यह आलेख ‘प्लगिंग इन: भारतीय घरों में बिजली खपत’ प्रयास (ऊर्जा समूह) और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के लिए राधिका खोसला और अंकित भारद्वाज द्वारा तैयार किया गया है। यह सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की वेबसाइट (http://cprindia.org/news/6534) पर भी उपलब्ध है ।
बिजली खपत सम्बंधी अधिकांश बहसें महंगे आवासीय और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों पर केंद्रित रहती हैं, और अक्सर कम आय वाले घरों को नज़रअंदाज़ किया जाता है। इन घरों पर ध्यान न देने के लिए तर्क यह दिया जाता है कि सस्ते घरों में बिजली उपयोग का स्तर नगण्य होता है, इसलिए राष्ट्रीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन की बहस में इनकी हिस्सेदारी बहुत कम है। हालांकि, यह शायद अब सच न हो।

भारत में आवास व्यवस्था शहरीकरण के साथ कदम मिलाकर चलने में असमर्थ रही है। बताते हैं कि भारत में मकानों की कमी लगभग 190 लाख इकाई है। इसमें कम आय वाले परिवारों का अनुपात सबसे अधिक है। इस अंतर की पूर्ति के लिए सरकार ने ‘सबके लिए आवास’ कार्यक्रम के तहत 2022 तक 2 करोड़ परिवारों को किफायती आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह नया निर्माण, भविष्य में बुनियादी सेवाओं के प्रावधान के साथ बिजली और उपकरण बाज़ार तक पहुंच को बढ़ाकर कुछ हद तक ऊर्जा के उपयोग को प्रभावित करेगा। यहां हम किफायती आवासों में बिजली के सबसे बुनियादी उपयोग यानी प्रकाश व्यवस्था की चर्चा करेंगे।

कम आय वाले घरों में बिजली उपभोग में और बिजली के बिलों में एक बड़ा हिस्सा प्रकाश उपकरणों की वजह से होता है। तकनीकी तौर पर, एलईडी बल्ब प्रकाश की मात्रा को कम किए बिना बिजली की खपत कम करता है, और इसका जीवनकाल एक सामान्य बल्ब से 25 गुना अधिक होता है। अलबत्ता, एलईडी बल्ब की लागत अधिक है, जिसकी वजह से परिवारों में इसे खरीदने की इच्छा में कमी आ सकती है। जैसा कि इस द्याृंखला के एक आलेख में बताया गया था, सरकार की उजाला योजना ने लागत को कम करके और जागरूकता बढ़ाकर एलईडी के उपयोग में वृद्धि की है। किंतु कम आय वाले घरों, जहां पर अधिकतम लाभ मिल सकते हैं, पर कार्यक्रम के प्रभाव अभी तक स्पष्ट नहीं हैं।

क्या कम आय वाले परिवार तकनीकी रूप से उन्नत एलईडी बल्ब की खरीदारी कर रहे हैं? हमने वर्ष 2017 में उजाला योजना के शुरू होने के एक साल बाद राजकोट (गुजरात) में कम आय वाले घरों में प्रकाश व्यवस्था की जांच के लिए एक सर्वेक्षण किया था। सर्वेक्षण में पता चला कि कुल बल्बों में से 63 प्रतिशत एलईडी हैं जो काफी अधिक है (चित्र 1)।

ज़ायदाद और एलईडी का उपयोग
एलईडी उपयोग की इस उच्च दर को समझने के लिए, हमने सरकारी किफायती आवासों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया: शहरी गरीबों के लिए बुनियादी सेवा (बीएसयूपी) के तहत 2007 के बाद बनाए गए मकान; या आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस); और कम आय समूह (एलआईजी) के मकान। सबके लिए आवास कार्यक्रम के तहत ईडब्ल्यूएस और एलआईजी आवास 2015 से बनाए गए हैं (चित्र 2)। ये श्रेणियां मोटे तौर पर आय से सम्बंधित हैं - बीएसयूपी निवासी औसतन सबसे गरीब और एलआईजी सबसे बेहतर।

