नवनीत कुमार गुप्ता

देश के शीर्ष वैज्ञानिकों में शुमार और देश में आधुनिक जीव विज्ञान के पितामह कहलाने वाले डॉ. पुष्प मित्र भार्गव का लंबी बीमारी के कारण 1 अगस्त को निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे।
डॉ. भार्गव का जन्म 22 फरवरी 1928 को अजमेर में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता रामचंद्र भार्गव जन स्वास्थ्य कर्मी थे। डॉ. भार्गव की शिक्षा उत्तर प्रदेश में हुई थी।
लखनऊ विश्वविद्यालय से 1944 में विज्ञान स्नातक, 1946 में कार्बनिक रसायन में एम.एससी. और फिर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय और उस्मानिया विश्वविद्यालय में शिक्षण किया।

1950-1953 के बीच डॉ. भार्गव हैदराबाद की क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला में रहे। इस संस्थान को आज भारतीय रासायनिकी प्रौद्योगिकी संस्थान के नाम से जाना जाता है। 1953 में वे पोस्टडॉक्टरल फेलोशिप पर अमेरिका चले गए। 1956-1957 में उन्होंने ब्रिाटेन के राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान में विशिष्ट वेलकम ट्रस्ट फेलो के रूप में कार्य किया। यही समय था जब जीव विज्ञान उन्हें आकर्षित करने लगा और उन्होंने जीव विज्ञान में शोध कार्य आरंभ किया। 1958 में भारत लौटकर उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिकी अनुसंधान परिषद की प्रयोगशालाओं में कार्य आरंभ किया। 

1977 में हैदराबाद कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केन्द्र (सीसीएमबी) की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे इस संस्थान के संस्थापक निदेशक थे। आज सीसीएमबी आधुनिक जीव विज्ञान में अग्रणी शोध का एक प्रमुख केंद्र है। डॉ. भार्गव फरवरी 1990 तक सीसीएमबी के निदेशक रहे। उन्होंने कैंसर के उपचार हेतु एक प्रभावी दवा की खोज भी की थी।
जेनेटिक इंजीनियरिंग, तंत्रिका विज्ञान और जीवन की उत्पत्ति सम्बंधी वैज्ञानिक शोध में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है। उनके अनेक शोध पत्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हुए।

उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं। कुछ पुस्तकों का लेखन कार्य उन्होंने अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर भी किया। उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों में टू फेसेस ऑफ ब्यूटी: साइंस एंड आर्ट एवं दी सागा ऑफ इंडियन साइंस सिंस इंडिपेंडेंस: इन ए नटशेल आदि हैं। एनबीटी द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक एंजेल्स डेविल एंड साइंस: ए कलेक्शन ऑफ आर्टिकल ऑन साइंटिफिक टेम्पर को काफी सराहा गया।  
डॉ. भार्गव ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और जनमानस को अंधविश्वासों से दूर करने के लिए अनेक व्याख्यान दिए। विज्ञान संचार के लिए कार्यरत राष्ट्रीय संस्था विज्ञान प्रसार के कई वैज्ञानिक कार्यक्रमों को भी उनका मार्गदर्शन मिला। वे कई सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं से जुड़े रहे। 2005 से 2007 तक वे राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे।

डॉ. भार्गव को देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। वे सीएसआईआर के डिस्टिंगविश्ड फैलो तथा कैंब्रिज के क्लेयर हॉल लाइट फैलो रहे। उन्हें फ्रांस के सर्वोच्च असैनिक सम्मान लेजन ऑफ ऑनर से भी सम्मानित किया गया था। डॉ. भार्गव को 1986 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था किंतु सरकार द्वारा देश में मतभेदों की अभिव्यक्ति की गुंजाइश को कम करने के विरोध में उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया था। (स्रोत फीचर्स)