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November 2016Cover - Illustration by Riddhima, a Class 4th student
कवर - कवर पर बना चित्र रिद्धिमा ने बनाया है। वो चौथी में हैं। /यहाँ जंगल का आभास देते पेड़ हैं। पेड़ भी आभासी हैं। रंगों के फायों से बना। आभासी इसलिए कि ये पेड़ न होकर मशालें भी हो सकती थीं। लपटों में भी यही रंग नज़र आते हैं - लाल, पीले...हवा में तिरते से। लपट का नीला यहाँ हरा बन गया है। या हरा हरा ही रहा क्योंकि यह आभासी पेड़ है। आभासी मशाल में यही हरा नीला हो जाता। इस चित्र को एक और बार देखो तो बीच-बीच में ज़मीन से कुछ दूर तक उठे लाल-भूरे रंग नजर आएँगे। क्या ये वो ठूँठ हैं जो पेड़ बने रहने से रह गए? या लोगों की भीड़ जो बिना मशाल लिए साथ है? रिद्धिमा ने यह कमाल इतनी छोटी उम्र में कैसे हासिल किया हैरत होती है। इस चित्र के साथ एक कविता है विष्णु नागर की -  

मुझे पेड़ में
होना चाहिए एक पत्ती
मुझे हवा में गिर सकना चाहिए 

इस कविता ने इस जंगल को फिर से जंगल बना दिया है। कवि इस पूरे जंगल में खुद को महज़ एक पत्ती बना देखना चाहता है। और यह क्या कमाल है कि पत्ती महज़ बेशक है पर पत्ती से ही पेड़ है, पेड़ से ही जंगल। महज़ होकर भी इतनी खास होनेवाली बात पर जब आप अटकते हैं तभी कवि दूसरी पंक्ति कह देता है। पत्ती वो इसलिए भी बनना चाहता है कि वो हवा आए और वो उसमें गिर जाए।

Aatirikth cheezo ki Maya - A poem by Rajesh Joshi, Illustration by Kanak
अतिरिक्त चीज़ों की माया- इस वक्त के लिए एकदम मौजूँ कविता है यह। इस लिहाज़ से भी कि बाज़ार में अतिरिक्तों का अम्बार है। वो उसे हर हाल में खपाना चाहता है। वो हमारे घर में आना चाहता है। वो हमारी कमज़ोरी जानता है। मुफ्त से किसी को इंकार नहीं। वो इसी मुफ्त पर सवार होकर आता है। मुख्य चीज़ जो हमारी ज़रूरत है, जिसे लेने हम बाज़ार गए थे हमें उससे प्यारी वो मुफ्त चीज़ लगने लगती है। मुफ्त खुश होता है। अगली बार हम फिर बाज़ार जाते हैं किसी मुख्य चीज़ को लेने तो इस बार पहले यह देखते हैं कि किसके साथ क्या मुफ्त है। यानी अगली बार मुफ्त ही मुख्य चीज़ तय करता है। मुफ्त जो कभी अतिरिक्त बनकर आया था अब अतिरिक्त नहीं रहता। और इस तरह हम बाज़ार की तरह घर में भी घिर जाते हैं अतिरिक्तों से। घर-बाज़ार का भेद खत्म हो जाता है। अतिरिक्त एक मानसिकता बन जाता है। हम अतिरिक्त लोगों से घिरे, अतिरिक्त बातें करते हुए अतिरिक्त जीवन जीने लगते हैं। 

Agar Magar - An interactive column with Gulzar Sahab, in which children’s ask questions to him, Illustrations by Atanu Roy
अगर मगर - बच्चों के सवाल और गुलज़ार के जवाब अब एक मज़ेदार कॉलम बनता जा रहा है। शुरुआती औपचारिकता खत्म होती जा रही है। अब बच्चे ज़्यादा सहज होकर सवाल पूछने लगे हैं। आप भी अपने आसपास के बच्चों के सवालों को इकट्ठा करके हम तक पहुँचाने में हमारी मदद करें तो बेहतर होगा।

