डीएनए यानी डीऑक्सी राइबोन्यूक्लिक एसिड वह पदार्थ जिसमें सारी आनुवंशिक सूचना संग्रहित होती है। डीएनए में क्षारों की द्याृंखला से तय होता है कि किसी कोशिका में कौन-से प्रोटीन बनेंगे। मगर पूरे मामले में एक गुत्थी रही है जिसे अब लगता है कि सुलझा लिया गया है। गुत्थी यह है कि डीएनए में बहुत सारे खंड ऐसे होते हैं जो किसी प्रोटीन को बनाने के निर्देश नहीं होते। एक सवाल तो यही था कि ये खंड करते क्या हैं। दूसरा सवाल यह था कि ये खंड जीवों में काफी हद तक एक समान होते हैं, तो क्यों?

किसी प्रोटीन का निर्देश न होने के बावजूद डीएनए के किसी खंड में क्षारों के क्रम का स्थिर रहना ज़्यादा बड़ी पहेली रही है। इन खंडों को स्टैनफोर्ड विश्व विद्यालय के गिल बेजरानो ने 2004 में खोजा था और नाम दिया था ‘अति-संरक्षित तत्व’। आम तौर पर कोशिका विभाजन के दौरान जब डीएनए की प्रतिलिपि बनाई जाती है, उस समय डीएनए में टूट-फूट, फेरबदल होते हैं। यदि ऐसा कोई परिवर्तन प्रोटीन-निर्देश में हो और वह हानिकारक हो, तो वह जीव जीवन की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है, प्रजनन करने से पहले ही मर जाता है और वह परिवर्तित डीएनए आबादी में फैल नहीं पाता। इस तरह से प्रोटीन निर्माण के लिए ज़िम्मेदार डीएनए खंड पीढ़ी-दर-पीढ़ी संरक्षित रहते हैं। इस आधार पर बेजरानो और उनके साथियों का विचार बना था कि ये खंड भी जीवन के लिए महत्वपूर्ण होने चाहिए, अन्यथा इनमें होने वाले परिवर्तन तो होते ही जाएंगे। और इनमें होने वाले परिवर्तनों का जीव के जीवन में कोई उल्लेखनीय योगदान न हुआ तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये परिवर्तन बढ़ते जाने चाहिए। मगर ऐसा होता नहीं है। बेजरानों व उनके साथियों ने मनुष्यों, चूहों, माउस और मुर्गियों के जीनोम का विश्लेषण करने पर देखा था कि कम से कम 481 ऐसे खंड हैं जो इन सबमें एक जैसे हैं। गौरतलब है कि ये चार वंश 20 करोड़ वर्ष पूर्व एक-दूसरे से अलग होकर स्वतंत्र रूप से विकसित हो रहे हैं।

मगर 2007 में इन अतिसंरक्षित खंडों के बारे में बेजरानो के मत को धक्का लगा था जब यह पता चला कि माउस के जीनोम में से ऐसे चार अतिसंरक्षित खंड हटा देने के बाद भी ये जंतु स्वस्थ रहे और सामान्य रूप से प्रजनन भी करते रहे। इससे तो लगता है कि ये खंड कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाते होंगे।
अब लॉरेंस बर्कले राष्ट्रीय विश्व विद्यालय की जीनोम वैज्ञानिक डिआने डिकेल ने नए सिरे से मामले की छानबीन करके शोध पत्रिका सेल में अपने परिणाम प्रकाशित किए हैं जो संभवत: इस गुत्थी को सुलझाने में मददगार होंगे।

डिकेल व उनके साथियों ने थोड़ा अलग रास्ता अपनाया। उन्होंने माउस के जीनोम में से एक-एक करके अतिसंरक्षित तत्वों को हटाया और उनका विच्छेदन करके मस्तिष्क के विकास का अध्ययन किया। पता चला कि सचमुच जीनोम में से इन खंडों को हटाने का असर मस्तिष्क के विकास पर पड़ता है। उदाहरण के लिए एक अति संरक्षित खंड को हटाने के बाद उस माउस के मस्तिष्क में ऐसे विकास हुए जो अल्ज़ाइमर रोग से जुड़े पाए गए हैं। एक अन्य खंड को विलोपित करने पर दिमाग के वे हिस्से विकसित नहीं हुए जो स्मृतियां संजोते हैं। डिकेल का कहना है कि इस तरह के संज्ञानात्मक परिवर्तन वास्तविक परिस्थिति में जंतु के लिए जीवन को कठिन बना सकते हैं। इसीलिए अतिसंरक्षित खंडों में होने वाले परिवर्तन भी बहुत समय तक टिक नहीं पाते हैं। (स्रोत फीचर्स)