टी. रेक्स डायनासौर की एक प्रजाति थी जिसका पूरा नाम है टायरेनोसौरस रेक्स। यह एक विशालकाय प्राणि था। यह बहस चलती रही है कि टी. रेक्स की त्वचा चमकदार पंखों के ढंकी थी या नहीं। टी. रेक्स के कई निकट सम्बंधियों में पंख (दरअसल पिच्छ) और प्राक-पिच्छ मिलने से यह बहस और तीव्र हो गई थी। किंतु टी. रेक्स को लेकर कोई प्रत्यक्ष प्रमाण न होने की वजह से निष्कर्ष निकालना मुश्किल था।

इस परिस्थिति में कुछ वैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों न टी. रेक्स की त्वचा के जीवाश्म को देखा जाए। ऐसा एक जीवाश्म टेक्सास के ह्रूस्टन प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय में वर्ष 2006 से रखा हुआ था। यहां रखे प्रादर्श को नाम दिया गया है वायरेक्स। वायरेक्स की गर्दन, कूल्हे और पूंछ की त्वचा के जीवाश्म यहां संरक्षित हैं। जब इस जीवाश्म का बारीकी से विश्लेषण किया गया तो पिच्छों के कोई निशान नहीं मिले। पूरी त्वचा सिर्फ चिकने शल्कों से ढंकी हुई थी।
वैज्ञानिकों ने उसी काल में जीवित रहे अन्य टायरेनोसौरस की त्वचाओं का भी अवलोकन किया। वायरेक्स के समान अलबर्टोसौरस और गॉर्गोसौरस की त्वचा भी शल्कों से ही ढंकी थी। ये परिणाम बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं।

चूंकि जिस त्वचा के जीवाश्म उपलब्ध हैं वह सिर्फ गर्दन, कूल्हे और पूंछ की है, इसलिए वैज्ञानिकों का विचार है कि हो सकता है कि टी. रेक्स की त्वचा पर पिच्छ रहे होंगे मगर वे अधिक से अधिक मात्र पीठ वाले भाग पर रहे होंगे। यह तो पक्की बात है कि टी. रेक्स और अन्य विशाल डायनासौरों के पूर्वजों में पिच्छ पाए जाते थे। वैज्ञानिकों का मत है कि संभवत: टी. रेक्स और उसके अन्य सम्बंधियों में पिच्छ गुम हो गए क्योंकि शायद उन्हें पिच्छों से मिलने वाली ऊष्मा कुचालक सतह की ज़रूरत नहीं थी। (स्रोत फीचर्स)