प्रोफेसर राव को पच्चीस से भी ज़्यादा विश्वविद्यालयों तथा युरोप के सबसे पुराने विश्वविद्यालय बोलोना (इटली) द्वारा डी.एससी. की उपाधि प्राप्त हो चुकी है। भारत सरकार द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें 1976 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। पहले भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक के रूप में प्रोफेसर राव को 19 मार्च 2013 को वाशिंगटन डीसी (यूएसए) द्वारा सैटेलाइट हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया। राव ने 1972 से 1984 के दौरान इसरो केन्द्र, बैंगलु डिग्री के निदेशक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद उन्होंने 1984 से 1994 तक इसरो के चेयरमैन पद पर तथा अंतरिक्ष विभाग के सचिव पद पर रहकर कार्य किया। वर्तमान में अहमदाबाद की भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में गवर्निंग काउंसिल में चैयरमेन के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। राव प्रसार भारती के सबसे पहले चैयरमेन भी रह चुके हैं। इस वर्ष उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण सम्मान दिया गया है।

उडुपी रामचंद्र राव का जन्म 10 मार्च 1932 में अडमारु में पिता लक्ष्मीनारायण राव और माता कृष्णावल्ली के घर हुआ। अपने गांव से ही उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। पढ़ाई में गहरी रुचि के चलते आगे चलकर उन्होंने 1951 में मद्रास विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय में स्नातक किया और 1953 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.एस. की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की।
पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला में कॉस्मिक किरण विषय पर डॉ. विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में 1960 में पीएच.डी. करने के बाद उन्हें 1961 में बोस्टन के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से पोस्ट डॉक्टरल फैलोशिप प्राप्त हुई। वहां उन्होंने कॉस्मिक किरण और सौर पवन से सम्बंधित विषयों पर गहन शोध किया। दो वर्षों तक अध्ययन के बाद 1963 से 1966 तक टेक्सास विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में अध्यापन कार्य किया।
विदेश में उच्च अध्ययन और अध्यापन करने के बाद 1966 में राव भारत लौटकर पुन: भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला में शोध कार्य करने लगे। यहां उन्होंने कॉस्मिक किरण विषय के अंतर्गत एक्स किरण और गामा किरण से सम्बंधित विषयों पर गूढ़ अध्ययन किया। इस अध्ययन में रॉकेट और सैटेलाइट से सम्बंधित जानकारियां निहित थीं। बाद में राव ने 1968 से 1970 तक भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दीं। 1970 में उनकी प्रोफेसर के रूप में पदोन्नति हो गई। इस पद पर रहकर उन्होंने दो वर्ष तक कार्य किया। इसके बाद 1972 में राव को इसरो के बैंगलु डिग्री स्थित सैटेलाइट केन्द्र में निदेशक के पद पर सेवा देने का अवसर प्राप्त हुआ।

उनके द्वारा किए गए शोध से ही हम अमेरिकन सैटेलाइट पायोनियर 1 और पायोनियर 2 से सम्बंधित आंकड़ों को बेहतर ढंग से समझ पाए। राव पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने शोध कार्य से पृथ्वी का अध्ययन कर भू-चुंबकीय तूफान और सौर पवन के बीच सम्बंध स्थापित करने में सफलता पाई। उनके द्वारा किए गए अध्ययन बेहद सटीक और उपयोगी साबित हुए। विशेषकर सैटेलाइट पायोनियर 6, 7, 8 और 9 के स्पष्ट विश्लेषण के लिए उन्हें 1973 में नासा द्वारा ग्रुप एचीवमेंट सम्मान से सम्मानित किया गया।
डॉ. विक्रम साराभाई की मृत्यु के बाद प्रो. राव ने अपना सारा ध्यान अंतरिक्ष विज्ञान की ओर लगाते हुए सैटेलाइट टेक्नॉलॉजी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत अपना पहला सैटेलाइट छोड़ने में कामयाब हुआ। राव की देखरेख में पहले सैटेलाइट आर्यभट की डिज़ाइन तैयार की गई, उसका परीक्षण किया गया और सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। यह सैटेलाइट के क्षेत्र में भारत का आगाज़ था। इसके बाद कई और महत्वपूर्ण सैटेलाइट छोड़ने में सफलता मिली।

1984 में राव को इसरो का चेयरमैन और अंतरिक्ष कमीशन का सचिव नियुक्त किया गया। इन पदों पर रहते हुए राव ने सफलता के कई आयामों को छुआ। उनके मार्गदर्शन में ही भारत ने प्रक्षेपण यान एएसएलवी बनाने में कामयाबी हासिल की। यह 150 किलोग्राम तक पेलोड आसानी से निचली अंतरिक्ष कक्षा में स्थापित कर सकता था। भारत के सबसे सफल प्रक्षेपण यान पीएसएलवी का निर्माण भी उन्हीं की देखरेख में संभव हुआ। इसके माध्यम से 1000 किलोग्राम तक पेलोड अंतरिक्ष कक्षा में स्थापित किया जा सकता था।  
प्रोफेसर राव के ब्रह्माण्डीय किरणें, उच्च ऊर्जा, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष उपयोग और उपग्रह तथा रॉकेट प्रौद्योगिकी पर 360 से अधिक वैज्ञानिक और तकनीकी आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं।
प्रोफेसर राव ने अपना पूरा जीवन विज्ञान को समर्पित किया है। उन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। आज वे भारत के साथ ही पूरी दुनिया में जाना-पहचाना नाम हैं। विज्ञान के क्षेत्र में दी गई सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। (स्रोत फीचर्स)