Read Entire MagazineJanuary 2016

Cover - Illustration by Swati Gupta
कवर - खेत का क्या कोई अपना रंग होता है? कोई एक रंग? खेत क्या अपने आप में कोई एक चीज़ है? खेत की आवाज़ कोई एक आवाज़ है? फसल के पकने का रंग खेत में तो दिखता ही है किसान की आँखों में उसके घर में उसके मवेशियों में दिखता है। प्रभात की बेहद सुन्दर कविता और उसके साथ बेहद सुन्दर चित्र।

Mor Dongri - A picture story by Sunita
मोर डूँगरी - मोरों की एक डूँगरी (पहाड़ी) थी। मोर थे इसीलिए वो मोरों की डूँगरी थी। मोर थे तो वहाँ बादल, सूरज, चाँद, हवाएँ सभी आते थे। हिरन, बाघ भी आते। एक साँस लेता गाँव था वो। एक दिन वो गाँव उजड़ गया। गाँव के साथ-साथ मोर उजड़ा, चाँद, सूरज, बादल, पानी, बाघ, हिरन सब उजड़े। मोर पहले आया था शायद बाद में डूँगरी बसी। पर उजड़ा गाँव पहले। विस्थापन की एक मार्मिक कथा। साथ में सुनीता के सुन्दर चित्र।

Baat udd chali jati thi - A poem by Laltu, Illustration by Ashika Harbhanjka
बात उड़ चली थी -
कही जाती बात पुरानी थी
बात कही जानी थी
बन्द दरवाज़ों के आर-पार कुछ आता-जाता नहीं। दरवाज़े बन्द इसीलिए ही किए जाते हैं कि कुछ आर पार न जा पाए। आवाज़ भी नहीं। खुशबू भी नहीं। बात भी नहीं...। पर ज़रूरी है बात का उस पार जाना। इस पार आना। हर बात का...लाल्टू की इस सुन्दर कविता के साथ हैं आशिका का सुन्दर चित्र। 

Pyare Bhai Ramsahay - A story by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
प्यारेभई रामसहाय - हमें सुविधाएँ पहुँचानेवाले जैसे दूधवाला, सब्ज़ीवाला, हमारे घर को साफ सुथरा रखनेवालों का भी एक घर होता है। उनके भी सुख-दुख होते हैं। उनका भी जीवन होता है। वो चाहे हमारे लिए कुछ भी कर जाएँ हम अकसर उनसे कटे हुए ही रहते हैं। किसी ने लिखा था कि हम उनसे दूर रहते हैं क्योंकि हम डरते हैं कि हम उनके पास गए तो हमें उनसे प्रेम हो जाएगा...। इस कहानी का मदारीवाला भी हमारे पास ही बसता है, पर हम उससे दूर हैं। पर जब कुछ बच्चे उसके पास जाते हैं तो वही होता है जिसका हमें डर होता है। उन्हें उससे प्रेम हो जाता है। स्वयंप्रकाश की बेहद मार्मिक कहानी।

Agar Ishwar hai… A book excerpt from Sophie’s world, Illustrations by Sujasha Dasgupta
अगर ईश्वर है- सोफी को एक अनजान व्यक्ति से खत मिलते हैं। और वह उन सब के नए सिरे से देखने लगती है जो उसके आसपास सालों से थे। वो देख पाती है कि हम सब मूल सवालों - जैसे हम यहाँ क्यों हैं? यह दुनिया कैसे बनी? क्या हर होनेवाली चीज़ के पीछे कोई मकसद होता है?... - को छोड़कर एक ढर्रे में जीवन जीते जा रहे हैं। हमें कोई चीज़ हैरान नहीं कर जाती, हमें इस दुनिया की आदत हो गई है... दर्शनशास्त्र के बेहद दिलचस्प सफर पर चलें सोफी के साथ...

