कई देशों में सड़कों पर पड़ी बर्फ से छुटकारा पाने के लिए नमक का छिड़काव किया जाता है। नमक छिड़कने पर बर्फ जल्दी पिघलता है और बह जाता है। किंतु यह नमक आसपास की झीलों, तालाबों में पहुंच जाता है। शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि इस नमक का जलीय जीवों और झील-तालाबों के इकोसिस्टम पर कैसा असर होता है।
यह देखा गया है कि पानी में अत्यधिक लवणीयता कई प्रजातियों पर प्रतिकूल असर डालती हैं। साथ ही यह भी देखा गया है कि कई प्रजातियां इस बढ़ी हुई लवणीयता से तालमेल बना लेती हैं। दूसरे शब्दों में वे उच्च लवणीयता के प्रति अनुकूलित हो जाती हैं। किंतु अनुकूलन की इस प्रक्रिया की कुछ कीमत भी चुकानी होती है।

प्रयोगों के दौरान यह देखा गया कि जंतु-प्लवक की एक प्रजाति डैफ्निया प्यूलेक्स लवण की बढ़ती मात्रा के साथ अनुकूलित होती जाती है। किंतु इसका नकारात्मक असर भी होता है। बढ़ी हुई लवणीयता इन प्लवकों की जैविक लय को अस्त-व्यस्त कर देती है। डैफ्निया की इस जैविक लय की एक महत्वपूर्ण इकॉलॉजिकल भूमिका है। दिन-रात के अनुसार समायोजित डैफ्निया की दैनिक लय के अनुसार ये जंतु रात में पानी की सतह पर आते हैं और फिर दिन में गहराई में चले जाते हैं। जंतु प्लवकों का इस तरह रोज़ाना पानी की सतह से गहराई में जाना और फिर से सतह पर आना पृथ्वी पर जैव पदार्थ का सबसे विशाल स्थानांतरण माना जाता है।

शोधकर्ताओं को लगता है कि इस स्थानांतरण की वजह से डैफ्निया की दैनिक लय का पूरे इकोसिस्टम पर गंभीर असर पड़ सकता है। लिहाज़ा सबसे पहले तो वे यह देखना चाहते थे कि क्या इस जंतु में दैनिक लय को नियंत्रित करने वाली कोई आंतरिक व्यवस्था होती है।

अपने प्रयोगों में उन्होंने पाया कि डैफ्निया में एक जैविक लय व्यवस्था होती है। जो जीन्स अन्य जीवों में दैनिक लय का नियंत्रण करते हैं (पीरियड और क्लॉक) वे डैफ्निया में भी उपस्थित हैं। उन्होंने डैफ्निया में पीरियड और क्लॉक की सक्रियता के स्तर को दिन के अलग-अलग समय पर देखा। पता चला कि पूरी तरह अंधेरे में रखे जाने पर भी डैफ्निया में पीरियड और क्लॉक की सक्रियता 24 घंटे में एक लय में घटती-बढ़ती है। यानी यह व्यवस्था जंतु के शरीर में निहित है, पर्यावरण से मिली सूचनाओं के अनुसार नहीं चलती है।

इसके बाद उन्होंने डैफ्निया की विभिन्न आबादियों में इन जीन्स की सक्रियता पर ध्यान दिया। यहां पता चला कि डैफ्निया लवण की जितनी अधिक मात्रा के साथ अनुकूलित हुए थे, उनके पीरियड व क्लॉक की गतिविधि उतनी ही अधिक अस्त-व्यस्त हुई थी। बहुत अधिक लवणीयता के प्रति अनुकूलित डैफ्निया समूहों में 24 घंटे में इन जीन्स की गतिविधि में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव नहीं देखा गया जो दैनिक लय के कामकाज के लिए ज़रूरी है।

अभी वे यह नहीं समझ पाए हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है या इसकी क्रियाविधि क्या है किंतु वे इसके पर्यावरणीय असर को लेकर चिंतित हैं। जंतु प्लवक मछलियों के लिए भोजन का प्रमुख स्रोत हैं। यदि पानी में उनके उध्र्वाधर स्थानांतरण में अंतर पड़ेगा तो यह जलीय भोजन द्यांृखला को प्रतिकूल प्रभावित करेगा। इससे भी ज़्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि क्या प्रदूषक पदार्थ जंतुओं की दैनिक लय को प्रभावित कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)