नींद की कमी या अनिद्रा हम सभी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती है। इसकी वजह से चिड़चिड़ापन, हाथ-पैरों में दर्द वगैरह पैदा होते हैं। किंतु बच्चों में कुछ अन्य प्रभाव होते हैं।
बच्चों में अनिद्रा की वजह से उनकी कोशिकाएं जल्दी बूढ़ी होती हैं जिसका स्वास्थ्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। दरअसल कोशिका की उम्र का सम्बंध उसके गुणसूत्रों पर पाई जाने वाली रचना टीलोमीयर से है।

गुणसूत्रों के अंत में टोपी समान संरचना टीलोमीयर कहलाती है। कोशिकाओं के प्रत्येक विभाजन पर यह छोटी होती जाती है और जब यह बहुत छोटी हो जाती है तो वह कोशिका विभाजन नहीं कर सकती। वयस्कों पर किए गए अध्ययन से लगता है कि टीलोमीयर की लंबाई का सम्बंध नींद से है।
प्रिंसटन युनिवर्सिटी की सारा जेम्स और डेनियल नोटरमैन ने अपनी टीम के साथ मिलकर यूएस के 9 वर्ष की उम्र के 1567 बच्चों की नींद की अवधि का डैटा इकट्ठा किया। इसके अलावा उन्होंने बच्चों की लार के सेम्पल इकट्ठा किए। इस लार के सेम्पल से डीएनए को अलग करके टीलोमीयर की लंबाई का आकलन किया।

उन्होंने पाया कि जो बच्चे कम सोते हैं उनका टीलोमीयर छोटा था। दी जर्नल ऑफ पिडियाट्रिक्स में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक जो बच्चे कम सोते थे उनके टीलोमीयर की लंबाई नींद में प्रत्येक घंटे की कमी से 1.5 प्रतिशत छोटी होती है बजाय पूरी रात सोने वाले बच्चों के।
टीलोमीयर के छोटे आकार का सम्बंध कैंसर, ह्मदय सम्बंधी बीमारियों और संज्ञान में गिरावट से देखा गया है लेकिन इन बच्चों की कम उम्र के चलते उनमें ऐसी किसी भी बीमारी के संकेत तो दिखाई नहीं दिए। जेम्स का कहना है कि अनिद्रा की वजह से बाद की उम्र में इन बीमारियों के जोखिम ज़्यादा हो सकते हैं।

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि वयस्कों के लिए अनिद्रा के साथ-साथ ज़्यादा सोना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन इस अध्ययन में प्रतिभागी बच्चों में ज़्यादा सोने का सीधा सम्बंध टीलोमीयर की अधिक लंबाई के साथ देखा गया है।
हालांकि शोधकर्ता अभी यह नहीं जानते कि इन बच्चों को ज़्यादा नींद मिले तो टीलोमीयर दुबारा ठीक हो सकते हैं या नहीं। लेकिन इस उम्र के बच्चों के लिए यह ज़रूरी है कि वे 9 से 11 घंटों की नींद लें। (स्रोत फीचर्स)