Chashma naya hai - “Abbhayas” is a memoir by 5th std student Rihana, Illustration by Swetha Nambiar
चश्मा नया है - चश्मा नया है बच्चों के लिखे का कॉलम है। इसमें उनकी रोज़ाना की ज़िन्दगी देखी जा सकती है। उनका घर-संसार, गली- मोहल्ला, स्कूल-बाज़ार, साहित्य-सिनेमा, टीवी-इंटरनेट...। और बहुत उम्मीद है कि इनको देखा-देखी बहुत सारे और बच्चों को भी ऐसी ही उनकी कहानियाँ याद हो आएँ। इस बार रिहाना ने लिखा है घर में किए मेकअप के बारे में। माँ मेकअप का सामान लाई हैं। माँ घर पर नहीं हैं और रिहाना अपनी अप्पी को तैयार करती हैं। माँ के घर पर न रहने पर आपकी की हरकतों की कितनी ही स्मृतियों को झंकृत कर जाएगा यह संस्मरण...

Nahi Nahi aur Haan Haan - A poem by Vishnu Nagar, Illustration by Kanak
नहीं नहीं और हाँ हाँ - बचपन में माँ एक कहानी सुनाती थीं। जो मुझे मालूम है वो उसे सुनाते हुए ही गढ़ती थीं। दे और देदे। एक भाई का नाम दे और एक का देदे। और यहाँ से शुरू होता था दे नाम और दे क्रिया का घालमाल। फिर इसे और मज़ेदार बनाने के लिए इसमें आ जुड़ता था एक और नाम देदे एक और क्रिया देदे के साथ। विष्णु नागर की कविता हाँ हाँ और नहीं नहीं भी इसी तर्ज़ की कविता है। छोटे बच्चे इस कविता के पहले अर्थ का मज़ा लेंगे और सातवीं-आठवीं के बच्चे इसमें छिपे दूसरे अर्थ तक पहुँच जाएँ तो मज़ा दूना हो जाएगा।

Mera Panna - A children’s creativity column
मेरा पन्ना - चकमक का यह अंक मेरा पन्ना विशेषांक है। इसमें बच्चों के विभिन्न माध्यमों में बने चित्र, शिल्प, कहानियाँ, कविताएँ हैं।

Cheenikhor Bhudiya - A poem by Prabhat, Illustration by Kanak
चीनीखोर - कविता की खूबी यही है कि वो बड़ी से बड़ी बात को कह सकती है और वो भी कम से कम शब्दों में। और शब्द भी ऐसे जिनका पहला अर्थ कुछ और कहता है और दूसरा अर्थ कुछ और। अमूमन वो दूसरा ही अर्थ होता है जो कविता लिखने का कारण होता है। पर कमाल तो वही कविता है जो पहले अर्थ में भी उतनी ही लुभावनी हो जितनी दूसरे-तीसरे अर्थ में। जैसे यह कविता - चीनीखोर। आप भी पढ़ें और हाँ अगर आप किसी स्कूल में जाते हैं तो वहाँ के शिक्षकों के साथ इसे ज़रूर साझा करें। स्कूल में बच्चों को नई-नई कविताएँ मिलती रहें ऐसे हम सबकी कोशिश रहनी ही चाहिए। कविता के बाद कक्षा में इश पर बातचीत की जा सकती है। बुढ़िया के बारे में, चार दाने में से भी एक दाना चींटी को देने के बारे में, एक दाना बचाने के बारे में, सरकार और पुलिस द्वारा की जानेवाली जमाखोरी के बारे में...कनक का सुन्दर चित्र भी बच्चों को ज़रूर दिखाएँ। कविता पढ़ने के बाद बच्चे अपनी अपनी चीनीखोर बुढ़िया बना सकते हैं।

Goba Khana Bhari Padha, Aam ki Bori, and Chand par beetaye 24 Ghante - three different write-ups by children
गोबा खाना भारी पड़ा, आम की बोरी, चाँद पर बिताए चौबीस घण्टे - पहली दो रचनाएँ पारदी समाज की लड़कियों ने लिखी हैं। पारदियों की यह पहली पीढ़ी है जो स्कूल जा रही है। उनके लेखन में उनका समाज, उनके संघर्ष देखे जा सकते हैं। उनके नामों से स्पष्ट है कि वो किस समाज का हिस्सा होना चाहते हैं। शिखर बेरीवाल ने उस विधा में लिखा है जिसे बच्चे पसन्द तो बहुत करते हैं पर उस पर लिखा कम ही जाता है।