Imlee - Journey of a word “Imlee” by Ibbar Rabbi, Illustration by Dileep Chinchalkar
इमली - इमली एक नाम अनेक। विभिन्न देशों, भाषाओं में इमली के नाम अलग हैं, पर कहीं-कहीं जुड़े भी हैं। इन्हीं अलगपन और एकसारपन से तार्रुफ कराता एक लेख।

Ek nadi bahut akeli - Illustrations by Dileep Chinchalkar
एक नदी बहुत अकेली - उस नदी में घुसते ही मछली को उसके अकेलेपन का एहसास हो गया। मछली तो अलमस्त थी और उसे वैसे ही रहना था। ऐसे में नदी भी कब तक उदासी के खोल में छिपी रहती।...और वो दोनों दोस्त हो गए। पर कोई था जो अब उदास था...पढ़िए एक छोटी-सी सुन्दर- सी कहानी।

Monet ka chitr banana ka Dhang - An article by Udayan Vajpeyi, Illustrations by Monet
क्लौद मॉने का चित्र बनाने का ढंग - हम देखते हैं पेड़ को तो पेड़ देखते हैं। पेड़ को एक बार नहीं देखते तो तनो को, शाखाओं को, पत्तियों को, तने की छाल को, फूल-फलों को देखते हैं। और मन में सोचते हैं कि पेड़ देख रहे हैं। हम सब ऐसे ही शायद देखते हैं। पर फ्रंसिसी चित्रकार क्लौद मॉने जिन्हें प्रभाववादी चित्रकार कहा जाता है का देखना थोड़ा अलग था। वो पेड़ को कुछ लम्बे भूरे, कुछ छोटे हरे, कुछ रंगीन धब्बों की तरह देखते थे। उनके चित्रों में रंग क्या कमाल कर जाते थे। हमें वहाँ वो रंग दिखते थे जो वहाँ हैं ही नहीं। दो रंगों के पास होने से जो तीसरे रंग का प्रभाव पैदा होता है वो हमें दिखता है। उदयन वाजपेयी जानेमाने कवि हैं। और कलाओं पर उन्हें सुनना बेहद मोहक होता है। आपको अगर कहीं मौका लगे तो कलाओं का अन्तरगुम्फन नामक लेख ज़रूर पढ़ें।

Boli Rangoli - A column on children’s illustrations on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली
दो हज़ार पन्द्रह सालों के बाद
आया एक साल
तीन सौ पैंसठ दिन जीना है
अच्छे तरह से पाल
इस कविता पर बच्चों के बेहद कल्पनाशील चित्र मिले। बोली रंगोली के इतने ढेर सारे चित्रों में से चुनाव हमेशा मुश्किल रहता है। और हाँ, अगर वो गुलज़ार साब से कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो वो भी हमें जल्द से जल्द भेजें। अब से बोली-रंगोली और बच्चों के सवालों पर गुलज़ार के जवाब आल्टर्नेट महीनों में होंगे।

Prithavi kab bani - An article by Sushil Joshi, Illustration by Mayukh Ghosh
पृथ्वी कब बनी- वो पृथ्वी जिस पर हम रहते, खेती करते, कारखाने लगाते हैं कितनी पुरानी है। क्या वो हमेशा ऐसी ही थी जैसी आज है? पता कैसे चला होगा कि यह पुरानी कितनी है? सुशील जोशी के लेख हमेशा रोचक रहते हैं। इस कड़ी में एक और लेख...

Pathar ka Shorba aur dusre Kissago Pathar- An article by Dileep Chinchalkar
पत्थर का शोरबा और दूसरे किस्सागो पत्थर - बच्चों के खज़ानों में कभी झाँककर देखो तो कितनी ही चीज़ें नज़र आएँगी - टूटे खिलौने, चूड़ी, पत्थर, रंगीन पेंसिलें, पत्तियाँ...। जो उन्हें अच्छा लगता है वो सहेज लेते हैं। बच्चे सहेजना जानते हैं। वो याद सहेज रहे होते हैं। वो आज को कल के लिए सहेज रहे होते हैं। हम सब भी कभी-कभी ऐसा करते हैं। पर किसी पत्थर या किसी डिब्बी को उठाते हुए हमारे दिमाग के किसी कोने में होता है कि उसे हम इस्तेमाल कहाँ करेंगे। वो घर आ तो जाते हैं पर रखे रहते हैं। याद की तरह ही। सोचा है कभी आपने कि किसी पत्थर में इतनी यादें छिपी कहाँ होती हैं।...दिलीप जी का एक खूबसूरत लेख।

Gul hue Bagule - A column on some interesting flowers which looks alike other creatures.
गुल हुए बगुले - अगर हमने बगुले न देखे होते तो वो फूल फूल ही रहता। आम फूलों से ज़रा अलग पर फूल ही। पर हमने बगुले देखे हैं। सफेद बगुले। तो इस फूल की जो पहली पहचान होनी थी वो अब नहीं रही। अजब फूलों की कड़ी में एक और रोचक फूल हबेनारिया रेडिएटा।

Mera Panna - Children’s creativity column
मेरा पन्ना - बच्चे कमाल की नज़र रखते हैं। हर महीने चकमक के कुछ पन्ने बच्चों की इस कमाल की नज़र को समर्पित होते हैं...

