दुनिया से पोलियो के वायरस को खत्म करने के लिए काफी जद्दोजहद चल रही है। पिछले साल पाकिस्तान में पोलियो वायरस अपने अंतिम पड़ाव पर दिखा था। 2014 में पाकिस्तान में पोलियो के 306 केस थे जो कम होते-होते 2017 में 8 ही बचे थे। खून की जांच के नतीजों से पता चला था कि 6 से 11 माह के बच्चों में भी पोलियो वायरस के विरुद्ध प्रतिरक्षा पहले से कहीं अधिक है जो लगातार चलते रहने वाले पोलियो अभियान का नतीजा है। ऐसा माना जा रहा था कि एक साल में पोलियो वायरस पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

किंतु नए जांच परिणाम कुछ और ही कहते हैं। पोलियो कार्यकर्ताओं को पाकिस्तान के उन हिस्सों में पोलियो वायरस मिले हैं जहां उन्हें लग रहा था कि वहां से पोलियो पूरी तरह गायब हो चुका है। इसके चलते यह सवाल उठा है कि क्या पोलियो वायरस पर्यावरण में इस कदर रचा-बसा है कि वापिस सिर उठाएगा? या क्या वायरसों का अंतिम दिनों में बर्ताव ऐसा ही होता है कि वे पर्यावरण में ज़्यादा संख्या में मौजूद तो रहते हैं पर असर नहीं करते।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महामारी विशेषज्ञ क्रिस मेहर का कहना है कि “हमने इस पैमाने पर पर्यावरणीय नमूने अन्य किसी जगह पर नहीं लिए हैं, इसीलिए तुलना करने के लिए हमारे पास कोई और आंकड़े नहीं है।” इन नतीजों को संगठन ने गंभीरता से लिया है और अपनी रणनीति तथा सफलता के मायनों को भी बदला है।

अफगानिस्तान और नाइजीरिया के साथ पाकिस्तान भी उन देशों में से एक है जहां पोलियो का स्थानीय वायरस अब तक पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। इसके कारणों में सरकार का ठीक तरह से काम ना करना, गरीबी, लगातार चलते युद्ध और बड़ी संख्या में लोगों का एक जगह से दूसरी जगह प्रवास जैसी समस्याएं हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा इतनी खुली है कि वहां वायरस मुक्त रूप से प्रवाहित होता रहता है। चूंकि नाइजीरिया में पिछले 15 महीनों से पोलियो वायरस नहीं मिला है, इसलिए माना जा रहा है कि यदि पाकिस्तान से पोलियो वायरस खत्म हो गया तो फिर अफगानिस्तान में भी नहीं बचेगा। इस तरह दुनिया से पोलियो का सफाया किया जा सकता है ।

1988 में पोलियो उन्मूलन अभियान की शुरुआत से ही पोलियो वायरस को ढूंढने का मानक एक्यूट प्लेक्सिड पैरालिसिस (ॠक़घ्) की निगरानी पर आधारित रहा है - हर उस बच्चे की जांच करना जिसके हाथ-पैरों में कमज़ोरी या शिथिलता नज़र आए। यदि इस जांच में साल भर तक कोई मामला नहीं मिलता तो विश्व स्वास्थ्य संगठन उस देश को पोलियो प्रभावित की सूची से हटा देता रहा है।
किंतु अब पोलियो केस इतने कम रह गए हैं कि पैरालिसिस ही एकमात्र आधार नहीं रह गया है। पोलियो वायरस से संक्रमित 200-300 लोगों में से एक ही पैरालिसिस का शिकार होता है। बाकि लोगों में पोलियो के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हालांकि उनमें पोलियो वायरस होता है और उनके मल के साथ उत्सर्जित होता रहता है, जिससे दूसरे लोग संक्रमित हो सकते हैं।

आजकल पोलियो वायरस पता करने के लिए पोलियो कार्यकर्ता मल-जल (सीवेज) के नमूने इकठ्ठा करते हैं और उनमें पोलियो वायरस की जांच करते हैं। यदि जांच में पोलियो वायरस पाया जाता है तो इसका मतलब है कि उस इलाके में कोई पोलियो-संक्रमित है। इस तरह की पर्यावरणीय निगरानी छिपे हुए वायरस को पकड़ सकती है।
किंतु ऐसे पर्यावरणीय नमूने के साथ दिक्कत यह है कि जिस इलाके से नमूना लिया जाता है वहां 50 हज़ार से 1 लाख लोग निवास करते हैं। नमूने में पोलियो वायरस मिलने पर यह कहना मुश्किल होता है कि वहां कितने लोग संक्रमित हैं।

पाकिस्तान में अभी 53 नमूना संग्रह केंद्र हैं। इनसे इकठ्ठा किए गए नमूनों की जांच में 16 प्रतिशत नमूनों में पोलियो वायरस मिला है। जबकि इस समय पोलियो केस बहुत कम हैं।
इन आकड़ों से अलग-अलग मत सामने आए हैं। एक कारण तो यह हो सकता है कि पैरालिसिस निगरानी में चूक हो रही है। कुछ अन्य लोगों का कहना है कि घूमंतु लोग, हाशिए पर जीने वाले पख्तून समुदाय के बहुत से बच्चों में पोलियो का टीकाकरण नहीं हुआ होगा। और शायद पोलियो वायरस पूरे पाकिस्तान में ना होकर इन लोगों में हो। एक और मत है कि कम केस होने का मतलब है कि लोगों में इम्यूनिटी बढ़ गई है। पाकिस्तान के खराब हालात के चलते वहां वायरस मौजूद तो है लेकिन अपने आखरी दौर में है।

अलबत्ता, पोलियो मिशन कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता। पर्यावरणीय नमूनों की जांच में वायरस का मिलना उतना ही गंभीर है जितना पैरालिसिस का केस मिलना। एक बात तय है कि पोलियो केस ना होने का मतलब यह नहीं है कि हम पोलियो मुक्त हो गए हैं। किसी देश को पोलियो मुक्त तब कहेंगे जब वहां पिछले 12 महीनों से पोलियो का केस ना मिला हो या पर्यावरणीय नमूने पोलियो वायरस मुक्त हों। (स्रोत फीचर्स)