिक इस दिशा में भी काम कर रहे हैं कि यदि बुढ़ापे के कारण और इससे पैदा होने वाली समस्याओं की जड़ तक पहुंचा जाए तो बुढ़ापे को आने से रोका जा सकेगा। मानव जीनोम का अनुक्रम पता लगाकर सबसे पहली कृत्रिम कोशिका का निर्माण करने वाले अमरीकी वैज्ञानिक क्रेग वेंटर का अगला शोध इसी विषय से जुड़ा है। इस परियोजना में क्रेग वेंटर के साथ स्टेम कोशिका की खोज करने वाले डॉ. रॉबर्ट हरीरी भी शामिल हैं। इन दोनों ने मिल कर ह्युमन लॉन्गेविटी नाम की एक कम्पनी बनाई है। यहां जीनोमिक्स और स्टेम कोशिका सम्बंधी जानकारी को मिलाकर बुढ़ापे से लड़ने और जवान बने रहने के तरीके ढूंढे जाएंगे। (स्रोत फीचर्स)