रैकून एक विचित्र स्तनधारी होता है जिसके चेहरे पर नकाब-सी होती है और पूंछ छल्लेदार होती है। इसकी एक और विशेषता का पता हाल के एक अध्ययन से चला है। इसका सम्बंध इनकी शौच की आदत से है। आम तौर पर किसी इलाके के सारे रैकून्स एक ही जगह पर मल-त्याग करते हैं। तो वहां गोबर का ढेर बन जाता है। इसमें अधपचे बीज होते हैं और एक गोलकृमि भी पाया जाता है जो एक परजीवी है। अब पता चला है कि मल का यह ढेर अलग-अलग प्राणियों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है।
कोई प्राणी मल के ढेर के साथ क्या रिश्ता बनाएगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसे गोल कृमि से जान का खतरा है, या हल्का-फुल्का खतरा है या कोई खतरा नहीं है।

रैकून की शौच सम्बंधी आदतों और अन्य प्राणियों की इस मल के प्रति प्रतिक्रिया का अध्ययन ऊटा विश्वविद्यालय की रोग-पारिस्थितिकी विशेषज्ञ सारा वाइनस्टाइन और उनके स्नातक छात्रों ने किया है और परिणाम दिलचस्प हैं। सबसे पहले तो उन्होंने तटीय संरक्षित क्षेत्र सांटा बारबरा (कैलिफोर्निया) में 60 हैक्टर में फैले कोल पॉइंट रिज़र्व में रैकून के शौचालयों का मानचित्र तैयार किया। ये स्थान चट्टानों के नीचे, गिरे पड़े पेड़, कोई टीला आदि थे।
मानचित्र तैयार करने के बाद वाइनस्टाइन की टीम ने इसके आसपास कैमरे लगा दिए ताकि यह देख सकें कि 60 अलग-अलग जंतु प्रजातियां मल के ढेर पर कैसी प्रतिक्रिया देती हैं।

चूहे रैकून गोल कृमि (Baylisascaris procyonis) से प्रभावित तो होते हैं किंतु बहुत बुरी तरह नहीं। देखा गया कि चूहे ही मल के ढेर के सबसे ज़्यादा चक्कर लगाते हैं। हर हफ्ते एकाध बार तो चूहे मल के ढेर में खोद-खोदकर बीजों की तलाश करते हैं। दूसरी ओर, माइस, पक्षी और खरगोश के लिए यह गोल कृमि जानलेवा होता है। ये प्राणी मल के ढेरों से दूर ही रहे। छिपकलियों और वनबिलाव जैसे जानवरों के लिए रैकून का मल न तो खतरनाक है और न ही भोजन है, उन्होंने रैकून शौचालयों और अन्य स्थानों के बीच कोई भेद नहीं किया।
अपने अध्ययन के परिणाम पारिस्थितिकी शोध पत्रिका ऑइकॉस में प्रकाशित करते हुए टीम ने बताया है कि मल के ढेर से बचकर रहने का सम्बंध गोल कृमि के संक्रमण के खतरे से जुड़ा हुआ दिखता है। परजीवी से बचने की रणनीतियों का अध्ययन यह समझने में मदद कर सकता है कि बीमारी से बचाव किस हद तक पारिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण को आकार दे सकता है।

उदाहरण के लिए, पूर्व में किए गए शोध से पता चला था कि चींटियों की एक किस्म (फायर एंट) मक्खी से बचने के लिए कभी-कभी अपने घोंसले में ही छिपी रहती हैं और ऐसा होने पर अन्य चींटियां इलाके पर कब्ज़ा कर लेती हैं। परजीवी से बचने की जुगाड़ में ही शायद ऐसा होता है कि शाकाहारी प्राणियों के शवों को तो अन्य प्राणी खा डालते हैं किंतु मांसाहारी जानवरों के शवों को नहीं खाते और उन्हें ठिकाने लगाने का काम प्राय: छोटे अकशेरुकी जंतु या सूक्ष्मजीव करते हैं। (स्रोत फीचर्स)