गीता दुबे

पूरे 46 दिन चला प्रयोग अंडे से मेंढक बनने का। और बच्‍चों को भी बड़ा मज़ा आया।

20 जुलाई को हमने कक्षा में ‘जंतुओं का जीवन चक्र’ अध्‍याय शुरू किया। मैंने छात्राओं को जानकारी दी कि वे मक्‍खी के अंडे कहां ढूंए सकती हैं। शुरू के दो दिनों में विद्यार्थियों ने इस मामले में कोई रूचि नहीं ली। मैंने उन्‍हें थोड़ा डांटा भी। फिर एक दो टोली की छात्राएं गोबर लेकर आईं – जिसमें मक्‍खी के अंडे थे। इसके दूसरे दिन हमने मेंढक और मच्‍छर के जीवन चक्र को देखने के लिए प्रयोग की तैयारी शुरू कर दी।

मच्‍छर के लिए डबरे (गड्ढे) का पानी लाया गया। इसमें हमें मच्‍छर के लार्वा और प्‍यूपा मिले। यह प्रयोग कुल मिलाकर तीन दिन में पूरा हो गया। इसी बीच 26 जुलाई को कुछ छात्राओं ने आकर बताया कि उन्‍होंने पास के एक डबरे में मेंढक के अंडे देखे हैं। हम सभी छात्राओं के साथ वहां पहुंचे।

ये अंडे साबूदाने जैसे दिखाइ्र देते हैं। एक दूसरे से एक चिपचिपे पदार्थ द्वारा चिपके रहते हें। हम अंडों को लेकर कक्षा में आए और एक मटकी में उन्‍हें रखा। इसके बाद से छात्राओं ने उनका अवलोकन शुरू किया।

अंडे 28 तारीख तक टैडपोल में परिवर्तित हो गए थे। 30 तारीख को उनके बाह्य गलफड़े दिखाई देने लगे। 31 जुलाई को ये गलफड़े गायब हो गए। छात्राओं ने पूरी घटना को तारीखवार नोट किया; हर दिन बदलती स्थितियों के उन्‍होंने चित्र बनाए कि कब अगली व पिछली टांगे आईं, पूछ कम होती गई और 10 सितम्‍बर को टैडपोल पूरी तरह मेंढक में परिवर्तित हो गए।

इस पूरे प्रयोग का छात्राआं न मज़े से किया। हमारे विद्यालय में पांचवे और छठवें कालखंड में विज्ञान पढ़ाया जाता है। सातवें कालखंड में छात्राएं और कोई विषय पढ़ने को तैयार नहीं होती।

प्रस्‍तुत है छात्राओं द्वारा रोज़ाना अवलोकन के आधार पर बनाए गए चित्र और उनकी कलम से – उन्‍होंने क्‍या देखा और कब देखा।

अवलोकन

जहां गन्‍दा पानी होता है वहां मेंढक अण्‍डे देती है। उसमें एक प्रकार की लार होती है जिससे अण्‍डे एक से एक जुड़े हुए होते हैं। फिर हम एक मटकी लाते हैं जिसे हम फोड़ कर उसमें हम मिट्टी जमा कर रखते हैं जो एक पहाड़ी की आकृति के समान होती है जिसे हम टीला कहते हैं। फिर हम डबरे में से टैडपोल निकलते हैं जो भूरे रंग के होते हैं। उनके भोजन के लिए हम काई डालते हैं तथा उसे हम काई की सहायता से टैडपोल से मेंढक मांसाहारी होता है। टैडपोल में गलफड़े होते हैं फिर एक दो दिन बाद गलफड़े खत्‍म हो जाते हैं फिर उसमें ह्रदय आता है फिर एक दो दिन बाद उसमें एक गोल आाकार की आंत आती है फिर उसमें रीढ़ की हड्डी के दाएं बाएं होती हैं जिससे टैडपोल को सांस लेने में आसानी होती है। फिर उसमें रक्‍त नलियां आती हैं। उन नलियों से सारे शरीर में रक्‍त का संचरण होता है। पहले टैडपोल में पीछे की टांगे निकलती है फिर दूसरे दिन आगे की टांगे निकलती हैं। फिर धीरे-धीरे उसकी पूंछ घटती जाती है। फिर उसकी चमड़ी पर काले रंग के बिन्‍दू आते हैं। वह मेंढक बनकर उचकने लगती है। इस प्रकार हमारा प्रयोग समाप्‍त होता है।

