प्रदीप

इक्कीसवीं सदी को जीव विज्ञान की सदी कहा जा रहा है। इसकी धमक हाल ही में तब सुनाई पड़ी जब चीन की शंघाई स्थित चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस के वैज्ञानिकों ने दो क्लोन बंदरपैदा करने की घोषणा की।
गौरतलब है कि इन बंदरों की क्लोनिंग के लिए वैज्ञानिकों ने उसी तकनीक (सोमेटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर) का उपयोग किया है, जिसकी सहायता से 1996 में स्कॉटलैंड के रोज़लिन इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. इयान विल्मट और उनके सहयोगियों ने भेड़ क्लोन डॉली को पैदा किया था।

वर्ष 1927 में एल्डस हक्सले ने अपनी पुस्तक ब्रोव न्यू वल्र्ड में हज़ारों एक जैसे चेहरों वाले व्यक्तियों की चर्चा की थी। फ्यूचर शॉक नामक पुस्तक में भी लेखक एल्विन टॉफलर ने एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना की है, जो अपना क्लोन बनवाता है। क्लोन एक ऐसा जीव होता है जो माता-पिता में से किसी एक से ही विकसित होता है। सरल शब्दों में कहें तो क्लोन मूल जीव की अनुकृति होता है तथा आनुवंशिक रूप से उसकी कार्बन कॉपी होता है।
अब तक वैज्ञानिकों को मेंढक, भेड़, कुत्ता, सुअर, गाय और बिल्ली सहित 20 से अधिक जंतु प्रजातियों के क्लोन बनाने में सफलता मिली है, मगर मनुष्य या मनुष्य से मिलते-जुलते जंतुओं का क्लोन सोमेटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर तकनीक से बनाना बेहद मुश्किल माना जाता था।

हाल ही में चीनी वैज्ञानिकों ने सारी बाधाएं पार करते हुए दो बंदरों के क्लोन सफलतापूर्वक निर्मित किए हैं। मैकॉक प्रजाति के झोंग झोंग और हुआ हुआ नाम के दो बंदरों का जन्म इस तकनीक से हुआ है। दोनों नवजात बंदरों को बोतल से दूध पिलाया जा रहा है और उनका विकास सामान्य तरीके से हो रहा है।

चीनी वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि से यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या निकट भविष्य में मनुष्य की भी क्लोनिंग संभव होगी? हालांकि इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस के निदेशक मूमिंग पू का कहना है कि “मनुष्य भी वानर समूह में आते हैं... हमने बंदरों की क्लोनिंग के ज़रिए एक महत्वपूर्ण तकनीकी बाधा पार कर ली है। इसका मुख्य मकसद यह है कि हम एक जैसे जींस वाले ऐसे बंदर तैयार करना चाहते हैं जिन पर मनुष्यों के लिए उपयोगी दवाओं का परीक्षण करने के साथ-साथ चिकित्सा शोध भी किया जा सके। हालांकि इस तकनीक को मनुष्यों पर इस्तेमाल करने का हमारा कोई इरादा नहीं है।”

इन बंदरों के क्लोनिंग के समर्थक वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज का उपयोग मानवता के हित में किया जाएगा। इससे पार्किन्सन रोग, कैंसर, ह्मदय रोग, एड्स, मधुमेह और तंत्रिका सम्बंधी रोगों के इलाज में मदद मिलेगी। हालांकि इस उपलब्धि से यह बहस फिर शुरू हो गई है कि क्लोनिंग नैतिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से सही है या नहीं। जो भी हो, मगर हमें नए ज्ञान का स्वागत करना चाहिए तथा उसके विवेकपूर्ण और मानवता के हित में उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)