Bagh Nabibbaksh - An article on a famous artist Nabibaksh, Illustration by Nabibaksh
बाघ नबीबख्श - नबीबख्श मंसूरी चित्रकार हैं। बचपन में वो एक पहाड़ पर गए। अचानक सामने आए बाघ को देखकर वे घबरा गए। किसी तरह वहाँ से भागे और घर आकर रुके। घर में सभी ने उनके सही सलामत आने पर खुशियाँ मनार्इं। इस घटना का उन पर गहरा असर पड़ा। बड़े होने पर उन्होंने बार-बार बाघ को याद किया। बाघ के अनुभवों को बार-बार समझा। आप भी अपने आसपास के बच्चों से कहें कि वे अपने किसी प्रिय को चित्र बना-बनाकर बार-बार याद करें। और उन्हें चकमक को भेजें।

Jungle mein Mangal (Last part) - A travelogue by Kamla Bhasin and Beena Kak
दो बहनों की मसाईमारा - 60 और 70 साल की दो बहनों ने तय किया कि वो केन्या के मसाईमारा सेंचुरी जाएँगी और वो पहुँच भी गर्इं। सात दिन वहाँ उनके ऐसे बीते कि सात दिन नहीं लगते थे। शेर, बाघ, मगरमच्छ, जेब्रा, वाइल्ड बीस्ट, तरह-तरह के पक्षियों से मिलीं। उन्हें करीब से देखा। निकलने के समय का मलाल भी अन्तिम दिन दूर हो गया। और उन्हें तेन्दुआ दिख गया। यूँ ही बैठा हुआ नहीं अपने पूरे तेज के साथ। इस तरह पूरी हुई इन दो बहनों की अविस्मरणीय मसाइमारा यात्रा। हिन्दी में शायद पहली बार किसी हिन्दुस्तानी ने इसे इथने विस्तार से लिखा। इतने दृश्य दिखाए। जल्द ही इसे आप एक किताब के रूप में भी देखेंगे। शुक्रिया कमला और बीना जी।

Haji Naji - Fun stories by Swayam Prakash, Illustration by Atanu Roy
हाजी-नाजी - हाजी नाजी हर बार हमें अपने किसी न किसी किस्से से गुदगुदा जाते हैं। पर चुटकलों में हँसी कब आती है? क्यों आती है? सोचिएगा। हमारे एक पाठक ने कहा कि हाजी उसे कहते हैं जो हज कर आता है। तो हाजी को हाँजी कर दें। हम हाजी नाजी के लेखक तक यह बात पहुँचा देंगे। अगर उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं तो शायद...

Boli Rangoli - A column on children’s illustration on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली
भूख लगी है चाँद तोड़ के फ्राई कर लें
सूरज अण्डा छोड़ गया है ट्राई कर लें
गुलज़ार साहब की इन पंक्तियों पर बच्चों के चित्र मिले। बहुत सारे चित्र। उन सभी का शुक्रिया। पर जितना मज़ा इन पंक्तियों में है चित्र में बदलकर वो मज़ा ज़रा कम हो गया है। कोशिश कीजिएगा अपने आसपास के बच्चों से कहिए कि वो बोली रंगोली की अगली पंक्तियों पर और अधिक समय देकर चित्र बनाएँ। पंक्तियाँ हैं -
दौ पैसे में धूप का ताप
चार आने की बारिश
मैं मौसम बेचता हूँ
मैं मौसम बेचता हूँ...

Mathapacchi
माथापच्ची - सोच-सवालों का पन्ना।

Nachghar (Part- 2) - A second part of Priyamvad’s long story series Nachghar, Illustrations by Prashant Soni 
नाचघर (भाग -2) - सगीर का नाच तैरता हुआ नाचघर पहुँचा जो सालों से वीरान और सोया हुआ था। कोई दो सौ साल पुरानी इस इमारत पर अभ सब ओर ताले थे। कभी अँग्रेज़ जोड़े यहाँ नाचते होंगे अब तो यहाँ जाले थे, धूल-मिट्टी थी। यहाँ से कुछ छत दूर मोहसिन की छत थी। वो इन्हें पार कर अकसर नाचघर की छत पर आता। एख दिन उसने अन्दर झाँका तो हैरान रह गया। अन्दर एक लड़की नाच रही थी। लाजवन्ती नाम था उसका। दोनों मिले। बातें हुर्इं। और दोनों खूब नाचे। नाचघर फिर आबाद हो गया। किशोर उम्र के प्रेम का एक सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करना है यह लघु उपन्यास।

