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बतखोरू – वीरेन्द्र दुबे
चित्र: शिवम चौधरी
“वह दिन भर बक-बक करती रहती है। कोई सुने या ना सुने, उसकी बला से। इससे उसका क्या? अपने में मगन, खुद से ही बतियाती रहती है। है भी इतनी चुलबुली कि कोई ना कोई बोलने-बतियाने लगता। बातें ही इतनी मज़ेदार करती...”
पढ़िए एक बातूनी लड़की की कहानी ‘बतखोरू’।

क्यों-क्यों
क्यों-क्यों में इस बार का सवाल था: “पिछले अंक में तुमने ग्राफिटी पर एक लेख (तोड़-फोड़ की कला) पढ़ा होगा। अगर तुम्हें कहीं ग्राफिटी बनाने का मौका मिलता तो तुम क्या लिखते या उकेरते, और क्यों?”
कई बच्चों ने अपने दिलचस्प जवाब हमें भेजें। इनमें से कुछ आपको यहाँ पढ़ने को मिलेंगे।

मेरा पन्ना
लेख – ओलम्पिक
कविता – बारिश-बारिश, मेरी गुड़िया
वाकया – मामा की मेहनत
कहानी – गॉडजिला, मोहन सब्ज़ी वाला, प्यारी दोस्त
और बच्चों के बनाए कुछ दिलकश चित्र।

नन्हा राजकुमार : भाग - 3
कहानी एवं चित्र:
  एन्त्वॉन द सैंतेक्ज़ूपेरी
अनुवाद: लाल बहादुर वर्मा

यह नन्हा राजुकमार की तीसरी किश्त है। नन्हा राजकुमार एक शानदार फ्रेंच लघु उपन्यास ल प्ती प्रैंस का हिन्दी अनुवाद है।
नन्हा राजकुमार लेखक से कई सारे सवाल पूछता है, मसलन क्या भेड़ कॉंटेदार फूल भी खा जाती है, काँटे क्यों होते हैं आदि। लेखक उसके सवाल का गोल-मटोल जवाब देता है। इससे नाराज़ होकर नन्हा राजकुमार कहता है कि यदि कोई एक ऐसे फूल को प्यार करे जो एकदम बेमिसाल हो, जो और कहीं ना पाया जाता हो और भेड़ उसे खा जाए तो क्या यह कोई गम्भीर बात नहीं हुई। आगे की बातचीत जानने के लिए पढ़िए...

तुम भी बनाओ – कनक शशि
इस चित्र को बनाने में रसोई में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों और कचरे का इस्तेमाल हुआ है। अगर आप भी ऐसा कुछ बनाते हैं तो हमें भेजिए...

पेड़ क्या करता है – राजेश जोशी
चित्र: रूबी कुमारी
, दसवीं, परिवर्तन सेंटर, सिवान, बिहार 

दिन में जब सब अपने-अपने काम में लगे रहते हैं, तब पेड़ क्या करते हैं? इसी सवाल को कवि राजेश जोशी ने अपने अन्दाज़ में कविता करके पूछा है।
“माँ कहती हैं
पेड़ रात में सोते हैं
तो पेड़
क्या करता है दिन भर?”

तालाबन्दी में बचपन – अस्पताल और कोरोना का डर – आरुषि
चित्र: हबीब अली

कोरोना के चलते बच्चों का जीवन अभी भी एक तरह से तालाबन्दी में ही है। ‘तालाबन्दी में बचपन’ कॉलम के ज़रिए बच्चे तालाबन्दी के इस दौर के अपने अनुभवों को साझा करते हैं।
इस बार नौवीं कक्षा में पढ़ रही आरुषि ने अस्पताल के कोरोना वार्ड में काम करने के सपना के अनुभवों को बयां किया है।

माथापच्ची
कुछ मज़ेदार सवालों और पहेलियों से भरे दिमागी कसरत के पन्ने।

कल शाम जेल में हुई... – देवांगना कलिता
अनुवाद: कविता तिवारी

देवांगना ‘पिंजरा तोड़’ आन्दोलन से जुड़ी हुई हैं। पिछले साल जब वे जेल में थीं तब उन्होंने यह चिट्ठी अपने कुछ साथियों को लिखी थी। जेल में रह रहे बच्चों के साथ इन्द्रधनुष को लेकर हुई उनकी बातचीत और फिर जेल में रहने के दौरान ही इन्द्रधनुष को देखने के उन बच्चों व अन्य कैदियों के अनुभवों को देवांगना ने बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है।

टर्र टर्र – नेचर कॉन्ज़र्वेशन फाउंडेशन
हमारे आसपास ऐसा बहुत कुछ है जिसे हम देखते तो हैं, लेकिन अमूमन उस पर गौर नहीं करते। इन पन्नों में प्रकृति में पाई जाने वाली ऐसी ही तमाम चीज़ों के बारे में दिलचस्प जानकारियों के साथ कुछ छोटी-छोटी मज़ेदार गतिविधियाँ भी होती हैं।
इस बार इन पन्नों में आप टोड और मेंढकों के बारे में जानेंगे।

जिन्न ऐसे होते हैं ? – मोहम्मद अरशद खान
चित्र: हबीब अली
लोग कहते थे कि कस्बे के उस खण्डहर में जिन्न रहते हैं। एक दिन कुछ दोस्तों ने ठाना कि खण्डहरों में जाकर देखेंगे कि जिन्न कैसे होते हैं। उन्हें डर तो लग रहा था, पर जिन्न को देखना भी था। क्या उन्हें जिन्न मिला? और अगर मिला तो जिन्न ने उनके साथ क्या किया? जानने के लिए पढ़िए अरशद जी की यह कहानी...

गणित है मज़ेदार - चन्दा, शतरंज और चावल के दाने (भाग-2) – आलोका कन्हरे 
इन पन्नों में हमारी कोशिश है ऐसी चीज़ें देने की जिनको हल करने में आपको मज़ा आए। ये पन्ने खास उन लोगों के लिए हैं जिन्हें गणित से डर लगता है।
पिछले अंक में आपने पढ़ा था कि चन्दा ने राजा से चावल के कुछ दाने माँगे थे। शुरुआत में तो राजा को चन्दा की माँग पूरी करना आसान लगा था, पर बाद में समझ आया कि यह बड़ी टेढ़ी खीर है। इस माँग के पीछे की चन्दा की सूझबूझ को आप इस भाग में जानेंगे...

माथापच्ची
कुछ मज़ेदार सवालों और पहेलियों से भरे दिमागी कसरत के पन्ने।

तुम भी जानो
इस बार जानिए:
माकी काजी ‘सुडोकू के गॉडफादर’
लेगो की दीवानगी

चित्रपहेली
चित्रों में दिए इशारों को समझकर पहेली को बूझना।

भूलभुलैया
इस छोर से उस छोर तक पहुँचने की जद्दोजहद। करके देखिए…

मशहूर डिस्को डाँसर – रोहन चक्रवर्ती
अनुवाद: सजिता नायर
डाँसिंग मेंढक की उभरते हुए डाँसरों के लिए एक सलाह, रोहन के अनूठे अन्दाज़ में...