शिकारी से बचने के लिए जंतु कई स्वांग करते हैं। जैसे कुछ जंतु किसी विषैले जंतु की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं। उन्हें देखकर शिकारी उन्हें विषैला (पूर्व अनुभव के आधार पर) मानकर जाने देता है। कुछ जंतु ऐसा रंग-रूप अपना लेते हैं कि वे अपने परिवेश में घुल-मिल जाते हैं। तब वे शिकारी को नज़र ही नहीं आते और बचे रहते हैं। किंतु इन सबसे अनोखा एक पतंगा है जिसकी शक्ल सूरत अपने शिकारी से ही मिलती-जुलती है।
ब्रेंथिया कोरोनीजेरा (Brenthia coronigera) नामक यह पतंगा इंडो-चीन का वासी है। इसका शिकार मूलत: मकड़ियां करती हैं। और मकड़ियों से बचने की इसकी रणनीति यह है कि यह मकड़ियों जैसा दिखता है। इसके पंखों पर कुछ पैटर्न होते हैं जो आंखों जैसे दिखते हैं और इसके पंख कुछ इस तरह ऐंठे हुए हैं कि वे रोमदार टांगों जैसे दिखते हैं। और तो और, अन्य पतंगों के समान यह पंख फड़फड़ाकर उड़ता नहीं है बल्कि फुदकने वाली मकड़ियों के समान फुदकता है। कुल मिलाकर यह एक बड़ी मकड़ी जैसा दिखता है। इसे देखकर मकड़ियां इस पर हमला नहीं करतीं। छोटी मकड़ियां तो डरकर भाग जाती हैं क्योंकि मकड़ियां एक-दूसरे को खाने से भी नहीं चूकतीं। बड़ी मकड़ी इसे देखती है तो हमला करने की बजाय प्रेम प्रदर्शन करती है।

ताईवान के नेशनल सुन यातसेन विश्वविद्यालय शेन-हॉर्न येन और साथी जानना चाहते थे कि उपरोक्त तीन रणनीतियों में से कौन-सी सबसे कारगर रहती है। उन्होंने सबसे पहले सामान्य रूप से पाया जाने वाला ब्रेंथिया कोरोनीजेरा पतंगा तथा कुछ अन्य पतंगे मकड़ियों को पेश किए। मकड़ी ने शेष पतंगों को खा लिया किंतु ब्रेंथिया कोरोनीजेरा के साथ टांगें लहराकर प्रेम प्रदर्शन किया।
अब उन्होंने ब्रेंथिया कोरोनीजेरा के पंख के आंखनुमा धब्बे पोत दिए। अब इन्हें देखने पर मकड़ी मज़े से इन्हें खा गई। इससे पता चलता है कि आंखनुमा धब्बे इन पतंगों की रक्षा करते हैं। अगले प्रयोग में पतंगों को फ्रीज़ कर दिया गया ताकि वे कोई हरकत न कर सकें। इस बार भी मकड़ियां उन्हें खा गईं।
अपने प्रयोगों के आधार पर शोधकर्ताओं ने एनिमल बिहेवियर जर्नल में बताया है कि उपरोक्त तीनों रणनीतियां मिलकर प्रभावी होती हैं। (स्रोत फीचर्स)