प्राचीन माया सभ्यता के लोगों का मानना था कि उनकी सांसेंं परमात्मा से जुड़ने की एक कड़ी है। इसलिए सांसों को शुद्ध रखने के लिए कई लोग अपने दांतों को घिस कर चिकना, पैना बनाते थे, चमकाते थे, और कुछ तो उनमें रत्न भी जड़वाते थे। अब, एक ताज़ा विश्लेषण संभावना जताता है कि इन रत्नों को जमाए रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मसाले (सीलेंट) में चिकित्सकीय गुण भी थे।
दरअसल माया सभ्यता के लोग वयस्कता की दहलीज़ पर पहुंचने पर एक संस्कार के रूप में अपने दांतो में रत्न जड़वाते थे। दंत चिकित्सक दांतों के एनेमल और डेन्टाइन में छेद करके रत्न को सीलेंट की मदद से जड़ देते थे। यह सीलेंट पक्का और टिकाऊ जोड़ बिठाता था: खुदाई में मिले रत्नजड़ित दांतों में से आधे से अधिक दांतों में अब तक रत्न जड़े हुए हैं।
पूर्व अध्ययनों में इन सीलेंट में सीमेंट और हाइड्रॉक्सीएपेटाइट जैसे अकार्बनिक पदार्थ मिले थे। ये पदार्थ मिश्रण को मज़बूती तो देते हैं लेकिन संभवतः रत्न की पकड़ बनाए रखने के लिए पर्याप्त चिपकू नहीं होते।
रत्नों को क्या जोड़े रखता है? यह जानने के लिए सेंटर फॉर रिसर्च एंड एडवांस्ड स्टडीज़ की जैव रसायनज्ञ ग्लोरिया हर्नेन्डेज़ बोलियो और उनकी टीम ने खुदाई में पाए गए आठ दांतों के सीलेंट का विश्लेषण किया। उन्होंने दो तकनीकों का इस्तेमाल किया: पहली, कार्बनिक यौगिकों द्वारा अवशोषित प्रकाश की मात्रा के आधार पर वर्गीकरण; और दूसरी, ऊष्मा की मदद से रासायनिक मिश्रण का पृथक्करण।
सीलेंट में करीब 150 कार्बनिक अणु मिले जो सामान्यत: पौधों से निकलने वाले रेज़िन में पाए जाते हैं। ये नतीजे जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस: रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं। प्रत्येक नमूने में पौधों से प्राप्त रेज़िन या गोंद जैसा एक चिपकाऊ घटक मिला। नमूनों के सांख्यिकीय विश्लेषण में पाया गया कि सीलेंट चार अलग-अलग क्षेत्रों के हैं, जिससे लगता है कि स्थानीय चिकित्सकों का सीलेंट बनाने का अपना-अपना तरीका था। और वे सीलेंट में किसी घटक को उसके गुण व ज़रूरत के हिसाब से मिलाते थे।
अधिकांश नमूनों में चीड़ के वृक्षों में मिलने वाले घटक पाए गए। अन्य अध्ययनों में देखा गया है कि ये घटक दांतों में सड़न पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ते हैं। दो दांतों में स्क्लेरियोलाइड नामक यौगिक मिला, जिसमें जीवाणु-रोधी और संक्रमण-रोधी गुण होते हैं। आधुनिक होंडुरास और ग्वाटेमाला के सीमावर्ती क्षेत्रों से प्राप्त सीलेंट में पुदीना के वाष्पशील तेल भी मिले हैं, जिसमें संभवत: शोथ-रोधी गुण होते हैं। यह घटक अन्य जगहों के नमूनों में नहीं मिला है।
माया सभ्यता के लोगों के लिए तो सबसे महत्वपूर्ण गुण जोड़े रखने का गुण था। वैसे वर्तमान माया लोग आज भी इन पौधों का औषधीय गुणों के लिए उपयोग करते हैं, इससे लगता है कि प्राचीन लोग इनके प्रभावों/गुणों से भली-भांति परिचित थे।
बहरहाल, लगता है कि माया दंत चिकित्सक न केवल अपने काम में माहिर थे, बल्कि वे जानते थे कि रत्न जड़ने की इस प्रक्रिया के साइड प्रभावों से कैसे बचा जाए। (स्रोत फीचर्स)