यह आलेख ‘प्लगिंग इन: भारतीय घरों में बिजली खपत’ आदित्य चुनेकर तथा मृदुला केलकर ने प्रयास (ऊर्जा समूह) और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के लिए तैयार किया है। यह सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की वेबसाइट (http://cprindia.org/news/6546) और प्रयास की वेबसाइट (http://www.prayaspune.org/peg/initiatives/plugging-in.html) पर भी उपलब्ध है ।

भारत में पंखा, टीवी, रेफ्रिजरेटर, कूलर, एयर कंडीशनर और वॉटर हीटर जैसे थोड़े-से उपकरण कुल आवासीय बिजली खपत में से लगभग 50-60 प्रतिशत हिस्से के लिए ज़िम्मेदार हैं। अत: इन उपकरणों के ऊर्जा कुशल मॉडल बड़े पैमाने पर अपनाए जाएं तो भविष्य में घरों की बिजली खपत काफी कम की जा सकती है। इस आलेख में, हम सरकार के मानक एवं लेबलिंग (एस-एंड-एल) कार्यक्रम की चर्चा करेंगे और साथ ही इसके तीन पहलुओं की बात करेंगे जो भारतीय उपकरण बाज़ार में दक्षता हासिल करने में प्रभावी हो सकते हैं।

एस-एंड-एल कार्यक्रम ऊर्जा मंत्रालय के तहत ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) द्वारा चलाया जाता है। 2006 से, इस कार्यक्रम के तहत कुशल उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए सूचनात्मक लेबल के इस्तेमाल और मानकों को अनिवार्य बनाकर कम दक्षता वाले मॉडल्स को बाहर करने का प्रयास किया जा रहा है। बीईई एक पूर्व-निर्धारित शेड्यूल के आधार पर सबसे कार्यकुशल मॉडल को 5-सितारा और सबसे कम कुशल मॉडल को 1-सितारा रेटिंग देता है। यह रेटिंग उपकरण पर लगाए गए लेबल में अंकित की जाती है। एयर कंडीशनर्स और रेफ्रिजरेटर सहित आठ उपकरण श्रेणियों पर यह लेबल होना अनिवार्य है, और कम से कम 1-सितारा रेटिंग होने पर ही कोई मॉडल बेचा जा सकता है। छत के पंखे और वॉशिंग मशीन सहित 13 उपकरण श्रेणियों के लिए यह व्यवस्था स्वैच्छिक है। निर्माता इन उपकरणों को बीईई लेबल के बिना और 1-सितारा से कम रेटिंग के साथ भी बेच सकते हैं।

अनिवार्यता और मानकों में सख्ती
किसी भी उपकरण के लिए, बीईई स्वैच्छिक एस-एंड-एल कार्यक्रम से शुरू होता है और सामान्यत: दो-तीन वर्षों में अनिवार्य किया जाता है। बीईई की अनिवार्य सूची में अब आठ उपकरण शामिल कर लिए गए हैं और रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर सहित अधिकांश प्रमुख उपकरण इसमें शामिल हैं। छत के पंखे और कूलर उल्लेखनीय अपवाद हैं। देश में बिकने वाले 95 प्रतिशत से अधिक छत के पंखों पर लेबल नहीं होते हैं और ये भारत में ही उपलब्ध सबसे कार्य-कुशल मॉडल्स की तुलना में दुगने से अधिक ऊर्जा खर्च करते हैं। 2010 से यह व्यवस्था छत के पंखों के लिए स्वैच्छिक रही है। कूलर बहुत अधिक बिजली उपभोग तो करते ही हैं, और तेज़ी से लोकप्रिय भी हो रहे हैं। लेकिन अभी तक इनको एस-एंड-एल कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है। उपकरणों की किसी श्रेणी के लिए व्यवस्था को अनिवार्य बनाने से यह सुनिश्चित होता है कि बाज़ार में अक्षम मॉडल नहीं बेचे जा सकेंगे।

व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सबसे कार्य-कुशल प्रौद्योगिकियों के साथ तालमेल रखने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए बीईई समय-समय पर अपने मानकों और लेबलों को अधिक सख्त बनाता रहता है। इसलिए हो सकता है आज का 5-सितारा मॉडल अगले चरण में 3-सितारा मॉडल बन जाए और अधिक कार्य-कुशल मॉडल को 5-सितारा तमगा प्राप्त हो जाए। बीईई फ्रॉस्ट-फ्री रेफ्रिजरेटर की रेटिंग को समय-समय पर सख्त बनाता है जिसके चलते वर्तमान 5-सितारा रेटिंग अंतर्राष्ट्रीय मानकों के तुल्य हैं। अलबत्ता, 1-सितारा रेटिंग में अभी भी सुधार की गुंजाइश है। दूसरी ओर, एयर कंडीशनर की रेटिंग को और सख्त बनाया जा सकता है ताकि वह भारत और विदेशों में उपलब्ध सबसे कार्य-कुशल मॉडल्स के समकक्ष हो जाए।

