ततैया की एक मामूली गुंजन हम में से कई लोगों को डराने के लिए काफी है। इसका विषैला डंक न सिर्फ मनुष्यों के लिए बल्कि कई प्राणियों के लिए काफी दर्दनाक होता है। ऐसे में मात्र गुंजन की ध्वनि जंतुओं को डरा कर भगाने के लिए काफी है। अलबत्ता ऐसे जंतु भी हैं जो इस गुंजन का बड़ी चालाकी से अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार माउस-इयर्ड चमगादड़, ततैया जैसे डंक मारने वाले कीड़ों की ध्वनि की नकल करते हैं ताकि अपने शिकारियों को डराकर सुरक्षित रह सकें।
प्रकृति में ऐसे कई जंतु और पौधे हैं जो होशियारी से अन्य जीवों के लक्षणों की नकल करते हैं। उदाहरण के लिए, हानिरहित स्कारलेट किंग स्नेक (लैंप्रोपेल्टिस इलेप्सॉइड्स) खुद को बचाने के लिए विषैले कोरल स्नेक (मिकरूरस फल्वियस) की लाल और काली धारियों को धारण करता है।
लेकिन इन लक्षणों में ध्वनि की नकल के उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं। युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के जीव विज्ञानी डेविड फेनिग का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे मामले मौजूद नहीं हैं बल्कि इन ध्वनियों की पहचान करना काफी कठिन होता है। मनुष्य बहुत हद तक दृष्टि पर आश्रित हैं और ऐसी कई ध्वनियां हैं जिन्हें हम नहीं सुन सकते।
शोधकर्ताओं को चमगादड़ों द्वारा इस तरह की ध्वनि उत्पन्न करने की जानकारी संयोगवश प्राप्त हुई। आज से लगभग दो दशक पूर्व युनिवर्सिटी ऑफ नेपल्स फेडेरिको II के पारिस्थितिकिविद डैनीलो रूसो ने दक्षिण-पूर्वी इटली में फील्डवर्क के दौरान कुछ माउस-इयर्ड चमगादड़ों (मायोटिस मायोटिस) को जाल में पकड़ा। युरोप में पाए जाने वाले इन चमगादड़ों का आकार चूहों के बराबर होता है। रूसो ने पाया कि जब भी वे इन्हें अपने जाल से हटाने के लिए पकड़ते तो वे ततैया की गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न करते। रूसो को लगा कि यह ध्वनि बचाव का साधन है।
माउस-इयर्ड चमगादड़ों के सबसे बड़े शिकारी उल्लू हैं जो आम तौर पर पेड़ के कोटरों या चट्टान की दरारों में रहते हैं। इन्हीं स्थानों में ततैया जैसे कीट भी पाए जाते हैं। रूसो ने अंदाज़ा लगाया कि चमगादड़ मधुमक्खियों के गुंजन की नकल उल्लुओं को भगाने के लिए करते हैं। हालांकि इस सवाल का जवाब खोजने में उन्हें कई वर्ष लग गए और चमगादड़ विशेषज्ञों की मदद लेनी पड़ी।
इसके लिए शोधकर्ताओं ने माइक्रोफोन की मदद से जंगली चमगादड़ों की ध्वनि को रिकॉर्ड किया। इसके बाद उन्होंने इन ध्वनियों की तुलना मधुमक्खियों (एपिस मेलिफेरा) और युरोपीय हॉर्नेट (वेस्पा क्रैब्रो) की प्राकृतिक ध्वनि से करने के लिए एक कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया। ये दोनों प्रकार की मधुमक्खियां चमगादड़ों और उल्लुओं के साथ आवास स्थान साझा करती हैं। शोधकर्ताओं द्वारा तैयार किया गया यह प्रोग्राम चमगादड़ों और कीटों के बीच अंतर 50 प्रतिशत बार ही समझ पाने में सक्षम हो पाया जिससे संकेत मिलता है कि इन चमगादड़ों की आवाज़ और इन कीटों की आवाज़ में काफी समानता है।
इसके बाद वैज्ञानिकों ने इस इस गुंजन के प्रति शिकारियों की प्रतिक्रिया का परीक्षण करने के लिए प्रयोगशाला में एक प्रयोग किया। उन्होंने कीटों और उल्लुओं दोनों की ध्वनियां बजाईं और सामने 8 बार्न उल्लू और 8 टोनी उल्लू रखे। ये उल्लू काटने वाले कीटों के साथ उन्हीं दरारों में रहते हैं। इनमें से आधे उल्लू कैद में रखे गए थे जबकि शेष जंगली थे। इसके अलावा बिना गुंजन वाली चमगादड़ प्रजाति की ध्वनि को भी तुलना के लिए बजाया गया। इसके बाद टीम ने उल्लुओं की प्रतिक्रियाओं को निम्नानुसार वर्गीकृत किया - भाग निकलना, हमला करना या स्पीकर का निरीक्षण करना।
उल्लुओं ने चमगादड़ों और कीटों दोनों की ध्वनियों पर यही प्रतिक्रिया दी कि वे स्पीकर से दूर चले गए। रूसो के अनुसार जंगली उल्लुओं ने इन ध्वनियों के प्रति अधिक सशक्त प्रतिक्रिया दी जो संभवत: कीटों से उनके पूर्व-संपर्क के कारण हो सकता है। कुछ उल्लू इस शोर को सुनकर दूर भागने की कोशिश करने लगे जबकि कैद में रहे उल्लुओं ने भागने की कोई कोशिश नहीं की।
करंट बायोलॉजी में प्रकाशित यह अध्ययन किसी स्तनधारी जीव द्वारा कीट की ध्वनि की नकल करने का पहला ज्ञात मामला है। (स्रोत फीचर्स)