Janwar sote kaise honge - An article describing about how animals sleeps in a different ways, Illustration by Dilip Chinchalkar
जानवर सोते कैसे होंगे - हमें तो नींद बहुत प्यारी लगती है। पर क्या सभी तो यह इतनी प्यारी है। बन्दर कहाँ सोते होंगे? और चिड़ियाँ? उल्लू तो दिन में सोते हैं पर पानी में तैरनेवाले पक्षी? और लम्बी दूरी तय करनेवाले प्रवासी पक्षी? विनता बताती हैं कि बत्तखें तैरते हुए सो भी लेती हैं और इस दौरान कोई उन पर हमला न कर दे इसलिए चौकस भी रहती हैं वो। एक सचमुच दिलचस्प लेख। आप अपने आसपास वाले बच्चों से कह सकते हैं कि वे भी सोचे कि विभिन्न जीव सोते कैसे हैं? मसलन चींटी? सोने को लेकर उनके जो भी सवाल हो वो भी लिख भेजें। अगले किसी अंक में हम इसे देंगे।

Pyare Bhai Ramsahay - A story by Swayam Prakash, Illustrations by Prashant Soni
प्यारे भाई राम सहाय - सबसे आसान होता है सबसे गरीब, सबसे कमज़ोर पर उँगली उठाना। किसी भी और के साथ ऐसा करने से पहले आप थोड़े सशंकित होंगे, कहने के बाद भी शायद यह शक बना रहे। पर अकसर मन का एक कोना इस बात को मानने को हमेशा तत्पर रहता है कि अपराधी गरीब,निस्सहाय ही होता है। और कहीं अगर जो वो यह सिद्ध न कर पाएँ तो भी उनका यह गहरा विचार बदलता नहीं। वो कहते यही हैं कि ऐसा कभी-कभी ही होता है...जिस कुली पर सबका शक जाता है वही कुली जब बच्चा वापस ला देता है तो...

Kohra - A short creative piece by Udayan Vajpeyi, Illustration by Prashant singh
कोहरा- कोहरा अचानक तालाब के ऊपर हलकी नीली जादर-सा फहराता मिल सकता है जैसे-जैसे आसमान में सूरज चढ़ता है कोहरे की यह चादर फिसलती जाती है। मानो लहरों में ही समा जाएगी।...कोहरे की चादर के उस पार देखो तो सब कुछ वो नहीं नज़र आता जो है।

Bharose ka Lenden - A memoir by Dilip Chinchalkar, Illustration by Dilip Chinchalkar
भरोसे का लेनदेन - किस भरोसे गली के कुत्ते आराम से सोते रहते हैं बीच सड़क पर किस भरोसे गाएँ सड़कों पर गाड़ियों के बीच आराम से बैठी जुगाली करती रहती हैं, किस भरोसे गिलहरी पेड़ से उतरते ही सड़क पार करने भाग जाती है...दिलीप चिंचालकर की चिर परिचित शैली में लिखा एक बेहद खूबसूरत संस्मरण।

Chitrapaheli
चित्र पहेली - चित्रोंवाली पहेली। नए शब्दों से दोस्ती करने का पन्ना।

Aakash mein - A poem by Naresh saxena, Illustration by Ridhhima
आकाश में - नरेश सक्सेना की एक कविता...
आकाश में
न चिड़िया थी न बादल न सूर्य
इतना खाली था आकाश
कि नीला रंग तक नीला नहीं था...
धरती पर न वृक्ष थेन छाया
इतनी खाली थी धरती
कि हरा रंग तक नहीं था
सुर्य तो क्या होता मैं
एक वृक्ष ही हो जाता
अपनी धरती के लिए
एक हरा वृक्ष
इतना हरा
कि छाया भी हरी हो जाती...