प्रोत्साहन और थोक खरीद
ऊर्जा कुशल उपकरणों की बड़े पैमाने पर स्वीकार्यता के लिए सितारा रेटिंग्स को अनिवार्य और मज़बूत करना ज़रूरी है, लेकिन मात्र इतने से बात नहीं बनेगी। उदाहरण के लिए, 2014 और 2016 के उपकरण उत्पादन आंकड़ों से पता चलता है कि रेटिंग में सख्ती के बाद से 5-सितारा वाले फ्रॉस्ट-फ्री रेफ्रिजरेटर के उत्पादन में काफी गिरावट आई है। इसके अलावा, अधिकांश उपकरण श्रेणियों में सबसे अधिक बिक्री 3-सितारा मॉडल की रही है।

5-सितारा रेटेड उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए, लोगों के व्यवहार में परिवर्तन की कोशिशें और थोक खरीद कार्यक्रम जैसे पूरक तरीके उपयोगी हो सकते हैं। उपभोक्ता व्यवहार अनुसंधान से पता चलता है कि जब उपभोक्ताओं के सामने विकल्पों का एक मेनू होता है, तो वे फैसले को आसान बनाने के लिए अक्सर ‘मध्यमार्ग’ को चुन लेते हैं। क्या इस वजह से लोग 3-सितारा रेटेड मॉडल ज़्यादा खरीद रहे हैं? क्या हस्तक्षेप करके इसे संबोधित किया जा सकता है ताकि लोगों को 5-सितारा रेटेड मॉडल खरीदने को तैयार किया जा सके? एक कार्य-कुशल उपकरण से धन की बचत का आकलन करने के लिए बीईई के एक हालिया ऐप (बीईई स्टार लेबल) से उपभोक्ताओं को लेबल को समझने में मदद मिलती है। इस तरह के और प्रयास उपयोगी हो सकते हैं।

थोक खरीद कार्यक्रम (एलईडी बल्ब के लिए उजाला के समान) बाज़ार को ऊर्जा कुशल उपकरणों के पक्ष बदलने में मदद कर सकते हैं। ऐसे कार्यक्रम सबसे कुशल उपकरणों (5-सितारा से भी ज़्यादा कुशल उपकरणों) के उत्पादन को प्रोत्साहित करके बाज़ार में ऊर्जा-दक्षता के स्तर को ऊपर उठाने में मददगार हो सकते हैं। इसके बाद बीईई मानकों को और सख्त बनाकर बाज़ार में ऊर्जा-दक्षता को और बढ़ावा दिया जा सकता है। यह तरीका उच्च मानकों और लेबलों तक परिवर्तन के चरण को सुगम बना सकता है। हालांकि, रिबाउंड प्रभाव के प्रति सतर्क रहने की ज़रूरत है जहां उपभोक्ता ऐसे अधिक उपकरण खरीदता और उपयोग करता है क्योंकि वे सस्ते हैं। ऐसा होने पर अपेक्षित बचत नहीं हो पाती है।

एल-एंड-एल की विश्वसनीयता
अंत में एक मुद्दा एस-एंड-एल कार्यक्रम की विश्वसनीयता के सम्बंध में है। विश्वसनीयता को मज़बूत करने के लिए मानक-निर्धारण प्रक्रिया में पारदर्शिता और मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करना ज़रूरी है। बीईई ने हाल ही में इस दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं। आजकल मानक और लेबल निर्धारण करने वाली तकनीकी समितियों की कार्रवाइयां प्रकाशित की जा रही हैं, और विभिन्न श्रेणियों के उपकरणों के उत्पादन के आंकड़े बीईई वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।

इससे भी आगे बढ़कर बीईई अब परीक्षण परिणामों को प्रकाशित कर सकता है। बीईई को ऐसे परीक्षण बाज़ार से बेतरतीब ढंग से एकत्र किए गए नमूना उपकरणों पर करने चाहिए। यदि समय-समय पर यह जांच हो कि उपकरण मानकों की कसौटी के अनुरूप हैं या नहीं, तो उपकरणों पर लगे लैबलों में उपभोक्ता का विश्वास काफी बढ़ेगा। यदि कोई मॉडल मानकों के अनुरूप नहीं पाया जाता, तो बीईई परिणामों को समाचार पत्रों में प्रकाशित करके उपभोक्ताओं को चेतावनी दे सकता है। ऐसा अतीत में एक बार किया भी जा चुका है।

संक्षेप में, मानक और लेबलिंग कार्यक्रम भारतीय घरेलू उपकरणों की ऊर्जा-दक्षता में प्रभावी रूप से सुधार कर सकता है। अलबत्ता, इसके लिए काफी संसाधनों की ज़रूरत होगी। सीमित संसाधनों को देखते हुए, बीईई अपने कार्यक्रम में और अधिक उपकरण जोड़ने की बजाय, उपकरणों की एक छोटी संख्या को प्राथमिकता देकर सख्त क्रियान्वयन सुनिश्चित कर सकता है। (स्रोत फीचर्स)