मुंह में रेत आ जाए, तो बहुत बुरा लगता है। ऐसा लगता है कि पौधे इस बात को जानते हैं और इसीलिए उन्होंने शाकाहारियों से अपने बचाव के लिए रेत का उपयोग किया है। रेत कुछ और नहीं, सिलिकॉन ऑक्साइड यानी सिलिका के कण होते हैं जो खुरदरे होने की वजह से चमड़ी को छीलते-खरोंचते हैं।
घासों में खास तौर से काफी मात्रा में सिलिकॉन पाया जाता है। इसे वे मिट्टी से सोखते हैं और सिलिका में तबदील कर लेते हैं। कई घासों में तो उनके सूखे वज़न के 10 प्रतिशत से भी ज़्यादा सिलिकॉन होता है। यह सिलिका उनकी पत्तियों में जमा हो जाता है जिसकी वजह से वे न सिर्फ अपघर्षक (खरोंचे पैदा करने वाली) हो जाती हैं बल्कि  पाचन की दृष्टि भी कठिन हो जाती हैं।
पत्तियों में रेत के महत्व का आकलन करने के लिए सिडनी विश्वविद्यालय के जेम्स रॉयल्स और उनके साथियों ने ऑस्ट्रेलिया के चारागाहों में पाई जाने वाली एक आम घास (फेलेरिस एक्वेटिका) पर कुछ प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि ऐसी सिलिकॉन (रेत) युक्त घास को झिंगुर कम खाते हैं।

शोधकर्ताओं ने फेलेरिस एक्वेटिका की दो क्यारियां लगाईं। इनमें से एक में सिलिकॉन के घोल से सिंचाई की गई जबकि दूसरे क्यारी में सादा पानी दिया गया। सिलिकॉन घोल से सिंचित घास के पौधों ने ज़्यादा मात्रा में सिलिकॉन का अवशोषण कर लिया - जहां सामान्य पानी से सिंचित घास में सिलिकॉन की मात्रा 0.86 प्रतिशत थी वहीं सिलिकॉन घोल से सिंचित घास में सिलिकॉन की मात्रा 1.16 प्रतिशत पाई गई। और जब झिंगुरों को ये दो तरह की घास खाने को दी गईं तो उन्होंने सिलिकॉन युक्त घास काफी कम खाई और उनका वज़न भी सामान्य झिंगुरों की तुलना में औसतन कम रहा।
और तो और, जब ये झिंगुर उनके शिकारियों (प्रेईंग मैन्टिस नामक कीट) को पेश किए गए तो शिकारियों ने सिलिकॉन युक्त घास पर पले झिंगुरों को कम पसंद किया। 24 घंटे में जहां मैन्टिस ने 6 में से 5 सामान्य झिंगुर खा लिए वहीं सिलिकॉन युक्त 6 झिंगुरों में से मात्र तीन ही खाए। संभवत: सिलिकॉन-युक्त घास पर पले झिंगुर कम आकर्षक थे क्योंकि एक तो उनका वज़न कम था और दूसरे उनके शरीर में रेत ज़्यादा थी। इसका मतलब है कि पौधों में सिलिकॉन का अवशोषण पूरी खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है।

इस अध्ययन से पहली बार यह पता चला है कि पौधे कार्बन और सिलिकॉन की अदला-बदली कर सकते हैं। कार्बन की तरह सिलिकॉन का उपयोग भी पौधों के ढांचे के निर्माण में हो सकता है। दरअसल, एक सिद्धांत यह रहा है कि पौधों में शाकाहारियों से सुरक्षा के लिए सिलिकॉन का उपयोग मायोसीन काल में तब शु डिग्री हुआ था जब वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा कम थी। सिलिकॉन पौधों की कोशिकाओं को भी मज़बूत बनाता है और उन्हें फफूंद, बैक्टीरिया तथा वायरस की घुसपैठ से बचाता है। अब जब वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, तो हो सकता है कि पौधों में सिलिकॉन का अवशोषण कम हो जाए और वे असुरक्षित हो जाएं। (स्रोत फीचर्स)