ये चित्र और अवलोकन कक्षा-8 की टोली नं. 6 की छात्राओं द्वारा लिए गए। इस टोली की छात्राएं हैं – मीनाक्षी बरड़े, नीता बानखेड़े, अमिता अखण्‍डे व अमिता गांवड़े।


गीता दुबे – शासकीय कन्‍या माध्‍यमिक शाला, भौंरा, जिला बैतूल, म.प्र. में पढ़ाती है।


पिछले विवरण में बच्‍चों ने पूरे छियालिस दिन लगातार अवलोकन दर्ज किए और बदलती अवस्‍थाओं के चित्र बनाए। हमने मूल चित्रों में से सिर्फ उन्‍हीं तारीखों के चित्र लिए जिनमें कोई नया अवलोकन दर्ज किया गया। बच्‍चों द्वारा लिखा गया मेंढक के जीवनचक्र का वर्णन बिना किसी बदलाव के जस-का-तस दिया गया है।

इस शाला में होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम के तहत विज्ञान का अध्‍ययन व अध्‍यापन होता है। उसमें इस्‍तेमाल की जाने वाली कार्यपुस्तिका ‘बाल वैज्ञानिक’ से ‘जंतुओं का जीवनचक्र अध्‍याय के संबंधित अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

—संपादक

मेंढक का जीवन चक्र

बरसात के मौसम में मेंढक के अंडो के समूह डबरों में तैरते हुए मिलते हैं। ऐसे ही एक डबरे को चित्र में दिखाया गया है। इस चित्र में अंडे लगभग उतने ही बड़े दिखाए गए हैं जितने बड़े वे वास्‍तव में होते हैं।

बरसात की पहली एक या दो तेज़ बौछारों के बाद ही जब डबरे पानी से भर जाएं तब अंडे अधिक आसानी से मिलेंगे। अंडों को उसी डबरे के

पानी में किसी गिलास या एक चौड़े मुंह की बोतल में रख लो। यह करते हुए ध्‍यान रखो कि अंडों के समूह जहां तक हो सके बिखरें नहीं। डबरे के पानी में पाई जाने वाली काई भी साथ रख लो।

स्‍कूल मे आकर इन अंडों का किसी चौड़े बर्तन में डबरे के पानी में रखा। यह बर्तन लगभग 15 से.मी. गहरा हो। इसके लिए किसी टूटे हए मटके का निचला हिस्‍सा  बिल्‍कुल ठीक रहेगा। डबरे से लाई गई काई भी स बर्तन में डाल दो।

मेंढक के भ्रूण का व्‍यास अनुमान से बताओ।

यह प्रयोग लंबे समय तक चलेगा। यदि बर्तन में पानी कम हो जाए तो उसमें डबरे का पानी ज़रूर डालते रहना। कहीं और का पानी मत डालना। मक्‍खी के जीवन चक्र के समान ही मेंढक के अंडों को भी कक्षा में लाने के दिन को 1-दिन और उसके बाद के दिनों को क्रमश: 2-दिन, 3-दिन, 4-दिन इत्‍यादि कहेंगे।

इन अंडों और उनमे से निकलेने वाली अवस्‍थाओं का रोज़ अवलोकन करना होगा।

अंडों में से निकलने वाले इन बच्‍चों को टैडपोल या बैंगची कहते हैं।

आगे अवलोकन करने का ढंग: टैडपोल में होने वाले परिवर्तनों को देखने उन्‍हें लिखने और उनका चित्र बनाने के लिए तुम्‍हें प्रतिदिन लगभग 10-15 मिनट का समय लगाना पड़ेगा। सबसे पहले तो टैडपोल को बर्तन में ही ध्‍यान से देखो। इसको और अधिक बारीकी से देखने के लिए प्‍लास्टिक का एक पारदर्शी डिब्‍बा या कांच का गिलास लो। इसमें बर्तन में से थोड़ा-सा पानी निकालकर डाल लो। एक ड्रॉपर से टैडपोल को पानी सहित निकालकर डिब्‍बे या गिलास में डाल लो। अब तुम टैडपोल को ऊपर-नीचे और आजू-बाजू से अच्‍छी तरह देख सकते हो।

जब टैडपोल बड़े हो जाएंगे तो उन्‍हें ड्रॉपर से निकालना संभव नहीं होगा। उस स्थिति में इन्‍हें हथेली में लेकर या किसी बड़े ढक्‍कन में लेकर बाहर निकाला जा सकता है।

ऊपर बताए तरीके से टैडपोल को रोज़ देखो। तुम्‍हें जब भी उसमें कोई नया अंग या अन्‍य कोई नई बात दिखे, उसे कॉपी में लिखो और टैडपोल का चित्र बनाकार दिखाओ। प्रत्‍येक चित्र के साथ उसका दिन भी लिखो।

तुम्‍हें टैडपोल की आंखें किस दिन दिखीं?

