शर्मिला पाल    

अपना शरीर चिरयुवा रखने की चाहत वाले लोग खुद को किसी स्वस्थ, सुंदर शरीर में फिट करवा सकते हैं। अब यह साइंस फिक्शन या कल्पना नहीं है। अपने प्रयोगों के बूते वैज्ञानिकों को यकीन है कि आने वाले कुछ ही महीनों में इसका जीवंत नमूना सबको दिखेगा। जर्मनी और वियतनाम के सहयोग से इस बात का भरपूर प्रयास किया जा रहा है कि 25 दिसंबर 2017 को मानवीय सिर के प्रत्यारोपण को अंजाम दे दिया जाए। चिकित्सकों, वैज्ञानिकों का मानना है कि यह परीक्षण पूरी तरह सफल रहेगा। हाल ही में एक बंदर के शरीर पर सिर के प्रत्यारोपण की प्रक्रिया पूरी तरह सफल रही है। वैज्ञानिकों को यह भी यकीन है कि इस आपरेशन के महज 2 दशकों के भीतर ही पूरे सिर के प्रत्यारोपण की तकनीक विकसित होते-होते इतनी आसान बन जाएगी कि लोग पड़ोस के अस्पताल में जाकर सिर या शरीर बदलवा सकेंगे।

12 जून 2015 को यह साफ हो गया कि मनुष्य अमरता के इस नए रास्ते पर चलेगा। इतालवी तंत्रिका सर्जन सेर्जियो कनावेरो ने उसी दिन अमेरिका के मेरीलैण्ड के एन्नापोलिस में एक बैठक में अपनी उस योजना का ब्यौरा रखा, जिसके तहत वे शल्य चिकित्सकों के एक दल के साथ एक व्यक्ति का सिर दूसरे व्यक्ति के स्वस्थ शरीर पर प्रत्यारोपित करेंगे। शल्य चिकित्सकों के संगठन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजिकल एंड ऑर्थोपेडिक सर्जन्स की इस सालाना बैठक में उन्होंने विशेषज्ञों को इस विवादित मगर महत्वपूर्ण और महत्त्वाकांक्षी ऑपरेशन से जुड़े हर सवाल का जवाब दिया। यदि सब कुछ सही रहा तो जो लोग अपने शरीर से बेजार महसूस कर रहे होंगे, वे नए शरीर अपना सकेंगे।

कनावेरो ख्याति प्राप्त न्यूरो सर्जन होने के साथ-साथ ट्यूरिन एडवांस्ड न्यूरोमॉड्यूलेशन ग्रुप जैसे अग्रणी थिंकटैंक के मुखिया भी हैं। ऐसे में उनके दावों और वादों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। उनके दावे के पुख्ता वैज्ञानिक आधार हैं। कनावेरो दिमागी रूप से मृत घोषित किसी व्यक्ति के शरीर पर किसी ऐसे व्यक्ति का सिर स्थापित करेंगे जिसका शरीर नष्टता को प्राप्त है। स्वस्थ शरीर का मेल स्वस्थ दिमाग से होगा, और साल भर में दोनों मिलकर सक्रिय हो जाएंगे। कनावेरो के अनुसार, एक बार बस इस मॉड्यूल को व्यावहारिक तौर पर परख लिया जाए, फिर तो इस सिर बदल प्रक्रिया में 1 घंटे से भी कम समय लगेगा। कनावेरो अपने इसी ऑपरेशन का पूरा ब्यौरा सम्बंधित विशेषज्ञों व शल्य चिकित्सकों के सामने रखेंगे। उन्होंने अपने इस न्यूरोमॉड्यूल को नाम दिया है हैवन जेमिनी।

मिल चुका है सिर
 कनावेरो के प्रयोग के लिए अपना सिर समर्पित करने वाला मिल गया है। बचपन से अब तक व्हीलचेयर पर जीवन गुज़ार रहे 30 वर्षीय रूसी वलेरी स्पिरिदोनफ का जीवन मौत से भी बदतर है। वे शरीर की मांसपेशियों के लगातार बेकार होते जाने वाली दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी वर्डनिग हॉफमैन से ग्रस्त हैं। उन्होंने कनावेरो का यह प्रस्ताव मान लिया है कि उन का सिर उतार कर किसी दूसरे शरीर में लगाकर इस नष्ट होते शरीर को बदल दिया जाए। वे दुनिया के पहले शख्स कहलाएंगे जिन के सिर का प्रत्यारोपण किया जाएगा।

