नवनीत कुमार गुप्ता

हम हमेशा कहते रहते हैं कि भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है शून्य। ज़ीरो की खोज ने गणित ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रों को एक नया मुकाम दिया। लेकिन एक समय गणित में अगुआ रहे भारत में आज भी कई लोग मिल जाएंगे जो गणित के नाम से ही घबराते हैं। अक्सर गणित को एक कठिन और गंभीर विषय माना जाता है। गणित के प्रति रुचि जागृत करने के लिए लोगों को भारतीय गणितज्ञों के कार्यों और जीवन से परिचित कराया जाना चाहिए। इस लेख के माध्यम से हम महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के कार्यों को समझने का प्रयास करेंगे।
रामानुजन को बीसवीं सदी के असाधारण गणितज्ञ होने के साथ ही भारतीय गणितीय परंपरा का अग्रदूत भी माना जा सकता है। वह भी ऐसे समय में जब भारत परतंत्र था और अंधविश्वासों की जकड़न से बंधा हुआ था। ऐसे में रामानुजन की प्रतिभा को सबसे पहले विदेशी वैज्ञानिकों ने समझा और उन्हें अपने साथ कार्य करने के लिए आमंत्रित किया। गणित के प्रतिष्ठित प्रोफेसर जी.एच. हार्डी और जॉन लिटिलवुड ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना जिससे विश्व भर में इस अनूठे गणितज्ञ को पहचाना गया। रामानुजन की प्रतिभा इतनी असाधारण थी कि उनके कार्यों पर आज भी शोध-पत्र लिखे जा रहे हैं।
रामानुजन का पूरा नाम श्रीनिवास रामानुजन आयंगर था। उनका जन्म 22 दिसम्बर 1987 को चैन्नई से करीब 400 किलोमीटर दूर इरोड में हुआ था। रामानुजन के पिता श्रीनिवास आयंगर एक लेखाकार के रूप में कार्य करते थे। रामानुजन में बचपन से गणितीय प्रतिभा थी जिसके कारण उन्हें विद्यालय में अनेक पुरस्कार मिले। उन्होंने इसी दौरान ए सिनॉप्सिस ऑफ एलिमेंट्री रिज़ल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स पढ़ी। उन्होंने इस किताब के माध्यम से तीन नोटबुकें तैयार कीं।
इसके बाद उन्होंने एक छात्रवृत्ति प्राप्त की और कुंभकोणम राजकीय विद्यालय में पढ़ाई जारी रखी। लेकिन बाद में परीक्षा परिणाम अच्छा न आने की वजह से उन्हें छात्रवृत्ति छोड़नी पड़ी। और इस तरह विश्वविद्यालय की डिग्री के बिना रामानुजन एक अच्छी नौकरी की तलाश में संघर्ष करते रहे। लेकिन गणित के प्रति उनके आकर्षण में कोई कमी नहीं आई और वे अधिकांश समय गणितीय समस्याओं को हल करते रहते। इस दौरान वे नोटबुक्स तैयार करते रहते जो उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण थीं। 14 जुलाई 1909 को रामानुजन का विवाह जानकी देवी से हुआ। अब उन पर पारिवारिक ज़िम्मेदारियां भी थीं।

सन 1910 में भारतीय गणित सोसायटी के संस्थापक प्रोफेसर वी. रामास्वामी अय्यर रामानुजन से मिले। रामानुजन की नोटबुक्स देखकर वे हैरान रह गए। उन्होंने रामानुजन में गणित के सम्बंध में नैसर्गिक प्रतिभा को समझा। फरवरी 1911 से अक्टूबर 1911 के दौरान जर्नल ऑफ दी इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी में रामानुजन के 50 सवालों और उनके समाधान प्रकाशित हुए। वर्ष 1912 में रामानुजन ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में लेखा अनुभाग में लिपिक के रूप में कार्य करना आरंभ किया। इस दौरान गणित के कई विद्वानों का ध्यान उनकी ओर गया।
रामानुजन के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव उनके द्वारा सन 1913 में विख्यात गणितज्ञ जी.एच. हार्डी को पत्र लिखना था जिसमें गणितीय समस्याओं पर विचार किया गया था। गणितज्ञ जी.एच. हार्डी ने अपने मित्र जॉन लिटिलवुड से उन पत्रों पर चर्चा की और रामानुजन को लंदन आमंत्रित किया। 14 अप्रैल 1914 को रामानुजन लंदन पहुंचे और अगले पांच सालों तक उन्होंने हार्डी के साथ कार्य करते हुए गणित की अनेक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। उनके कार्यों के चलते सन 1916 में उन्हें बी.ए. की उपाधि प्रदान की गई। रामानुजन पहले गणितज्ञ थे जिन्हें रॉयल सोसायटी की प्रतिष्ठित फैलोशिप प्रदान की गई। इसके बाद उन्हें जगह-जगह व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया और उनके शोधपत्रों को सराहा गया।

सन 1919 में रामानुजन भारत लौटे। इसी दौरान उनकी सेहत भी बिगड़ती गई और लंबी बीमारी के बीच 32 वर्ष की अल्पायु में ही 26 अप्रैल 1920 को इस महान भारतीय गणितज्ञ का निधन हो गया। इस विलक्षण गणितज्ञ की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है। भारत सरकार ने वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष भी घोषित किया था। उनकी जन्म तिथि यानी 22 दिसम्बर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। रामानुजन एवं उनके कार्यों की लोकप्रियता ही है कि सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों द्वारा उनके कार्यों पर व्याख्यानों का आयोजन एवं उन पर अनेक पुस्तकों का प्रकाशन एवं फिल्मों का निर्माण किया गया है। 2015 में उन पर एक प्रसिद्ध फिल्म ‘दी मैन हू न्यू इंफिनिटी’ का निर्माण किया गया जिसे पूरे विश्व में सराहा गया। असल में रामानुजन के कार्यों को समय बीतने के साथ और अधिक मिल रही ख्याति उनकी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण है। भारतीयों के मध्य रामानुजन ऐसे गणितज्ञ के रूप में जीवित हैं जिनकी अनोखी गणितीय प्रतिभा से पूरा विश्व उन्हें आज भी याद करता है। (स्रोत फीचर्स)