Activity - An activity by Ankush Gupta & its observations
एक गतिविधि –अपने आसपास से दोस्ती कितनी मीठी चीज़ है। जहाँ भी चले जाओ फिर नए दोस्त मिलेंगे। अंकुश गुप्ता हर महीने यही कोशिश करते हैं। पिछली बार उन्होंने रास्ते, खेत, बगीचे कई जगह की मिट्टी में सिरका या निम्बू का रस डालकर देखने को कहा था। जो देखा उसे दर्ज करने को कहा था। इस बार उन्होंने बच्चों के देखे के पीछे छिपे कारण बताए।
साथ ही अगले महीने के लिए दोस्ती का एक हाथ उठा दिया। इस बार उन्होंने कहा कि शौचालय साफ करने के लिए हम अमूमन जिस एसिड का इस्तेमाल करते हैं वो कितना नुकसानदेह हो सकता है। तो क्या कोई सुरक्षित टायलेट क्लीनर हो सकता है? सिरका या निम्बू का रस? सड़े-गले फलों से सिरका बन सकता है क्या और भी किन्हीं खाने की चाज़ों से सिरका बन सकता है? सोचें...हमें बताएँ भी

Mathapacchi - Brain Teasers
माथापच्ची - सवालों का एक और गुच्छा

Saras aur Siyaar- A folkstory, Illustrations by Mayukh Ghosh
सारस और सियार - सारस और सियार की इस कहानी को पड़ते हुए अपनी दुनिया के जाने कितने ही किरदार तुम्हारे जेहन में आते रहेंगे। यह कैसे होता है? कहानी तो उन सब के बारे में कुछ नहीं कहती फिर आप उन तक कैसे पहुँचते हैं। जितने भी लोग इसे पढ़ेंगे उतने ही लोग अपने जीवन और अनुभव से जाने कितने लोगों को इसमें शामिल करते चलेंगे। और अन्त में आपके जेहन में वही सब लोग रहेंगे - सियार या सारस तो नहीं ही होंगे। एक बेहद सुन्दर कहानी बेहद सुन्दर चित्रों से सजी।

Kheto mein Rang - A poem by Prabhat, Illustrations by Swati Gupta
खेतों में रंग - प्रभात की बेहद सुन्दर कविता और उसके साथ बेहद सुन्दर चित्र।

Bazaar - A Baiga folksong, Illustrations by Snigdha Banerjee
बाज़ार - एक बैगा लोकगीत और उसका हिन्दी अनुवाद।

Haji - Naji- Fun stories by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
एक था हाजी एक था नाजी - हाजी नाजी कुछ वक्त के लिए गुम हो गए थे। अब लौट आए हैं। नए जामे पहनकर।

Ek tibukali, ek Tataiya - A photo feature by Jayesh Ganekar and Anoop Devdhar
एक चिबुकली, एक ततैया - कैमरा गले में लटका हो तो आप हर चीज़ को दो बार देखते हैं - एक बार आँख से, एक बार कैमरे की आँख से। कैमरे की आँख से देखा हुआ फिर हम सब देखते हैं अपनी आँख से। बहुत समय बीतने के बाद भी वो एक क्षण वैसा का वैसा रहता है। उस माँ बत्तख की पीठ पर सवारी करती बेटी बत्तख अनन्त काल तक यूँ ही तैरती रहेगी। इस तरह फोटो किसी काल के चित्र की तरह बनी रहती हैं।

Chitrpaheli
चित्र पहेली- चित्रों की पहेली, हर बार नई नवेली

Dairy Advertisement
दुबली चींटी सबसे आगे थी… आपकी नज़र इतनी पैनी हो कि दिख जाए कि वो चींटी जो सबसे आगे थी, वही थी जो सबसे दुबली भी थी।...एक डायरी जिसे आप सब यकीनन अपने पास, अपने दोस्तों, बच्चों के पास देखना चाहेंगे। उस दुबली चींटी से हम देखने का सलीका पा जाएँ इससे बेहतर और क्या होगा..