कैसे होगा यह सब
सिर के प्रत्यारोपण के लिए हड्डी, दिमाग, औषधि विज्ञान और तमाम क्षेत्रों के 100 विशेषज्ञ चिकित्सक कुल 36 घंटे चलने वाला ऑपरेशन करेंगे और खर्च आएगा डेढ़ से दो करोड़ अमेरिकी डॉलर। बीमार शरीर से स्वस्थ, सक्रिय सिर को और निष्क्रिय दिमाग वाले स्वस्थ ज़िस्म से निष्क्रिय सिर को एक ही वक्त में और बेहद तेज़ धार वाले अल्ट्रा शार्प ब्लैड से पहले से तय जगह से बड़ी सफाई से अलग किया जाएगा। धड़ और सिर को शून्य से 10-15 डिग्री नीचे के तापमान में रखा जाएगा ताकि देर तक ऑक्सीजन न मिलने के बावजूद कोशिकाएं नष्ट न हो। फिर इसे सेकंडों के भीतर सावधानी से फिट किया जाएगा। कल्पना करें बेहद तेज़ चाकू से तेज़ी से कटे केले के 2 टुकड़े। इसके पहले खून की नलियों से वे कृत्रिम नलियां जोड़ी जा चुकी होंगी जिन्हें एक-दूसरे से जुड़ना है। खास तौर पर खाने को भीतर ले जाने वाली ग्रसनी और फेफड़ों से जुड़ने वाली सांस नली जिस से आवाज़ प्रभावित होती है तथा कई और नलियां, नस, नाड़ियां जोड़ना पड़ेगा। इसके साथ ही, गले के इर्दगिर्द की मांसपेशियों को भी इस लायक बना लिया जाएगा कि सिर रखने के तुरंत बाद उन्हें चिपकाया जा सके। सिर को धड़ से सफलतापूर्वक चिपकाने और रीढ़ की हड्डी के आखिरी सिरे से जोड़ने के बाद पॉलीएथिलीन ग्लायकॉल से उन्हें लगातार तर रखा जाएगा और घंटे भर बाद से इसी के इंजेक्शन भी लगातार लगाए जाते रहेंगे।

महीने भर का कोमा ज़रूरी
इस पूरी प्रक्रिया में दो सबसे अहम बातें हैं। पहली, धड़ और सिर दोनों की रीढ़ की हड्डी और उसके भीतर की तंत्रिकाओं का आपस में जुड़ना। दूसरी, शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र का नए सिर को स्वीकारना। मांसपेशियां जल्दी से जुड़ जाती हैं। चमड़ी, हड्डियां और नलिकाएं भी समय पर जुड़ जाती हैं मगर तंत्रिका तंत्र की नसें बढ़ने की धीमी रफ्तार या तकरीबन बिलकुल न बढ़ने के लिए कुख्यात हैं। अगर एक्सॉन और भूरी परत के नीचे उसके सफेद तंतु गलत तरीके से कटफट गए तो काम असंभव की हद तक मुश्किल है। ऐसे में पॉलिएथिलीन ग्लायकॉल का घोल या घंटों दिया जाने वाला इंजेक्शन इसमें मदद करेगा। अगर यह युक्ति कम कामयाब होती दिखी तो कनावेरो के पास एक दूसरा रामबाण रास्ता भी है। इसके तहत वे या तो मरीज़ की रीढ़ की हड्डी के भीतर स्टेम कोशिकाएं पहुंचाएंगे या दिमाग और नाक के बीच पाई जाने वाली झिल्ली की कोशिकाओं का इस्तेमाल करेंगे; अपने आप बढ़ने वाली ये कोशिकाएं रीढ़ की हड्डी की तंत्रिकाओं को बढ़ने और जुड़ने के लिए प्रेरित करेंगी। इनके अलावा जुड़ाव के लिए भी कनावेरो के पास एक दूसरी तरह की झिल्ली का जुगाड़ है जो शरीर के भीतर ही पाई जाती है।