जब टैडपोल 3-4 दिन का हो जाए, तब आंखों के पीछे रेशे के समान दिखने वाले गलफड़े ढूंढो।

बढ़ते हुए टैडपोल में निम्‍नलिखित अंगों को ज़रूर ढूंढते जाओ और जिस-जिस दिन तुम्‍हें ये दिखें उस-उस दिन टैडपोल के चित्र बनाकर इन्‍हें दिखाओं –

-हदय                 - आंत

-रीढ़ की हड्डी   - वह नली जिसमें से मल बाहर निकल रहा है

-पिछली टांगें    - अगली टांगे

जिस दिन टैडपोल की पिछली टांगे दिखने लगें, उसदिन बर्तन के बीच में छोटे-छोटे पत्‍थर रखकर पानी के ऊपर निकला हुआ एक टीला बना लो, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। बढ़ते हुए टैडपोल को कभी-कभी पानी से बाहर भी बैठने की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए टीला बनाना ज़रूरी है।

गलफड़े किस दिन पूरी तरह से गायब हो गए?

पूंछ किस दिन पूरी तरह से गायब हो गई?

जब टैडपोल से छोटा मेंढक बन जाए तब सब प्रमुख परिवर्तनों और उनके दिनों को एक तालिका बनाकर दिखाओ।

अब नीचे लिखे प्रश्‍नों के उत्‍तर दो –

मेंढक अपने अंडे पानी में ही क्‍यों देते हैं?

अंडे से छोटा मेंढक बनने में कितने दिन लगे?

मेंढक के जीवनचक्र में तुमने कौन-कौन सी अवस्‍थाएं देखीं? इन अवस्‍थाओं का जीवनचक्र का रेखाचित्र बनाकर दिखाओ।

यदि तुमसे कोई कहे कि मेंढक बरसात में ऊपर से टपकते हैं तो तुम उसे इस प्रयोग के आधार पर क्‍या बता सकते हो?

किसी भी बात की समझ बनाने के कई संभव रास्‍ते हो सकते हैं। कौन-सी विधि अपनाई जा रही है उससे काफी हद तक तय हो जाता है कि पाठ्य सामग्री कैसी होगी, कक्षा व्‍यवस्‍था कैसी होगी, कक्षा में माहौल कैसा होगा, शिक्षकों को किस तरह का प्रशिक्षण देना होगा आदि, आदि।

होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में जो विधि अपनाई जाती है उसमें इस बात पर ज़ोर होता है कि विद्यार्थी खुद प्रयोग करें और अपने अवलोकनों के ज़रिए, पुस्‍तक में दिए गए प्रश्‍नों के सहारे आपस में बातचीत करते हुए, विज्ञान के मुद्दों की समझ बनाने का प्रयास करें। इसका अर्थ यह नहीं है कि ऐसी विधि मे शिक्षक की भूमिका गौण हो जाती है बल्कि उसे न सिर्फ कक्षा में ऐसा माहौल बनाना है जिसमे बच्‍चे बेझिझक प्रयोग कर पाएं, आपस में चर्चाएं कर पाएं, अपने सवाल व अवलोकन सबके समक्ष रख पाएं – साथ ही कक्षा में सार्थक सामूहिक चर्चा के माध्‍यम से विद्यार्थियों को विभिन्‍न विषयों की समझ की तरफ ले जाने का प्रयास लगातार करते रहना है।

मेंढक के जीवनचक्र से संबंधित छियालिस दिन चलने वाले इस प्रयोग का विद्यार्थियों द्वारा लिखा गया विवरण व रोज़ाना अवलोकन के चित्र एक ऐसे शैक्षिक प्रयास का उदाहरण प्रस्‍तुत करते हैं।

(होविशिका समूह, एकलव्‍य)


लेख के ‘बाल वैज्ञानिक’ वाले हिस्‍से के चित्र कैरन हैडॉक ने बनाए है। कैरन चंडीगढ़ मे रहती है।