बच्चों में (यानी मनुष्य के बच्चों में) देखा गया है कि एक बच्चे की हंसी या उछलकूद छूत की तरह फैलती है और पूरे समूह को जकड़ लेती है। इस बात का फायदा कार्टून वगैरह में उठाया जाता है जहां फिल्म के साथ नकली रिकॉर्डेड हंसी भी सुनाई जाती है और यह आपको भी हंसने को बाध्य कर देती है। अब ऐसा ही व्यवहार तोतों में देखा गया है।
वैसे तो तोते कई तरह की आवाज़ें निकालते हैं - चहचहाहट, चीख, सीटी वगैरह। तो ऑस्ट्रिया के पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के राऊल शिं्वग और उनके साथियों ने न्यूज़ीलैण्ड के आर्थर राष्ट्रीय उद्यान में एक प्रयोग करके इन आवाज़ों का असर परखा। वे यह तो जानते थे कि तोते कई बार खेलकूद जैसा व्यवहार करते हैं। शोधकर्ताओं ने उपरोक्त अलग-अलग आवाज़ों की रिकॉर्ड बजाकर उसके असर को देखा। एक आवाज़ वहीं पाए जाने वाले एक पक्षी की चेतावनी की पुकार भी थी।
उन्होंने पाया कि जैसे ही चहचहाहट की रिकॉर्ड बजी, आसपास बैठे सारे तोते खेलकूद में लीन हो गए। वे एक-दूसरे से खेलने लगे, पास में पड़ी चीज़ों से खेलने लगे और हवा में कलाबाज़ियां करने लगे। जैसे ही रिकॉर्ड बंद किया गया, तोते वापिस अपने-अपने काम में लग गए। और ऐसा भी नहीं था कि यह व्यवहार सिर्फ बच्चा तोतों में देखा गया। वयस्क तोते भी चहचहाहट की रिकॉर्ड सुनकर खेलने के मूड में आ गए। इसमें उन्होंने ऐसे तोतों को भी शामिल कर लिया जो वैसे खेलकूद में भाग नहीं लिया करते। शेष आवाज़ों का ऐसा कोई असर नहीं देखा गया।

इस तरह भावुक व्यवहार की छूत लगने की बात इंसानों के अलावा, उसके निकट सम्बंधी जंतुओं में ही देखी गई थी। इनमें चूहे और चिम्पैंज़ी शामिल हैं। इसके अलावा कुत्तों में भी देखा गया है कि एक कुत्ता खेलने और उछलने-कूदने के मूड में आ जाए तो पूरा समूह उसमें रम जाता है। मगर इनमें आम तौर पर पिल्ले ही शामिल होते हैं।
करंट बायोलॉजी में शोधकर्ताओं ने विचार व्यक्त किया है कि पहली बार पक्षियों में इस तरह का छूत वाला व्यवहार देखा गया है। पक्षी और मनुष्य बहुत निकट सम्बंधी नहीं हैं। इसलिए लगता है कि ऐसा व्यवहार जंतु जगत में शायद ज़्यादा सामान्य होगा। यदि ऐसा है तो इस तरह के व्यवहार की भूमिका पर विचार करना ज़रूरी हो जाएगा। अब शोधकर्ता इसका अध्ययन अन्य जंतुओं में करना चाहते हैं। (स्रोत फीचर्स)