कई बार एक शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र दूसरे शरीर के अंगों को अपनाने से इन्कार कर देता है। कनावेरो को इसकी फिक्र नहीं है, क्योंकि अब ऐसी दवाएं, रसायन और तरीके विकसित किए जा चुके हैं जो ऐसी स्थिति से सफलतापूर्वक निपट सकते हैं। गले की मांसपेशियों और खून की नलियों को साथ में सिलकर कुछ ही मिनटों में जोड़ देने के बाद सब कुछ ठीक रहा तो 15 मिनट बाद रक्त वाहिनियांं फिर से सिर को रक्त आपूर्ति शु डिग्री कर देंगी। अगले 36 घंटों में ऑपरेशन से सम्बंधित अन्य कार्य निपटाए जाएंगे। जैसे उन इलेक्ट्रोड की स्थापना जो बिजली के झटके देकर रक्त प्रवाह जारी रखेंगे और तंत्रिका तंत्र तथा मांसपेशियों की वृद्धि को उकसाते रहेंगे।
ऑपरेशन के बाद रक्त संचार शु डिग्री होने के समय से मरीज़ कम से कम 4 हफ्तों के लिए कोमा में चला जाएगा। कई शारीरिक बदलावों और दूसरी ज़रूरतों के लिए मरीज़ का कोमा में जाना ज़रूरी ही है। जब उसे होश आएगा तो वह अपने सिर के नीचे एक स्वस्थ मगर अजनबी शरीर को पाएगा। दिमाग के लिए इस अजनबी शरीर से तालमेल बिठाने के लिए फिज़ीयोथेरपी के तहत ढेर सारी शारीरिक कसरतें करनी होंगी जिससे एक साल के भीतर ही यह नए सिर वाला शरीर चलने-फिरने, बोलने-बतियाने और उसके बाद दूसरे कामकाज के काबिल हो जाएगा।

पहले भी हुए हैं प्रयास
वर्ष 1908 में गुदरे नामक वैज्ञानिक ने एक बड़े कुत्ते की गरदन पर छोटे कुत्ते का सिर प्रत्यारोपित किया था। इस विचित्र प्राणी का चित्र और बनाए जाने की प्रक्रिया का वर्णन किताब में मौजूद है। खून की नलियों ने 20 मिनट के भीतर ही उसके दिमाग तक खून पहुंचा दिया और नए लगे सिर ने बाकायदा हरकत की। आंख की पुतलियों में हरकत देखी गई, जीभ भी लपलपाई।
1950 में रूसी चिकित्सा वैज्ञानिक देमीखोव ने डेढ़ दशक में लगभग 2 दर्जन पिल्लों के सिरों का प्रत्यारोपण कर सिर काटे जाने और प्रत्यारोपण के बीच के समय को कम करने, बिना ऑक्सीजन के इसे देर तक रखने और ऑपरेशन जल्दी निपटाने में सफलता पाई। नसों को सिलने के लिए खास मशीन का इस्तेमाल किया गया था। प्रत्यारोपण के बाद ज़्यादातर कुत्ते 2 से 6 दिन तक ज़िन्दा रहे। एक मामले में तो यह आंकड़ा 29 दिन तक भी पहुंचा था। 1954 में इस तरह के किए गए एक ऑपरेशन के बाद प्राणी ने दूध पीने तक में सफलता पाई। इस बीच 1959 में चीन ने घोषणा की कि उस के वैज्ञानिकों ने 2 कुत्तों के सिर के प्रत्यारोपण में कामयाबी पा ली है।

