एक बड़ी खबर है कि एक 30 वर्षीय ट्रांसजेंडर महिला ने अपने बच्चे को स्तनपान कराया है। ट्रांसजेंडर महिला से आशय ऐसी महिलाओं से है जो जैविक रूप से महिला होते हुए भी एक स्त्री के पूर्ण लक्षण प्रकट नहीं करतीं।
उपरोक्त महिला को साढ़े तीन माह का प्रायोगिक उपचार दिया गया था जिसमें हॉरमोन्स, मितली की एक दवा तथा स्तन विकास को प्रेरित करने वाले रसायन शामिल थे। इस उपचार की मदद से वह महिला अब प्रतिदिन 227 ग्राम दूध का रुााव करने लगी है।

इससे पहले उक्त ट्रांसजेंडर महिला को कई वर्षों से स्त्रीकरण के लिए हॉरमोन चिकित्सा दी जा रही थी। दुग्धरुााव का उपचार इसके बाद शुरू किया गया था। इस उपचार में उसे स्पायरोनोलैक्टोन नामक औषधि दी गई थी। स्पायरोनोलैक्टोन शरीर में टेस्टोस्टेरोन के प्रभाव को रोकता है। टेस्टोस्टेरोन पुरुष हॉरमोन माना जाता है जो पुरुषों में नज़र आने वाले द्वितीयक लक्षणों को उभारता है। इसके साथ ही महिला को प्रोजेस्टरोन तथा एक किस्म का एस्ट्रोजेन भी दिया गया था।

इस उपचार से उसके स्तन भलीभांति विकसित हो गए जबकि उसने स्तनों को उभारने के लिए कोई सर्जरी नहीं करवाई थी। इसी दौरान उसकी साथी गर्भवती हो गई और जब उसका गर्भ साढ़े पांच माह का था तब उन्होंने न्यूयॉर्क स्थित माउंट सिनाई सेंटर फॉर ट्रांसजेंडर मेडिसिन एंड सर्जरी के चिकित्सकों तमार राइसमैन और ज़िल गोल्डस्टाइन से मदद चाही। उक्त महिला की गर्भवती साथी को स्तनपान कराने में कोई रुचि नहीं थी, इसलिए उसने तय किया कि यह काम वह स्वयं करेगी।

प्रोलैक्टिन नामक एक हॉरमोन होता है जो सामान्यत: प्रसव के बाद महिलाओं में दुग्धरुााव शुरू करवाता है। मगर यह हॉरमोन बाज़ार में उपलब्ध नहीं होता। लिहाज़ा उक्त महिला ने तय किया कि वह दुग्धरुााव प्रेरित करने के लिए प्रोलैक्टिन की बजाय मितली की एक औषधि - डॉमपेरिडोन - का उपयोग करेगी। इस बात के कुछ अनुभव-आधारित प्रमाण हैं कि यह दवा दुग्धरुााव को बढ़ावा दे सकती है। वैसे यूएस का खाद्य व औषधि प्रशासन यह चेतावनी दे चुका है कि इस दवा का उपयोग दुग्धरुााव बढ़ाने के मकसद से नहीं किया जाना चाहिए।

बहरहाल, उक्त महिला ने एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्टरोन और स्पायरोनोलैक्टोन की बढ़ती खुराक के साथ डॉमपेरिडोन लेना शुरू कर दिया। साथ ही साथ, उसने अपने स्तनों को उत्तेजित करने के लिए ब्रोस्ट पंप का उपयोग भी शुरू किया। एक माह के अंदर उसके स्तनों से दूध की बूंदें निकलने लगीं और तीन महीनों में दूध की मात्रा बढ़कर 227 ग्राम तक पहुंच गई। शिशु के जन्म के बाद छ: सप्ताह तक उसने बच्चे को सिर्फ स्तनपान कराया। वैसे तो यह बहुत बड़ी बात है किंतु इतना दूध बच्चे के लिए बहुत कम था - पांच महीने का एक औसत बच्चा प्रतिदिन 500 ग्राम दूध पीता है। लिहाज़ा, अपने दूध के साथ-साथ उसने बच्चे को ‘ऊपर’ का दूध भी पिलाया।
राइसमैन और गोल्डस्टाइन के मुताबिक यह पहला रिकॉर्डेड प्रकरण है जब एक ट्रांस-महिला ने स्तनपान कराया है। ट्रांसजेंडर हेल्थ जर्नल में प्रकाशित इस शोध पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए कई चिकित्सकों ने कहा है कि यह एक बड़ी सफलता ज़रूर है किंतु अभी दूध की गुणवत्ता वगैरह पर अनुसंधान के बाद ही इसे एक सामान्य उपचार की तरह प्रस्तुत किया जाना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)