चित्र 2 से पता चलता है कि एलईडी का व्यापक इस्तेमाल ईडब्ल्यूएस और एलआईजी श्रेणियों द्वारा विशेष रूप से किया जा रहा है। इन परिवारों में 90 प्रतिशत से अधिक के पास कम से कम एक एलईडी बल्ब तो है। इन घरों में ट्यूब लाइट, सीएफएल, और फिलामेंट बल्ब का उपयोग कम है। इसके अलावा, कई परिवार एक से अधिक एलईडी भी खरीद रहे हैं। ईडब्ल्यूएस घरों में एलईडी की मोड संख्या 3  और एलआईजी घरों में 5 है। इसका मतलब है कि अधिकांश ईडब्ल्यूएस घरों में 3 तथा अधिकांश एलआईजी घरों 5 एलईडी बल्ब हैं। यह संख्या राजकोट में उजाला योजना के तहत रियायती दरों पर उपलब्ध कराए गए एलईडी बल्ब की संख्या से कम ही है। (प्रति परिवार 9-9 वॉट के 10 बल्ब 80 रुपए प्रति बल्ब की दर से दिए गए हैं।)

हमने यह भी देखा कि मकान की मानक साइज़ के लिए एलईडी की संख्या घरेलू परिसंपत्तियों या परिवार की उपभोग करने की क्षमता से सम्बंधित है। अपेक्षाकृत समृद्ध परिवार अधिक एलईडी खरीदते हैं, हालांकि फिलामेंट बल्ब की एक निश्चित संख्या बनी रहती है। हालांकि चित्र 2 एलईडी उपयोग की एक काफी उच्च दर दर्शाता है, वहीं उसमें यह भी नज़र आता है कि सभी घरों ने इस परिवर्तन को नहीं अपनाया है। विशेष रूप से, बीएसयूपी घर - जो सबसे कम आय वाले हैं - उनमें ईडब्ल्यूएस और एलआईजी घरों (चित्र 2) की तुलना में एलईडी उपयोग की दर करीब आधी है। अधिकांश बीएसयूपी घरों में एलईडी की संख्या शून्य है।

जागरूकता
क्यों कुछ घर एलईडी खरीदते हैं जबकि अन्य नहीं? क्या इसका सम्बंध एलईडी स्कीम के प्रति परिवार की जागरूकता से है?
एलईडी स्कीम के प्रति जागरूकता और एलईडी स्वामित्व आपस में मेल खाते हैं। ईडब्लूएस और एलआईजी परिवारों को इस योजना के बारे में अधिक जानकारी है, और उनके पास एलईडी बल्ब भी ज़्यादा है, जबकि बीएसयूपी की स्थिति इसके विपरीत है। यह जांच करने के लिए कि सरकारी योजनाओं की जागरूकता आम तौर पर अधिक है, या उजाला के लिए खास तौर पर जागरूकता अधिक है, हमने लोगों से पूछा कि क्या वे स्मार्ट सिटी योजना के बारे में जानते हैं। यह योजना शहर में काफी आगे बढ़ चुकी है। पता चला कि उजाला स्कीम की उच्च जागरूकता की तुलना में 1 प्रतिशत से भी कम लोगों को स्मार्ट सिटी स्कीम के बारे में पता था।

ऐसा भी नहीं था कि सब परिवारों को एलआईडी स्कीम के बारे में जानकारी थी - विशेषकर गरीब बीएसयूपी घरों में तो जानकारी नहीं थी। निवासियों के साथ चर्चा से पता चला कि योजना के प्रति जागरूकता का सबसे सफल ज़रिया लोगों (मुख्य रूप से पुरुषों) को स्थानीय बिल भुगतान केंद्र से प्राप्त होने वाली जानकारी थी। बिल भुगतान करने वाले लोग भुगतान केंद्र पर ही एलईडी खरीद सकते हैं और इसके लिए तत्काल कोई भुगतान नहीं करना पड़ता, बस मासिक किश्तें जमा करनी पड़ती हैं। स्कीम के नुमाइन्दों के अनुसार इस विकल्प का लाभ एक-तिहाई खरीदारों ने उठाया। बिल भुगतान के समय बचत योजना के बारे में पता चलने से सहभागिता को प्रोत्साहन मिला। इसके अलावा, टीवी देखने या रेडियो सुनने वालों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए मीडिया अभियान महत्वपूर्ण रहा। हालांकि कम आय वाले बीएसयूपी परिवार इस तरह लाभान्वित नहीं हुए - क्योंकि उनमें बिजली कनेक्शन और भुगतान संरचनाएं अनौपचारिक हो सकती हैं; रेडियो और टीवी कम इस्तेमाल किए जाते हैं; और बिल भुगतान करने का काम परिवार के छोटे सदस्यों द्वारा किया जाता है। एलईडी स्कीम के अगले चरण में, स्कीम की जागरूकता के संदर्भ में इन भिन्नताओं को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण होगा। (स्रोत फीचर्स)