वनस्पति वैज्ञानिकों के बीच इस बात पर बहस चल रही है कि दुनिया का पहला फूल कैसा रहा होगा। ई-फ्लॉवर नामक यह परियोजना काफी महत्वाकांक्षी है। इसमें वनस्पतियों के विभिन्न लक्षणों के एक असाधारण डैटाबेस का उपयोग किया जा रहा है। इनमें वैकासिक सम्बंधों के आणविक आंकड़े भी शामिल हैं। पिछले अगस्त में जब इस प्रयास के परिणाम प्रकाशित हुए तो इस पर काफी हलचल हुई थी।

गौरतलब है कि फूलधारी पौधों का पृथ्वी पर प्रकट होना जैव विकास की दृष्टि से एक अत्यंत सफल पड़ाव था। हालांकि फूलधारी पौधे काफी देर से अस्तित्व में आए हैं - करीब 14 करोड़ वर्ष पूर्व - मगर आज सारे जीवित थलीय पेड़-पौधों में 90 प्रतिशत यही हैं। इनका विकास पहले बीजधारी (मगर फूलविहीन) पौधों के आगमन के करीब 20 करोड़ वर्ष बाद हुआ था।
फूलधारी पौधों की इतनी ज़बरदस्त सफलता के बावजूद फूलों के जीवाश्म बहुत दुर्लभ हैं। यह तो निश्चित है कि फूलधारी पौधों की इतनी विशाल विविधता का राज़ फूल में ही छिपा है। इस दृष्टि से यह समझना महत्वपूर्ण है कि फूल अस्तित्व में आए कैसे और पहला फूल कैसा था। वनस्पति वैज्ञानिक काफी समय से इस बात पर अटकलें लगाते रहे हैं कि पहले-पहले फूल कैसे दिखते होंगे।

लगभग आठ वर्ष पहले ई-फ्लॉवर परियोजना ने इस बात का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम तैयार की थी। इस टीम ने लगभग 800 प्रजातियों के 20 लक्षणों का एक कैटलॉग तैयार किया। इसके बाद उन्होंने इस जानकारी की तुलना वैकासिक सम्बंधों के आणविक अध्ययनों से की। इसके आधार पर उन्होंने सांख्यिकीय मॉडल्स की मदद से पहले फूल के गुणधर्मों के बारे में निष्कर्ष निकाले।

इन प्रयासों से जो तस्वीर सामने आई उसके मुताबिक प्रारंभिक फूल एक केंद्रीय अक्ष के सापेक्ष सममित यानी सिमेट्रिकल था और वह द्विलिंगी था अर्थात उसमें नर व मादा दोनों प्रजनन अंग थे। ई-फूल मॉडल से यह भी लगता था कि प्रारंभिक फूल में कई अंग तो घेरों में थे अर्थात समकेंद्री वृत्तों में जमे हुए थे किंतु शोधकर्ताओं ने आगाह किया था कि इनमें से कुछ निष्कर्षों के समर्थन में प्रमाण काफी कमज़ोर हैं। यह शोध पत्र सिडनी के रॉयल बाटेनिक गार्डन के हर्वे सौकेट के नेतृत्व में नेचर शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।  
बहरहाल, एक घेरेदार प्रारंभिक फूल के विचार ने कई लोगों को चकरा दिया। कई पादप वैज्ञानिकों को अपेक्षा थी कि फूल के अंग एक अक्ष के इर्द-गिर्द कुंडलाकार ढंग से जमे होंगे मगर उन्होंने यह अपेक्षा नहीं की थी कि ये सारे अंग एक ही तल में पाए जाएंगे। ऐसी अपेक्षा तो काफी लंबे समय से चली आ रही थी मगर इसकी पुष्टि नहीं हुई थी।

मगर सबसे चौंकाने वाली बात तो यह थी कि ई-फूल में फूल की पंखुड़ियां और नर जननांग तो घेरों में जमे थे किंतु मादा जननांग यानी स्त्रीकेसर एक कुंडलाकार जमावट में थे। वनस्पति वैज्ञानिकों ने घेरेदार और कुंडलित दोनों तरह की जमावट एक ही फूल में कभी नहीं देखी है। इसके अलावा, परिवर्धन की प्रक्रिया में एक ही फूल में दोनों तरह की जमावट बनना संभव नहीं है। कारण यह है कि ये सारे अंग पौधे के एक ही भाग से निकलते हैं। कई घेरेदार फूलों में स्त्रीकेसर की स्थिति नर जननांगों की स्थिति को निर्धारित करती है।

इस मामले में देखा गया कि मात्र चार ऐसे उदाहरण हैं जिनमें घेरेदार व कुंडलित बनावट एक ही फूल में नज़र आती है किंतु आगे विश्लेषण से पता चला कि इनमें से प्रत्येक उदाहरण में एक ही किस्म के जननांग पाए गए हैं। हर्वे और उनके साथियों के शोध पत्र का गहन विश्लेषण मॉस्को स्टेट विश्वविद्यालय के दिमित्री सोकोलोफ और उनके साथियों ने किया है। इस पुनर्विश्लेषण के मद्दे नज़र सौेकेट की टीम ने एक बार फिर अपने आंकड़ों को देखा और वे इनमें से कई मुद्दों से सहमत हैं।

सोकोलोफ का कहना है कि ई-फूल परियोजना की प्रमुख दिक्कत यह है कि इसमें फूलों के एक-एक गुणधर्म का विश्लेषण अन्य गुणों से अलग-थलग स्वतंत्र रूप से किया गया है। ई-फूल टीम ने प्रत्येक गुणधर्म के विकास का विश्लेषण अलग-अलग किया और फिर परिणामों को जोड़कर एक तस्वीर बनाने की कोशिश की है। सोकोलोफ का मत है कि गुणधर्म की कुछ जोड़ियां परस्पर बेमेल हैं।
दूसरी ओर सौकेट का मत है कि कोई जमावट आजकल के फूलों में न मिलने के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि वैसी जमावट कभी अस्तित्व में नहीं रही होगी।

बहरहाल, इस बहस का निराकरण जल्दी होने वाला नहीं है। इस सम्बंध में फ्लोरिडा वि·ाविद्यालय की पादप वैज्ञानिक पामेला सोल्टिस ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि ई-फूल परियोजना में जीव विज्ञान के सवालों को हल करने के लिए सांख्यिकी की विधियों का सहारा लिया जा रहा है। उनके मुताबिक, ऐसा हो सकता है कि कोई चीज़ या बनावट सांख्यिकीय दृष्टि से तो संभव हो, लेकिन जीव वैज्ञानिक दृष्टि से नहीं। यानी सवालों की काफी गुंजाइश है। (स्रोत फीचर्स)