ऐसा कहा जाता है कि हमारा समाज ज़्यादा स्मार्ट हो गया है। किंतु कनाडा में वाटरलू विश्व विद्यालय के एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक आइगर ग्रॉसमैन इस विरोधाभास से व्यथित हैं कि इस स्मार्टनेस ने सामाजिक टकरावों में कोई कमी नहीं की है, बल्कि पिछले वर्षों में ऐसे टकरावों की संख्या बढ़ी ही है। ग्रॉसमैन के मुताबिक इस विरोधाभास का कारण यह है कि कोरी बुद्धिमत्ता बढ़ने से टकराव कम नहीं होते। उसके लिए समझदारी की ज़रूरत होती है। समझदारी से उनका आशय है कि अन्य लोगों के नज़रियों को भी ध्यान में रखना और सुलह की ओर बढ़ना।

इस सबके मद्देनज़र ग्रॉसमैन ने एक अध्ययन किया। अध्ययन दो हिस्सों में किया गया था। पहले हिस्से में अमेरिका भर के 2145 लोगों का एक ऑनलाइन सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में प्रतिभागियों से पूछा गया था कि क्या हाल में उनकी किसी के साथ (पति/पत्नी या दोस्त) तकरार हुई थी। इसके बाद उन्हें उस टकराव के बारे में 20 सवालों के जवाब देने को कहा गया था। सवाल इस तरह के थे कि क्या उन्होंने टकराव के दौरान तीसरे पक्ष के नज़रिए पर विचार किया था या उन्होंने किस हद तक दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास किया था या क्या कभी उनके मन में यह ख्याल आया था कि वे गलत भी हो सकते हैं।

ग्रॉसमैन और उनके स्नातक छात्र जस्टिन ब्रिएंज़ा ने इन सवालों के आधार पर समझदारी का एक पैमाना विकसित किया था। जवाबों के आधार पर प्रतिभागियों को ‘समझदारी’ का एक स्कोर दिया गया। इसके साथ ही उनके पास प्रतिभागियों की सामाजिक स्थिति का स्कोर भी था। शिक्षा, आमदनी और पैसे के प्रति चिंता के आधार पर सामाजिक स्थिति का स्कोर तैयार किया गया था। जब उन्होंने समझदारी के स्कोर और सामाजिक स्थिति के स्कोर को एक साथ रखकर देखा तो एक अजीब बात पता चली - सामाजिक स्थिति के लिहाज़ से सबसे कम स्कोर वाले लोगों का समझदारी स्कोर उच्चतर सामाजिक स्थिति वालों से बेहतर था। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति की सामाजिक स्थिति जितनी कमज़ोर थी वे उतने ही ज़्यादा समझदार पाए गए।

अध्ययन के दूसरे हिस्से में करीब 200 लोगों के बुद्धिमत्ता गुणांक (आईक्यू) की जांच की गई। इसके साथ ही उन्हें ‘डीयर एबी की सलाह’ नामक अखबारी स्तंभ से तीन चिट्ठियां पढ़ने को कहा गया। जैसे एक चिट्ठी में पूछा गया था कि अपने दो दोस्तों के बीच तकरार में वे किसका पक्ष लेंगे। चिट्ठी पढ़ने के बाद प्रत्येक प्रतिभागी को एक व्यक्ति से बातचीत में यह बताना था कि उन्हें क्या लगता है कि उपरोक्त तकरार में आगे क्या होगा। यहां भी समझदारी के अलग-अलग मापदंडों के आधार पर अंक दिए गए। यहां भी देखा गया कि कमज़ोर सामाजिक स्थिति वाले लोग समझदारी के पैमाने पर ऊपर थे हालांकि उनका आईक्यू ज़रूर कम था। इसके आधार पर ग्रॉसमैन का निष्कर्ष है कि मात्र आईक्यू बढ़ने से समझदारी नहीं आती। (स्रोत फीचर्स)