वैश्विक मौसम विज्ञान संगठन का मत है कि जलवायु व मौसम की अति परिस्थितियां 2017 में भी जारी हैं। वर्ष 2016 में विश्व का औसत तापमान औद्योगिकरण से पूर्व के समय की अपेक्षा 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा था और इसने 2015 के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था।
पिछले वर्ष समुद्र असामान्य रूप से गर्म रहे थे। इसके कारण बर्फ पिघलने की गति में तेज़ी देखी गई। आर्कटिक सागर में बर्फ लगभग पूरे साल औसत से कम रहा। इसके साथ ही दक्षिणी व पूर्वी अफ्रीका तथा मध्य अमेरिका में भीषण सूखे की स्थिति बनी रही। ऐसी ही इन्तहाई परिस्थितियां 2017 में जारी हैं - आर्कटिक क्षेत्र में जाड़े के दिनों में वहां के लिहाज़ से तीन बार ग्रीष्म लहर चली है। आर्कटिक में हुए परिवर्तनों का असर अन्य स्थानों के मौसम पर भी हुआ है। कनाडा व यूएस में मौसम गर्म रहा जबकि अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका में असामान्य रूप से ठंड के हालात बने रहे। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में जनवरी व फरवरी में ग्रीष्म लहर चलती रही।

और तो और, 2016 के एल नीनो का असर समाप्त होने तथा 2017 में एल नीनो की अनुपस्थिति के बावजूद मौसम में अजीबोगरीब परिवर्तन देखे जा रहे हैं। एल नीनो प्रशांत महासागर की एक स्थिति है जिसकी वजह से विश्व का तापमान बढ़ता है। 2016 में एल नीनो की वजह से तापमान में वृद्धि 0.1 से 0.2 डिग्री सेल्सियस के बीच हुई थी। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 अब तक के रिकॉर्ड आंकड़ों के हिसाब से सबसे गर्म वर्ष रहा था - यह वर्ष औद्योगिकरण से पूर्व की तुलना में पूरे 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म रहा।
धरती के वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि जारी है और यह औसत तापमान की वृद्धि में योगदान दे रही है। इससे यह भी स्पष्ट है कि वर्तमान मौसम परिवर्तन के रुझानों के पीछे मुख्य रूप से मनुष्य के क्रियाकलापों की भूमिका है।
विश्व स्तर पर देखें तो समुद्री बर्फ की मात्रा नवंबर 2016 में औसत से लगभग 40 लाख वर्ग किलोमीटर कम थी। जाड़ों के अंत में आर्कटिक सागर पर बर्फ 1979 के बाद से सबसे कम स्तर पर रहा। नवंबर 2014 के मुकाबले फरवरी 2016 में समुद्र तल 15 मिली मीटर ऊपर रहा। यह पिछले वर्षों में देखी गई औसत वृद्धि (3 से 3.5 मि.मी.) से बहुत ज़्यादा है। समुद्रों का पानी गर्म बना हुआ है जिसकी वजह से मूंगा सहित विभिन्न समुद्री जीव प्रभावित हो रहे हैं।
जहां एक ओर दक्षिण अफ्रीका में और अमेज़न कछार तथा ब्राज़ील में सूखे की स्थिति रही वहीं चीन की यांगत्से नदी घाटी में भयानक बाढ़ का नज़ारा बना रहा।
कुल मिलाकर 2017 में भी हमें इन्तहाई मौसम की घटनाएं देखने को मिल सकती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक अब हम एक ऐसे धरातल पर पहुंच गए हैं जिसके भूगोल का हमें तनिक भी अंदाज़ा नहीं है। (स्रोत फीचर्स)