बैंगलुरु स्टेम कोशिका जीव विज्ञान एवं पुनर्जनन चिकित्सा संस्थान के शोधकर्ताओं ने पता किया है कि चपटे कृमियों में प्रकाश के प्रति दो किस्म की संवेदनाएं होती हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इसके आधार पर प्रकाश संवेदना को समझने का एक नया मॉडल विकसित किया जा सकता है।

प्लेनेरिया समूह के इन चपटे कृमियों की एक विशेषता यह होती है कि उनमें शरीर का कोई हिस्सा कट जाए, तो फिर से विकसित हो जाता है। इस क्षमता के चलते ये चपटे कृमि अंग पुनर्जनन के अध्ययन हेतु उपयुक्त मॉडल जंतु रहे हैं। संस्थान के आकाश गुलयानी और उनके साथियों ने ऐसे ही एक कृमि S. mediterranea की प्रकाश संवेदना पर ध्यान केंद्रित किया। उनके अनुसंधान से स्पष्ट हुआ कि इसमें दो एक-दूसरे से सम्बंधित किंतु स्वतंत्र प्रकाश संवेदनाएं पाई जाती हैं। ये कृमि अंधेरे में रहते हैं और प्रकाश से बचने की कोशिश करते हैं। प्रकाश की उपस्थिति को ताड़ने का काम ये एक सीधी-सादी अनुक्रिया के तौर पर करते हैं। ये नीले की बनिस्बत हरे और हरे की बनिस्बत लाल प्रकाश की ओर भागते हैं। गुलयानी की टीम ने पाया कि इनकी प्रकाश को ताड़ने की क्षमता सिर के कट जाने के बाद भी बरकरार रहती है, हालांकि सिर कट जाने के बाद ये दृश्य प्रकाश के प्रति नहीं बल्कि पराबैंगनी प्रकाश के प्रति अनुक्रिया करते हैं। फिर जब सिर वापिस ‘उग’ आता है तो दृश्य प्रकाश के प्रति संवेदना भी लौट आती है।

गुलयानी के मुताबिक यह हैरत की बात है कि एक ही जीव में दो तरह की प्रकाश संवेदना मौजूद है: एक पूरे शरीर में फैली संवेदना और एक सिर पर उपस्थिति नेत्रों में केंद्रित संवेदना। इसका यह भी अर्थ है कि ये कृमि सिर कट जाने पर अनुक्रिया को पूरे शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश के आधार पर व्यक्त करते हैं और सिर विकसित हो जाने पर वापिस नेत्र आधारित अनुक्रिया पर लौट आते हैं।
उनके मुताबिक यह प्रक्रिया हमें नेत्र आधारित दृष्टि की मरम्मत के बारे में काफी कुछ बता सकती है। साइन्स एडवांसेस शोध पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में गुलयानी ने कहा है कि वे इन कृमियों की दृष्टि बहाली को समझने के लिए एक मॉडल के रूप में विकसित करने का प्रयास करेंगे। (स्रोत फीचर्स)