जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर दिखने लगा है। अतिसार, हैजा, पेचिश, तथा मियादी बुखार जैसी संक्रामक बीमारियां बढ़ने लगी है। तापमान में वृद्धि के कारण कई बीमारियां, ऐसे क्षेत्रों में फैलने लगी हैं जहां पहले नहीं होती थीं। जैसे डेंगू बुखार फैलाने वाले मच्छर सामान्यतः समुद्र तल से 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर नहीं पाए जाते थे, किंतु अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये कोलंबिया में 4500 मीटर ऊंचाई तक वाले स्थानों में भी पाए जाने लगे हैं।
जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध से पता चला है कि विशेष रूप से महिलाएं और युवा बढ़ती गर्मी और उमस से कहीं अधिक प्रभावित हुए हैं। वातावरण में बढ़ती नमी उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण लू और नमी की तीव्रता में भी वृद्धि हो रही है।
ये नतीजे 1979 से 2016 तक के 60 देशों के आंकड़ों के आधार पर निकाले गए हैं। इस शोध के अनुसार 40 देशों में आत्महत्या और आर्द्रता के बीच मज़बूत सम्बंध देखा गया है। इसकी वजह से तनाव और चिंता में वृद्धि हो सकती है और आक्रामकता और हिंसा तक बढ़ सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक विश्व में प्रति वर्ष 7.03 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं, अर्थात हर 45 सेकंड में एक आत्महत्या हो रही है। आत्महत्या का मुख्य कारण निराशा या मानसिक अशांति को माना जा सकता है जो जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो रही है। वैसे तो मानव शरीर अपने वातावरण के अनुसार स्वयं ढाल लेता है किंतु इसकी भी एक सीमा है। एक सीमा के बाद वातावरण व जलवायु के परिवर्तन मानव शरीर पर प्रभाव डालने लगते हैं।
बाढ़, जंगल की आग और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से कुछ मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इन गंभीर आपदाओं से प्रभावित लोग चिंता, तनाव, व्यसन और अवसाद का अनुभव कर सकते हैं। चरम मौसम अनुभव करने से उपजा तनाव अनिद्रा का कारण बन सकता है।
हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से अगले 50 वर्षों में स्तनधारी जीवों के बीच वायरस संचरण के 15,000 से अधिक नए मामले सामने आ सकते हैं। अनुमान है कि नए वायरस के संचरण की संभावना सबसे अधिक तब होगी जब बढ़ते तापमान के कारण जीवों का प्रवास ठंडे क्षेत्रों की ओर होगा और वे स्थानीय जीवों के संपर्क में आएंगे।
बढ़ती गर्मी और उमस हमें कई तरह से प्रभावित करेगी। पहले से मानसिक परेशानी से गुज़र रहे लोगों की मानसिक परेशानी बढ़ सकती है। इसलिए अब जलवायु परिवर्तन के प्रति हमें अत्यधिक गंभीर होना होगा एवं इसके नियंत्रण के लिए सामूहिक व व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करने होंगे। (स्रोत फीचर्स)