कैंसर के लिए जब रासायनिक उपचार यानी कीमोथेरपी का सहारा लिया जाता है, तो ऐसे रसायनों को चुना जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को चुन-चुनकर मार डाले। यह रसायन कैंसर कोशिकाओं को इस आधार पर पहचानता है कि वे तेज़ी से विभाजन करती हैं। मगर यह रसायन सामान्य विभाजित होती कोशिकाओं को भी मार डालता है। इनमें प्रमुख रूप से अस्थि मज्जा की कोशिकाएं होती हैं जो हमारे शरीर की रक्षा करने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं बनाती हैं। प्रतिरक्षा कोशिकाओं के अभाव में शरीर संक्रमणों से लड़ने की क्षमता खो देता है। ऐसी स्थिति में छोटा-मोटा संक्रमण भी व्यक्ति को बीमार कर सकता है। यह कीमोथेरपी का प्रमुख साइड प्रभाव है।
अब इस संदर्भ में आशा की एक किरण नज़र आई है। सेन्ट ज्यूड चिल्ड्रेन्स रिसर्च हॉस्पिटल के अकिनोबु कामेई और उनके साथियों ने श्वेत रक्त कोशिकाओं की एक ऐसी किस्म को पहचाना है जो चूहों के फेफड़ों में तभी सक्रिय होती हैं जब उन्हें निमोनिया बैक्टीरिया के खिलाफ टीका दिया जाता है। इन्हें टीका-प्रेरित प्रतिरक्षा कोशिकाएं कहते हैं। ये अस्थि मज्जा में नहीं बनतीं।
सेन्ट ज्यूड हॉस्पिटल की टीम ने पाया कि ये कोशिकाएं कीमोथेरपी के दौरान मारी नहीं जातीं। दरअसल कामई के दल ने देखा कि इनकी संख्या में ज़रा-सी भी गिरावट नहीं आई। अभी स्पष्ट नहीं है कि ये कीमोथेरपी से कैसे बच निकलती हैं। प्रयोगों में यह साफ तौर पर देखा गया कि जिन चूहों को कीमोथेरपी से पहले टीका दिया गया था, उनमें कीमोथेरपी के बाद बैक्टीरिया संक्रमण से लड़ने की क्षमता ज़्यादा थी।
कामई की योजना है कि फेफड़े के ऊतक को इस तरह ढाला जाए कि उनमें इतनी क्षमता पैदा हो जाए कि वे अस्थि मज्जा में होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकें। अभी मात्र एक जंतु पर यह शोध हुआ है और मनुष्य के संदर्भ में इसके क्या परिणाम होंगे, कहना मुश्किल है। फिर भी कैंसर उपचार में शोध की एक नई दिशा तो सामने आई है। (स्रोत फीचर्स)