पिछले करीब 6.5 करोड़ वर्षों से चमगादड़ों और टाइगर मॉथ्स (व्याघ्र शलभ) के बीच हथियारों की होड़ जारी है। चमगादड़ प्रतिध्वनि की मदद से पतंगों की स्थिति को भांपकर उनका भक्षण करते हैं और पतंगे उनकी आवाज़ को सुनकर उन्हें छकाते रहते हैं। इसके अलावा पतंगे इस होड़ में खुद अपनी तीक्ष्ण आवाज़ का भी उपयोग करते हैं।
वैज्ञानिकों के मन में यह प्रश्न बरसों से था कि क्यों कुछ पतंगे ऊंची आवृत्ति वाली ऐसी टिक-टिक पैदा करते हैं जो सुनने में ऐसी लगती है मानो फर्नीचर चरमरा रहा हो। एक जवाब यह लगता था कि शायद इस आवाज़ से वे चमगादड़ की प्रतिध्वनि तकनीक को जाम कर देते होंगे। वहीं दूसरा जवाब यह भी समझ में आता था कि शायद इस आवाज़ से वे चमगादड़ों को आगाह करते हैं कि पतंगे ज़हरीले होते हैं।
इस बात का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने दो तरह के टाइगर मॉथ लिए। एक थे लाल सिर वाले मॉथ और दूसरे थे मार्टिन्स लाइकेन मॉथ। इसके बाद उन्होंने इनमें से कुछ कीटों के ध्वनि पैदा करने वाले अंग हटा दिए। अब एरिज़ोना के घास के मैदान में प्रयोग की तैयारी की गई - वहां इंफ्रा रेड वीडियो कैमरे लगाए गए, अल्ट्रासोनिक माइक्रोफोन लगाए गए और पराबैंगनी रोशनियां लगाई गईं। पराबैंगनी रोशनियां चमगादड़ों को आकर्षित करने के लिए लगाई गई थीं।
अंधेरे में उन्होंने पतंगों को एक-एक करके छोड़ा और चमगादड़-पतंगा अंतर्क्रिया को पूरा रिकॉर्ड किया। उन्होंने पाया कि पतंगे अल्ट्रासोनिक टिक-टिक कभी-कभार ही इतनी तेज़ी से पैदा कर पाते हैं कि उससे चमगादड़ का प्रतिध्वनि तंत्र जाम हो सके। उन्होंने यह भी देखा कि अल्ट्रासोनिक ध्वनि पैदा करने का उपकरण न हो तो 64 प्रतिशत लाल सिर वाले और 94 प्रतिशत लाइकेन मॉथ पकड़े तो जाते हैं मगर वापिस थूक दिए जाते हैं।
प्लॉस वन नामक ऑनलाइन शोध पत्रिका में प्रकाशित इन परिणामों के आधार पर शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि टाइगर पतंगों की कुछ प्रजातियों के विपरीत ये प्रजातियां चमगादड़ के प्रतिध्वनि सिस्टम को जाम नहीं करतीं बल्कि उन्हें अपने ज़हरीले होने की चेतावनी देती हैं। (स्रोत फीचर्स)