1970 में अमेरिकी न्यूरोसर्जन रॉबर्ट जे. व्हाइट ने एक बंदर का सिर दूसरे बंदर के धड़ पर प्रत्यारोपित कर दिखाया। व्हाइट की टीम ने दावा किया कि बंदर का प्रत्यारोपित सिर सूंघ सकता है, स्वाद ले सकता है, अपने आसपास के वातावरण को देख-सुन, महसूस कर सकता है। दिमाग तक खून का दौरा बनाने में उन्होंने सफलता पाई थी। लेकिन बंदर ऑपरेशन के बाद कुछ देर ही ज़िन्दा रहा। टीम ने इस सफलता को एक अन्य बंदर के साथ दोहराया पर सब कुछ होने के बावजूद पहले ही की तरह बंदर का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त या असंवेदनशील ही बना रहा, रीढ़ का तंत्रिका तंत्र विकसित नहीं हुआ और शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र ने सिर को नहीं स्वीकारा, बंदर मर गया।
2002 में रूस और अमेरिका की बराबरी को आतुर चीन ने दावा किया कि उसने चूहे के साथ यह सफलता अर्जित की है। ठीक ऐसा ही दावा जापानी वैज्ञानिकों ने भी किया था। पूरे दशक बाद चीन और जापान के वैज्ञानिकों ने सिर प्रत्यारोपण के मामले में अपने अनुभव साझा किए।
2013 में एक इतालवी न्यूरोसर्जन ने दावा किया कि उनके पास डॉ. रॉबर्ट व्हाइट से अलग और खास तकनीक तथा योजना है जिसके तहत वे सिर का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक कर सकते हैं। 2015 में उन्हें सिर-दाता भी मिल गया। अब वे 2017 तक सिर के प्रत्यारोपण के सफल परिणाम सबको दिखाने की तैयारी कर रहे हैं।

जनवरी 2016 में डॉ. कनावेरो ने दावा किया कि उनकी टीम के एक शल्य चिकित्सक ने बंदर का सिर जोड़ने का काम सफलतापूर्वक किया है। उन्होंने एक प्रेस कान्फ्रेंस में न सिर्फ ऑपरेशन के बाद का उस बंदर का चित्र दिखाया बल्कि शल्य प्रक्रिया से जुड़ी कई बातें भी साझा कीं और कहा कि वे दिसंबर में ऐसा ही प्रयोग मानव सिर के साथ करने के लिए तैयार हैं।

रास्ते के रोड़े
कनावेरो सिर बदलने का ऑपरेशन चीन में करना चाहते थे पर चीन ने साफ मना कर दिया। अब वे चाहते हैं कि चूंकि सिर देने वाले वलेरी स्पिरिदोनफ रूसी नागरिक हैं, तो ऑपरेशन रूस में हो। उनका एक और तर्क यह भी है कि सिर प्रत्यारोपण के पितामह व्लादिमीर देमिखोव रूस के ही थे, सो रूस को इतिहास बनाने का श्रेय मिलना चाहिए। ज़ाहिर है कनावेरो को इस विवादित ऑपरेशन के लिए कोई ऐसा देश ढूंढना पड़ेगा जिसका कानून और समाज इसकी इज़ाज़त दे। धर्म, नैतिकता और समाज के साथ तमाम वैज्ञानिक भी कनावेरो के इस कृत्य के विरोध में हैं।

कनावेरो ने 2013 में पहली बार इस तरह का विचार सामने रखा था। सर्जिकल न्यूरोलॉजी इंटरनेशनल पत्रिका में उनकी शोध रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। तभी से इसका समर्थन और विरोध चालू है। अंगों के प्रत्यारोपण के सम्बंध में हर देश में अपने नियम कायदे हैं। बिना इन्हें बदले इस तरह के तज़ुर्बे की इज़ाज़त नहीं दी जा सकती। कनावेरो को पता है समर्थक देश न हुआ तो जेल तय है। फिलहाल, वियतनाम के अस्पताल द्वारा हामी भर देने से अस्थायी तौर पर इस ऑपरेशन के रास्ते से एक बड़ा रोड़ा हट गया लगता है।

अमरता की ओर एक कदम
ऑपरेशन अगर सफल हो गया तो यह कारनामा अमरता की दिशा में एक कदम होगा। यह धर्माधिकारियों को कतई रास नहीं आता। किसी का सिर किसी का धड़, यह नैतिकतावादी और परंपरावादियों को पसंद नहीं। दुनिया के तमाम दूसरे चिकित्सक, जिन्हें अपनी बिरादरी का होने के नाते कनावेरो का समर्थन करना चाहिए, वे डॉ. कनावेरो को सनकी करार दे रहे हैं। उनके मुताबिक ऐसा सोचना जुनूनी फंतासी मात्र है, कर पाना नामुमकिन है। रूस इस क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर चुका था और अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट ने भी अपने समय में शानदार काम किया। ऐसे में एक इतालवी वैज्ञानिक की सफलता से इस क्षेत्र में किए गए सारे काम की सफलता का सेहरा उसके सिर बंध सकता है। (स्रोत फीचर्स)